कभी मोम बन के पिघल गया कभी गिरते गिरते सँभल गया,
वो बन के लम्हा गुरेज़ का मेरे पास से निकल गया..
उसे रोकता भी तो किस तरह से वो शख़्स इतना अजीब था,
कभी तड़प उठा मेरी आह से कभी अश्क़ से न पिघल सका..
सरे-राह मिला वो अगर कभी तो नज़र चुरा के गुज़र गया
वो उतर गया मेरी आँख से मेरे दिल से क्यूँ न उतर सका..
वो चला गया जहाँ छोड़ के मैं वहाँ से फिर न पलट सका,
वो सँभल गया था मगर मैं बिखर के न सिमट सका.
गुरेज़- escape, to stay away
उस से मिलना तो उसे ईद-मुबारक कहना,
ये भी कहना कि मेरी ईद मुबारक कर दे।।
मुझे फूँकने से पहले मेरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत मेरे साथ जल न जाए

-अनवर मिर्ज़ापुरी
कभी आ भी जाना
बस वैसे ही जैसे
परिंदे आते है आंगन में,
या अचानक आ जाता है
कोई झोंका ठंडी हवा का,
जैसे कभी आती है सुगंध
पड़ोसी की रसोई से,
आना जैसे बच्चा आ जाता
है बगीचे में गेंद लेने,
या आती है गिलहरी पूरे
हक़ से मुंडेर पर,
जब आओ तो दरवाजे
पर घंटी मत बजाना
पुकारना मुझे नाम लेकर,
मुझसे समय लेकर भी मत आना
हाँ अपना समय साथ लाना,
फिर दोनों समय को जोड़
बनाएंगे एक झूला
अतीत और भविष्य के बीच,
उस झूले पर जब बतियाएंगे
तो शब्द वैसे ही उतरेंगे
जैसे कागज़ पर उतरते है
कविता बन
और जब लौटो तो थोड़ा
मुझे ले जाना साथ,
थोड़ा खुद को छोड़े जाना
फिर वापस आने के लिए
खुद को एक-दूसरे से पाने
के लिए।
मैं इस ज़मीन पे भटकता हूँ कितनी सदियों से,
वक़्त से कटकर एक लम्हा गिरा हो उसकी तरह,
वतन मिला, तो गली के लिए भटकता रहा,
गली में घर का निशाँ ढूंढता रहा बरसों,
अब तुम्हारी रूह ,तुम्हारे जिस्म में भटकता हूँ मैं,
तुमही से जन्मूँ तो शायद मुझे चैन मिले!!
तिनके सा मैं और समुन्दर सा इश्क़,
डूबने का डर और डूबना ही इश्क़ !!
मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा

गिरा दिया है तो साहिल पे इंतिज़ार न कर
अगर वो डूब गया है तो दूर निकलेगा

उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो
जो हँस रहा है वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा

उस आस्तीन से अश्कों को पोछने वाले
उस आस्तीन से ख़ंजर ज़रूर निकलेगा
Bolo kya tum bus itna sa mera kaam karoge
Mere jism pe ungli se apna naam likhoge?

Aanhkon se padh padh ke, mere jism pe likhte rahna
Saans baje gar jor se to Aawaaz nigalte rahna
Halki halki aanch pe bolo
Dher sa pyaar karoge
#Gulzar
तन्हा मैं इतने रास्तों से हूँ गुज़र चुका,
साया भी दिखे तेरा तो बाहें पसार दूँ..
मिट्टी में मिला दे की जुदा हो नहीं सकता,
अब इससे ज्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता!
दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें,
रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता!
बस तू मेरी आवाज़ में आवाज़ मिला दे,
फिर देख की इस शहर में क्या हो नहीं सकता!
ऎ मौत मुझे तूने मुसीबत से निकाला,
सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता!!
अभी कुछ शेयर बाकी है , मगर लिखने नहीं हरगिज़,
किसी की लाज रखनी है , सो ज़ाहिर कर नहीं सकता!

इरादा रोज़ करता हूँ , मगर कुछ कर नहीं सकता,
मैं पेशेवर फरेबी हूँ , मोहब्बत कर नहीं सकता!!
"तुझे पा लेते तो शायद इसी जन्म मेँ 'किस्सा' ख़त्म हो जाता।
तुझे खोया है,यक़ीनन 'कहानी' लम्बी चलेगी''..
वो मुझसे बेहतर की तलाश मे निकला है,
अफ़सोस की वो अब तक लौटा ही नहीं !!!
यूं तो समेट लाए हर चीज गांव से,
धागे तुम्हारे नाम के बरगद पे रह गए..
जंगल जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी,
कितना मुश्किल है तय करना ,खुद से खुद की दूरी ।
भीतर शून्य, बाहर शून्य, शून्य चारों ओर है,
मैं नही हूँ मुझमें फिर भी "मैं" "मैं" का ही शोर है।
तुम्हारा नाम किसी अजनबी के लब पे था,
बात ज़रा सी थी मगर दिल पे जा लगी!
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