द्विबुद्धवाद की अंत्येष्टि!

पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य मतावलंबियों के अनुसार "ब्राह्मण" बुद्ध ( विष्णु अवतार) गौतम बुद्ध से भिन्न है इसी को मै "द्विबुद्धवाद" की संज्ञा देता हूं। पहले इसका खण्डन करते हैं:
१.नीलमत पुराण में नील कहते है की कलियुग में भगवान विष्णु जगतगुरु बुद्ध के नाम से अवतरित होंगे। उनका जन्म वैशाखमास के उस समय होगा जब चंद्रमा पुष्ययुक्त होगा।अब यह विवरण ऐतिहासक गौतम बुद्ध के जन्म से पूर्णतया मिलता है !
विस्तार पूर्वक⬇️
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आगे वैशाखशुक्लपुष्पयोग में बुद्धजन्ममहोत्सव मानने का वर्णन है,जिसमे बुद्ध की प्रतिमा का औषधीय श्रृंगार, स्नानादि करके बौद्ध रीतिरिजाव अनुसार पूजा पाठ का वर्णन मिलता है,साथ ही शाक्यो,बौद्ध चीवर,चैत्यों का वर्णन भी मिलता है जो यह प्रमाणित करता है की विष्णु अवतार गौतम बुद्ध ही है।
२.अग्नि पुराण के षोडशाध्याय में भगवान विष्णु का मायामोह रूप भगवान बुद्ध का वर्णन मिलता है। यहां पर बुद्ध को शुद्धोधन का पुत्र कहा गया है (" मायामोहस्वरूपोऽसौ शुद्धोधनसुतोऽभवत् ")।अतः यहां से भी स्पष्ट हो जाता है की बुद्धावतार कोई अन्य नही अपितु गौतम बुद्ध ही है।
३.नरसिंह पुराण में भी बुद्ध को शुद्धोधन का पुत्र कहा गया है।और उनकी क्षत्रिय सूर्यवंशी वंशावली भी बताई गई है ("शुद्धोधनाद्बुध: बुधदित्यवंशो )। और यहां वर्णित बुद्ध विष्णु अवतार ही है ("कलौ प्राप्ते यथा बुद्धो भवेन्नारायण: प्रभु")।
उपरोक्त प्रमाणों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है की पुराण वर्णित बुद्ध कोई और नही अपितु गौतम बुद्ध ही है।ऐतिहासिक दृष्टि से भी यही माना गया है की गौतम बुद्ध को ही हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में समावेशित किया गया।यह भारतीय सभ्यता में दर्शनिक सामंजस्य को दिखाता है
यह एक पक्ष से ही नही होता आ रहा अपितु यह दर्शनिकावशोषण भारत के हर परंपरा में दृष्टिगोचर होता है, बौद्ध शास्त्रों में भी हिंदू देवी देवताओं,दर्शन इत्यादि को बौद्ध दर्शनानुसार में समावेशित किया गया है ,कभी इसपर विस्तार से चर्चा करेंगे।
हिमालई परंपरा में दोनो धर्मों में मेलजोल कितना अच्छा था। हिमालई बौद्ध ग्रंथो में हिंदू देवी देवताओं को पूजनीय माना गया है,और उनका दर्शनिक दृष्टि से समावेश किया गया है तो बुद्ध और बौद्ध प्रतीकों को भी हिंदू तंत्रों में सम्मिलित कर दिया है
उदाहरणस्वरूप श्री नेत्र तंत्र बुद्ध पर ध्यान करने को कहता है । और यहां भी बुद्ध गौतम बुद्ध ही है ,जो की उनके वर्णन से स्पष्ट है । "प्रलंबश्रुतिचीवर:" से यह बात स्पष्ट हो जाती है। https://twitter.com/RamaInExile/status/1385890482203496450?s=19
इसके अतिरिक्त जगतगुरु श्री माध्वाचार्य जी के महाभारत तात्पर्य निर्णय और श्री वदीराजस्वामीकृत दशावतार स्तुति भी शुद्धोधन सुत गौतम बुद्ध की ही बात करती है।श्री बन्नाजी गोविंदाचार्य के अनुसार माधवीय परम्परा में गौतम बुद्ध की ही बात हुई है।

विस्तार से देखे ⬇️ https://twitter.com/RamaInExile/status/1383384335705776131?s=19
द्विबुद्धवाद प्रेरित अंतर्विरोधी तर्को का निराकरण

~भागवत पुराण में वर्णित बुद्ध गौतम बुद्ध से नही मिलते जुलते। इसका समाधान श्रील जीव गोस्वामी जी ने कर दिया है।उनके अनुसार इस श्लोक में वर्णित बुद्धावतार किसी अन्य कलियुग का है ,ये अवतार इस कलियुग का नही है।
कुछ अन्य तर्क ::
एक अन्य तर्क से भी इस श्लोक और गौतम बुद्ध में सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। गौतम बुद्ध की माता महादेवी माया थी,विभिन्न गौडीय टीकाकारों के अनुसार अञ्जना शब्द माया के लिए भी प्रयुक्त हो सकता है ।
मेरे मतानुसार चुंकि महादेवी माया के पिता का नाम "अञ्जन" था , अत: संभवत: महादेवी माया के लिए "अञ्जना" प्रयुक्त हो सकता है यहां। और कीकट संभवत: प्राचीन मगध रहा होगा जिसमे नेपाल लुंबनी भी होगा।
और श्रीधरी टीका में "कीकटेषु मध्ये गयाप्रदेशे" ऐसा लिखा हुआ है,तो गया क्षेत्र कीकट का मध्य भाग हो सकता है,तो कीकट क्षेत्र की सीमा गया क्षेत्र में सीमित नहीं थी।और अगर यह मान भी लिया जाय की कीकट गया क्षेत्र है तो भी गौतम बुद्ध की ज्ञान-ध्यान-बुद्धत्व की धरती तो गया क्षेत्र ही थी।
द्विबुद्धवाद का मूल और इसके पीछे की मंशा

ऐसा पुराणोक्त और बौद्धग्रंथोक्त है की गौतम बुद्ध ने कुछ विशेष प्रकार के लोगो° का विरोध किया। ऐतिहासिक और हिन्दू धर्म ग्रंथो के गहनता पूर्वक अध्ययन के बाद ये स्पष्ट हो जाता है की प्राचीन काल से ही हिंदू पौराणिक समाज दो विचारो में विभक्त..
...रहा है बौद्ध धर्म के प्रति।एक समूह बुद्ध धर्म की धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करता था और बुद्ध में दिव्यता देखता था साथ ही दर्शनिक खण्डन भी करता था,इसी समूह ने बुद्ध को विष्णु अवतार की संज्ञा दी ।
इसके विपरीत एक समूह° बुद्ध के प्रति अनुकूल नहीं रहा यह बात कल्कि पुराण में लिखित बौद्धों के प्रति हिंसा ,और भविष्य पुराण में शाक्य सिंह गौतम बुद्ध को दैत्य बताते हुए श्लोक इंगित करते है। यही समूह° वर्तमान समय में द्विबुद्धवाद के जनक है। ऐसा मेरा मत है।पीछे की मंशा द्वेष है।
द्विबुद्धवाद का परिणाम

द्विबुद्धवाद का सिद्धांत अंतरिक रूप से बुद्ध के प्रति ईर्ष्या और द्वेष के प्रस्फुटन को सैद्धांतिक धरातल प्रदान करता है। इसकी आड़ में धार्मिक एकता को चोट पहुंचाना आसान है।बुद्ध के विशेष प्रकार के लोगो के प्रति प्रतिकूल विचारो को उद्धृत करेगा ये समूह ।
और ये शुरू भी हो गया है। लोगो पर मनोवैज्ञानिक असर डालते हुए ये गुट अपनी विचारधारा सफलता पूर्वक संप्रेषित कर सकता है। भविष्य में ये विचारधारा नकली अप्रमाणिक नवबौद्धों को ईंधन देंगी और भारत विरोधी गतिविधियों को प्रबल होने का सुअवसर मिलेगा।
एक और प्रमाण!
सयाण के अनुसार भी कीकट अर्थात नास्तिक मनुष्यगण । तो इस अर्थ से , भागवत पुराण के "कीकटेषु भविष्यति" की व्याख्या होगी की बुद्ध नास्तिको के बीच अवतरित होंगे।
होरा शास्त्र में भी बुद्ध का वर्णन .. https://twitter.com/RamaInExile/status/1383138789791453188?s=19
और अब आंखो की पट्टी खुल गई हो तो निम्नोक्त थ्रेड का अवलोकन करे। https://twitter.com/RamaInExile/status/1382940121712918529?s=19
थोड़ी और आंख खुल गई हो, तो और खोल दो अब !

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