A #Thread on SKANDGUPTA VIKRAMADITYA - THE SAVIOUR OF INDIA
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भारत की मिट्टी में एक महान योद्धा स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य का जन्म हुआ। जब संसार की सारी प्राचीन सभ्यताओं नें सबसे खूंखार और बर्बर हूणों के सामने घुटने टेक दिए तब हूणों के आतंक का विनाश करने यह महान् योद्धा ..
स्कन्दगुप्त निकल पड़े जिनका पराक्रम पूरे विश्व में अमर हुआ।
परमवीर स्कन्दगुप्त के महाप्रताप को जानने के लिए ये हूण कौन थे, कहां से आए थे और क्या चाहते थे इसको पहले समझना होगा।
हूण एक अमानुष बर्बर जाति के लोग थे जिन्होंने यूनान, मिस्र, ग्रीस और रोम को राख का ढ़ेर बना दिया था। ये इतने बर्बर थे कि बच्चों को चीर फाड़ कर, महिलाओं की दुर्दशा करके, फिर उनको जला कर, भून‌ कर खाते थे।
तीसरी और चौथी इसवी तक हूणों के अत्याचारों से सम्पूर्ण यूरोप थर्रा उठा था और देखते ही देखते समूचा रोमन साम्राज्य भी अतीत का हिस्सा बन गया। खूंखार हूण जब अट्टहास कर के जब रूस की ओर बढ़े तो वोल्गा नदी रूस के लोगों के रक्त से लाल हो उठी।
चीन और मंगोलिया के उत्तर पश्चिमी हिस्सों में जन्में बर्बर हूण प्रजाति की घुसपैठ से महाकाय चीन भी त्राहि त्राहि कर रहा था। हूण सबसे पहले बच्चों को निशाना बनाते थे ताकि अगली पीढ़ी नष्ट हो जाए इसके बाद वो महिलाओं को उठा ले जाते थे और पुरुषों को तड़पा तड़पा कर मारते थे। ..
रास्ते में उनको जो भी मिलता लूट पाट के बाद राख के ढ़ेर में तब्दील कर देते थे।
उनके आतंक से बचने के लिए चीन के राजाओं नें एक विशाल दीवार का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सदी में ही आरंभ कर दिया था।
प्रथम चरण में २००० km की विशाल दीवार देखते ही देखते चौथी इसवी तक २१००० km लंबी दीवार में बदल गई।
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में आज भी यह संवाद गांव गांव में प्रचलित है कि "बचवा सूत जा नहीं तो हूंणार आ जाई"।
१६०० वर्ष पहले जब हूणों नें भारत की धरती पर पैर रखे तब शायद हूणों को यह नहीं पता था कि जिस यूनान, मिस्र, रोम, रशिया आदि को मटियामेट करके वे अपनी अतृप्त लुटेरी पिपासा लिए गंगा यमुना की लहरों पर चढ़े चले आ रहे हैं वहां भारत मां का एक महाप्रतापी पुत्र स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य उनकी..
... मृत्यु अपने हाथों में लिए खड़ा हुआ था।
बर्बर हूण रूस की वोल्गा नदी को खून से रंगने के बाद आज के ईरान को तहस नहस करते हुए गान्धार, अफगानिस्तान पर भी कब्जा कर लिया फिर ये खूंखार हूण भारत में शक् व कुषाण साम्राज्यों को भी हराकर गुप्त साम्राज्य की ओर बढ़ने लगे।
यह समाचार जब पाटलिपुत्र के सिंहासन पर विराजमान सम्राट कुमारगुप्त को मिला तो उनके सामने यह समस्या खड़ी हो गई कि सेना का संचालन किसके कंधों पर दें
.. सम्राट कुमारगुप्त जो ६० वर्ष की आयु पार कर चुके थे, अपनी वृद्धावस्था में ज्येष्ठ पुत्र पुरूगुप्त को सेना के संचालन का भार देना चाहते थे किन्तु पुरूगुप्त समेत अन्य ज्येष्ठ पुत्रों ने भी जब बर्बर हूणों का सामना करने में अपनी अनिच्छा व्यक्त की तो ..
.. तो महाराज कुमारगुप्त के युवा पुत्र स्कन्दगुप्त, जो मात्र २५ वर्ष के थे, ने स्वयं ही आगे बढ़कर पिता का धर्मसंकट दूर करते हुए भरे दरबार में सिंह गर्जना के साथ हूणों के शीशों की माला से भारत माता के श्रृंगार का संकल्प लिया।
परमवीर स्कन्दगुप्त अपनी केवल २०,००० सैनिकों की टुकड़ी लिए बर्बर हूणों का सामना करने निकल पड़े तो सामने हूणों की २,००,००० की रक्त पिपासु सेना खड़ी थी|
इतिहास के स्त्रोत बताते हैं कि हूणों के इन जत्थों से स्कन्दगुप्त की पहली टक्कर इतनी भयानक थी कि गुप्त साम्राज्य की बुनियादें तक हिल उठीं थी।
सैन्य बल जब हताश होकर पीछे हटने लगा और यह समाचार जब पाटलिपुत्र की राज्यसभा में पहुंचा तो ह्रदयाघात से महाराजाधिराज कुमारगुप्त मृत्यु को प्राप्त हुए किन्तु पिता की मृत्यु से अनभिज्ञ स्कन्दगुप्त सेना में साहस का संचार करते रहे।
भीतरी शिलालेखों के अनुसार, स्कन्दगुप्त अपना शिविर छोड़कर सैनिकों के बीच भूमि पर ही रात्रि में विश्राम करने लगे। स्कन्दगुप्त का मातृप्रेम देखकर सेना में फिर से जान आ गई और इससे सेना बल-प्रबल प्रतापी हुई।
आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल लिखते हैं कि,
"जिस देश में सेनापति इस तरह से सैनिकों के साथ भूमि पर रात्रि गुज़ार कर तपस्या करते हैं, भला उस देश को संसार में कौन समाप्त कर सकता है।"
फिर जो हुआ उसे उस समय के संसार नें देखा कि हूणों के मुंड के मुंड भारत की धरती पर कट-कट कर गिरने लगे। हूणों के राजा को रंणभूमि में घसीटते हुए उसके सीने को चरणपीठ बनाकर स्कन्दगुप्त नें समस्त हूण जाति के अत्याचारों पर मानों अपना बायां पैर स्थापित कर विजय का डंका बजा दिया।
रंणभूमि में स्कन्दगुप्त का रौद्ररूप देख कर हूणों की बर्बरता तक कांप उठी। प्रतापी राजकुमार स्कन्दगुप्त अपने दोनों हाथों में तलवार लेकर जब हूणों के सिर काटने लगे तब हूणों को भागने तक का भी समय नहीं मिला।
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के औंड़िहार में हूणिंहार के कई शिलालेख बताते हैं कि हूण बाहुबली स्कन्दगुप्त के भय से चूहे की भांति भागते-भागते गंगा तथा यमुना नदियों में गिर गिर कर लुप्त हो गए।
राजकुमार स्कन्दगुप्त के रौद्र रूप ने सौराष्ट्र से लेकर गान्धार अफगानिस्तान तक हूणों की सम्पूर्ण जाति का विनाश कर दिया।
हूणों को कुचलकर जब युवराज स्कन्दगुप्त, पाटलिपुत्र लौटे तो जनता ने उनका भव्य स्वागत किया। चीन के राजा ने राजदूत के द्वारा संदेश भेजकर हूणों के विरुद्ध इस महान पराक्रम के लिए स्कन्दगुप्त को असंख्य शुभकामनाएं प्रेषित की।
स्कन्दगुप्त ने न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व को हूणों के आतंक से बचाया। चीन, जो कि एक विशाल दीवार हूणों से बचने के लिए बना रहा था, ने भी राहत की सांस ली।
इटली, मिस्र, ग्रीस, ईरान, अफगानिस्तान, रूस आदि जो पहले से ही हूणों की गुलामी कर रहे थे, एक सभ्य समाज की ओर अग्रसर हुए।
४०० इसवी में यदि सम्राट स्कन्दगुप्त ने हूणों के आतंक से विश्व को नहीं बचाया होता तो पूरे विश्व में एक सभ्य समाज की जगह हूणीं आतंकी बर्बर समाज होता जो बच्चों तथा महिलाओं को काटकर खाते थे।
इसीलिए प्रसिद्ध इतिहासकार आर० सी० मजूमदार नें सम्राट स्कन्दगुप्त को THE SAVIOUR OF INDIA कहा है।

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