मैं क्या करूं ?
A poem
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A poem
मैं क्या करूं, मैं क्या करूं,
खुद से खुद को तबाह करूं,
जो किया नहीं है, वो किया करूं,
जो कहा नहीं है, वो कहा करूं,
ये दिल में जितनी हैं हसरतें,
उन्हें दिल से मैं दफा करूं,
मैं क्या करूं, मैं क्या करूं।
वो जिनकी शामें हसीन हैं,
जो हमसे बेहतरीन हैं,
वो जो पारसा हैं बने हुए,
खुद से खुद को तबाह करूं,
जो किया नहीं है, वो किया करूं,
जो कहा नहीं है, वो कहा करूं,
ये दिल में जितनी हैं हसरतें,
उन्हें दिल से मैं दफा करूं,
मैं क्या करूं, मैं क्या करूं।
वो जिनकी शामें हसीन हैं,
जो हमसे बेहतरीन हैं,
वो जो पारसा हैं बने हुए,
मैं भी उन जैसों से जा मिलूं,
अपना चेहरा उतार लूं,
नक्ले गै़र किया करूं,
मैं क्या करूं, मैं क्या करूं।
है खाक बिस्तर, नींद तर,
खुद पे एक मैं करूं नज़र,
इस दर्दे दिल को सवार दूं,
जो मेरा है उसको मार दूं,
दिल में जितनी है हसरतें,
उन्हें दिल से मैं दफा करूं,
अपना चेहरा उतार लूं,
नक्ले गै़र किया करूं,
मैं क्या करूं, मैं क्या करूं।
है खाक बिस्तर, नींद तर,
खुद पे एक मैं करूं नज़र,
इस दर्दे दिल को सवार दूं,
जो मेरा है उसको मार दूं,
दिल में जितनी है हसरतें,
उन्हें दिल से मैं दफा करूं,
मैं क्या करूं, मैं क्या करूं।
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