गुरु तेग़ बहादुर ने अपना सर्वस्व बलिदान किया, ताकि हिंदुस्तान में धार्मिक कट्टरता ख़त्म हो।

वो गुरु नानक की परम्परा के वारिस थे, जिनके लिए कहा जाता था ‘बाबा नानक शाह फ़क़ीर, हिंदुओं का गुरु, मुसलमानों का फ़क़ीर’

ये परम्परा किसी धर्म के ख़िलाफ़ नहीं है, पर हर जुल्म के ख़िलाफ़ है
सिख गुरुओं की वाणी में जवाब है कि वे पाखंड, मूर्तिपूजा, धार्मिक विद्वेष, ऊँच-नीच, जातिवाद के ख़िलाफ़ क्यों लड़े
और
मानवीय मूल्यों की रक्षा, कर्म की महत्ता, सबकी सेवा और ‘मानव की जात सभै एको पहचान बौ’ के लिए उन्होंने सिख धर्म क्यों शुरू किया... 2/n
गुरुवाणी में सम्मिलित है ‘कोई बोले राम राम, कोई खुदाय, कोई सेवे गुसाईयां, कोई अल्लाय’

और

गुरु ग्रंथ साहिब, जिसको अंतिम रूप गुरु तेग़बहादुर के सुपुत्र गुरु गोविंद सिंह ने दिया, उसमें दर्ज है

'अव्वल अल्लाह नूर उपाया
कुदरत के सब बन्दे
एक नूर ते सब जग उपजया
कौन भले कौन मंदे'
ये सच है कि औरंगज़ेब ने गुरु यह बहादुर का क़त्ल करने का आदेश दिया।

ये भी सच है कि कश्मीरी पंडितों उनसे धर्म की रक्षा का आग्रह किया था।

ये भी सच है कि उनके सुपुत्र गुरु गोविंद सिंह पूरी उम्र औरंगज़ेब से लड़े।

लेकिन सच केवल इतना नहीं है...4/n
औरंगज़ेब ने गुरु तेग़ बहादुर को गिरफ़्तार करने का हुक्म दिया, तो उन्होंने उससे बचने की कोशिश नहीं की।

बल्कि 10 जुलाई, 1675 को खुद अपने तीन मंत्रियों के साथ औरंगज़ेब से मिलने आनन्दपुर साहिब से चल पड़े।

11 जुलाई को उन्हें मलिकपुर रंगरहण गाँव से गिरफ़्तार कर सिरहंद में 4 महीने रखा
5 नवंबर 1675 को उन्हें दिल्ली लाया गया, जहां औरंगज़ेब से उनका सामना हुआ।

धार्मिक जिरह के बाद औरंगज़ेब की ओर से उन्हें तीन प्रस्ताव दिए गये:
1. चमत्कार दिखा कर देवीय शक्तियाँ साबित करो
या
2. इस्लाम स्वीकारो
या
3. मरने के लिए तैयार हो जाओ।

उन्होंने मृत्यु चुनी, क्यों?
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गुरु तेग़ बहादुर ने पहला प्रस्ताव नहीं माना।

कहा कि वे सस्ते चमत्कार नहीं दिखायेंगे। सिख धर्म में चमत्कार दिखा कर भोले भाले लोगों को प्रभावित करना मना है।

उन्होंने कहा कि सच्चे भक्त ईश्वर की इच्छा को मानते हैं, सस्ते चमत्कार नहीं दिखाते।

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इस्लाम क़बूलने से उन्होंने मना कर दिया।
लेकिन क्यों, ये जानना ज़रूरी है।

उन्होंने कहा कि धर्म व्यक्तिगत मामला है।

कहा कि अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता हर व्यक्ति का अधिकार है। और इस अधिकार की रक्षा के लिए वे अपना शीश देने को तैयार हैं।

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गुरु तेग़ बहादुर ने हिंदू धर्म की रक्षा या इस्लाम के विरोध में क़ुर्बानी नहीं दी।

उन्होंने ने हर व्यक्ति के धार्मिक चुनाव की अधिकार को अपने जीवन से ज़्यादा ज़रूरी माना और इस अधिकार की रक्षा के लिए मृत्यु को चुन लिया था।

यही धार्मिक स्वतंत्रता भारत की आत्मा है
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धर्म के चुनाव के अधिकार में सिख गुरुओं की पूरी आस्था को इस बात से भी समझा जा सकता है:

न तो गुरु तेग़ बहादुर, न ही उनके सुपुत्र गुरु गोविंद सिंह ने उन कश्मीरी पंडितों को सिख बनाने की जबरन कोशिश की,जिनके अधिकार के लिए लड़े।

साथ ही गुरु गोविंद सिंह के ख़ास साथी मुस्लिम भी रहे 10/n
गुरु गोविंद सिंह का औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ संघर्ष एक आततायी राजा के ख़िलाफ़ था, न की उसके धर्म के।

इसीलिए उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब में रखा कि

'अव्वल अल्लाह नूर उपाया
कुदरत के सब बन्दे
एक नूर ते सब जग उपजया
कौन भले कौन मंदे।'
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