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अक्षिणी.. 🇮🇳
Akshinii
राजनेताओं को छोड़िए..उनसे स्वच्छ राजनीति की अपेक्षा करना व्यर्थ है..लेकिन हम..?हम क्या कर रहे
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#विचार..मुझे कोई फ़रक नहीं पड़ता मंदिर बने कि मस्ज़िद..सरकार ने आम जनता के लिए किया क्या है?? #व
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"बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की आवश्यकता पड़ती है.." कितने लोगों को ये संवाद याद है?8 अप्र
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आइए बात करते हैं एक्टीविस्ट गौतम नवलखा की जिसने आज आत्मसमर्पण किया..एकदम शुरूआत से शुरू करते हैं। तो 1990 के प्रारंभिक समय से आरंभ करें.पाकिस्तान वाॅशिंगटन में कश्मीर के संदर्भ
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