Ramayana is one of the most popular and important epics in Hindu religion. There may be several arguments regarding its occurrence in the real world and history but places existing even today give the proof, though not clearly, that it had transpired in reality.
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Ayodhya in the present day is in UP of India still with the same name. In Ramayana, it was the capital of Kosala Kingdom ruled by Ikshvaku dynasty that Lord Rama belonged to. Ram was born in Ramkot, South end part of Ayodhya, which is one of the famous tourist destinations.
Prayag -

This place in the present day is Allahabad, also part of Uttar Pradesh. This is the place where Rama, Lakshmana, and Sita took rest for the first time after living the kingdom for 14 years of exile.
Chitrakoot is in MP of India. This is the second stop of the trio where Bharat came to meet Rama and asked for his return. Ramghat is the place in Chitrakoota where Rama and Sita used to bathe.
In Chitrakoot, Bharat Milap temple is believed to be the exact place of where Bharat and Rama were reunited after 14 years of exile.
Panchvaati is located in Nashik district at Maharastra. This is the place where the trio moved to after Chitrakoot. It is in this place where Lakshmana drew Rekha famously called Lakshman-Rekha and Ravana abducted Sita. Ramkund is the place in Panchavati where Rama used to bathe.
Dandkarnaya is in Chhattisgarh at present. This is the place where Lakshmana cut Ravana’s sister Surpanakha’s nose while trying to lure him and attack his brother Rama.
Lepakshi is in Andhra Pradesh and it is where Jatayu, semi-god as a vulture, fell after trying to rescue Sita from Ravana who cut the wings. Jatayu got Moksha after the incident at this place.
Kishkindha kingdom is today’s Hampi located in Karnataka. This was the kingdom of Bali and Sugriva. This is the kingdom where Rama met Hanuman and other Vanara (monkeys) and formed his army with the help of Sugriva.
In Hampi, Rishimukha, a mountain near Tungabhadra River is the place where Sugriva and Hanuman lived.
Rameshwaram is a part of Tamil Nadu and from this place, Rama and Vanara army built a bridge to Lanka. The bridge is named Rama Setu. After returning from Lanka, Rama stopped by this place to worship Shiva asked for forgiveness reason killing a Brahmana (Ravana).
Ashok Vatika, Now known as Ashokavanam, is located in Sri Lanka. This is the place where Sita was kept captive after refusing to live in Ravana’s palace. There is a temple, at present, named Sita Amman Temple, which is located in village Sita Eliya.
Ussangoda is also a place in Sri Lanka. This place is used by Ravana to keep his Puspak Biman, a flying chariot that was also affected by fire caused and set by Hanuman while burning the Lanka.
Talaimanner is now a beach in Sri Lanka. This is the place where Rama set his first foot in Lanka and where he killed Ravana. This and Rameshwaram was connected by Ram Setu.
Divurumpola is in Sri Lanka situated 15 km from Sita Eliya. This is the place where Sita underwent “Agni Pariksha” (test on fire). It is a popular place of worship among locals in this area.
Mithila is located in Janakpur of Nepal and some part of Bihar in India. This place was the kingdom of Janaka, Sita’s father.
रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की थी। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है।
जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया था, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे।
श्रीराम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था।
यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। प्रयाग से लगभग 35 किमी उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित 'सिंगरौर' नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से परिज्ञात था। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है जो कि गंगा घाटी के तट पर स्थित था।
प्रयाग जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा के उस पार सिंगरौर है और इस पार कुरई। सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी स्थान पर उतरे थे।
इस ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था।
कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया था और फिर पहुंच गए थे चित्रकूट।
चित्रकूट वही स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचे थे। भरत ने यहीं से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य किया था।
चित्रकूट के पास ही सतना में स्थित था अत्रि ऋषि का आश्रम था जहां श्रीराम ने कुछ वक्त बिताया था। अत्रि ऋषि ऋग्वेद के पंचम मंडल के द्रष्टा हैं। अत्रि ऋषि की पत्नी का नाम है अनुसूइया, जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी।
अत्रि पत्नी अनुसूइया के तपोबल से ही भगीरथी गंगा की एक पवित्र धारा चित्रकूट में प्रविष्ट हुई थीऔर 'मंदाकिनी' नाम से प्रसिद्ध हुई थी।
ब्रह्मा,विष्णु व महेश ने अनसूइया के सतीत्व की परीक्षा ली थी,किन्तु तीनों को उन्होंने अपने तपोबल से बालक बना दिया था। तब तीनों देवियों की प्रार्थना के बाद ही तीनों देवता बाल रूप से मुक्त हो पाए थे और इन्हीं तीनों देवताओं के वरदान से उन्हें एक पुत्र मिला, जो थे महायोगी "दत्तात्रेय"
अत्रि ऋषि के ही दूसरे पुत्र का नाम था 'दुर्वासा'

ऋषि अत्रि के आश्रम के आस-पास राक्षसों का समूह रहता था। अत्रि, उनके भक्तगण व माता अनुसूइया उन राक्षसों से भयभीत रहते थे।यहीं भगवान श्रीराम ने उन राक्षसों का वध किया था जिसका अयोध्या कांड में वर्णन मिलता है।
चित्रकूट की मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, छोटी पहाड़ियां, कंदराओं आदि से निकलकर भगवान राम पहुंच गए थे घने जंगलों में...

यह जंगल क्षेत्र था दंडकारण्य। 'अत्रि-आश्रम' से 'दंडकारण्य' आरंभ हो जाता है। छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों पर राम के नाना और कुछ पर बाणासुर का राज्य था।
यहां के नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के रहने के सबूतों की भरमार है। यहीं पर राम ने अपना अधिकतर वनवास काटा था। यहां वे लगभग 10 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे थे।
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनि आश्रमों में गए और बाद में सतीक्ष्ण आश्रम वापस आए।
वर्तमान में करीब एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं।
दंडक राक्षस के कारण इसका नाम दंडकारण्य पड़ा। यहां रामायण काल में रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था। उसका इन्द्रावती, महानदी और पूर्व समुद्र तट, गोदावरी तट तक तथा पारंदुली, किरंदुली, राजमहेन्द्री, कोयापुर, कोयानार, छिन्दक कोया तक राज्य था।
बाणासुर द्वारा स्थापित देवी दांत तोना (दंतेवाड़िन) है। यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां वर्तमान में गोंड जाति निवास करती है तथा समूचा दंडकारण्य अब नक्सलवाद की चपेट में है।
और इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे।
स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।
दंडकारण्य क्षे‍त्र की चर्चा पुराणों में विस्तार से मिलती है। इस क्षेत्र की उत्पत्ति कथा महर्षि अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है। यहीं पर उनका महाराष्ट्र के नासिक के अलावा एक और आश्रम था।
दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम कई नदियों,पर्वतों और वनों को पार करने के पश्चात नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम गए थे जिनका आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय यहां भी बिताया था।
उस काल में पंचवटी दंडक वन के अंतर्गत आता था। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 32 किमी दूर है। वर्तमान में पंचवटी भारत के महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित विख्यात धार्मिक तीर्थस्थान है।
अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए थे। नासिक में श्रीराम पंचवटी में रहे थेऔर गोदावरी के तट पर स्नान-ध्यान किया था। नासिक में गोदावरी के तट पर पांच वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है। ये पांच वृक्ष थे- पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट।
यहीं पर सीता माता की गुफा के पास पांच प्राचीन वृक्ष हैं जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इन वृक्षों को राम-सीमा और लक्ष्मण ने अपने हाथों से लगाया था।
यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। यहां पर मारीच वध स्थल का स्मारक भी अस्तित्व में है। नासिक क्षेत्र स्मारकों से भरा पड़ा है, जैसे कि सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यम्बकेश्वर आदि।
मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।
नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है।
जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया।
रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। कहते हैं इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।
पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था।
हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था।

इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर भी राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।
सर्वतीर्थ जहां जटायु का वध हुआ था, वह स्थान सीता की खोज का प्रथम स्थान था। उसके बाद श्रीराम-लक्ष्मण तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए थे। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए थे।
तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चल पड़े थे सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचेथे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए थे जो केरल में स्थित है। 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।
पम्पा नदी भारत के केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे 'पम्बा' नाम से भी जाना जाता है। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। श्रावणकौर रजवाड़े की सबसे लंबी नदी है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है।
पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है।
मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े थे, हनुमान और सुग्रीव से भेंट हुई थी, सीता के आभूषणों को देखा था और श्रीराम ने बाली का वध यहीं किया था।

ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था।
इसी पर्वत पर श्रीराम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो आगे चलकर एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबली बाली अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था।
विरुपाक्ष मंदिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहां तुंगभद्रा नदी (पम्पा) धनुष के आकार में बहती है। तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है क्योंकि इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था।
हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने अपनी सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े थे। मलय पर्वत, चंदन वन, अनेक नदियों, झरनों तथा वन-वाटिकाओं को पार करके राम और उनकी सेना ने समुद्र की ओर प्रस्थान किया था अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित किया था।
लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना था कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया था।
रामेश्‍वरम वह स्थान है जहां महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।
वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला था, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया था।
छेदुकराई तथा रामेश्वरम के इर्द-गिर्द इस घटना से संबंधित अनेक स्मृतिचिह्न अभी भी मौजूद हैं।

नाविक रामेश्वरम में धनुषकोडी नामक स्थान से यात्रियों को रामसेतु के अवशेषों को दिखाने ले जाते हैं।
धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है जो पंबन के दक्षिण-पूर्व में और श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।
इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है।धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है,जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आ ही जाती है।
दरअसल, यहां एक पुल डूबा पड़ा है जिसकी १८६० में इसकी स्पष्ट पहचान हुई थी और इसे हटाने के कई प्रयास किए गए थे। अंग्रेज इसे एडम ब्रिज कहने लगे थे और फिर स्थानीय लोगों में भी यह नाम प्रचलित हो गया।
अंग्रेजों ने कभी इस पुल को क्षतिग्रस्त नहीं किया लेकिन आजाद भारत में पहले रेल ट्रैक निर्माण के चक्कर में बाद में बंदरगाह बनाने के चलते इस पुल को क्षतिग्रस्त किया गया।
३० मील लंबा और सवा मील चौड़ा यह रामसेतु ५ से ३० फुट तक पानी में डूबा है। श्रीलंका सरकार इस डूबे हुए पुल (पम्बन से मन्नार) के ऊपर भू-मार्ग का निर्माण कराना चाहती है जबकि भारत सरकार नौवहन हेतु उसे तोड़ना चाहती है।
इस कार्य को भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट का नाम दिया है। श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री श्रीजयसूर्या ने इस डूबे हुए रामसेतु पर भारत और श्रीलंका के बीच भू-मार्ग का निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा था।
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