


आइए आज समझते है विपक्षियों और कथित दलितों का ब्राह्मणों से नफ़रत का कारण।
हमारे देश मे 9वी शताब्दी से हिन्दुओं को और हिन्दुओं के संस्कृति को मिटाने का कार्यक्रम शुरू है यूनानी, उज़्बेकिस्तान अरेबियन ओर मंगोलियन द्वारा। ये अपनी संस्कृति तो त्यागे ही साथ मे दूसरों को भी u
उनकी संस्कृति से विमुख होने को मजबूर किए।
किन्तु हिंदुस्तान एकमात्र ऐसा देश था जो अपनी संस्कृति को त्यागना नहीं चाहता था। कई बार हमारे मंदिरों को तोड़ा गया किन्तु ब्राह्मण और क्षत्रियों ने मिल कर पुनर्निर्माण किया क्योंकि वो समझ चुके थे उनकी शाजिस को। वो जानते थे कि अगर हमारी ये
किन्तु हिंदुस्तान एकमात्र ऐसा देश था जो अपनी संस्कृति को त्यागना नहीं चाहता था। कई बार हमारे मंदिरों को तोड़ा गया किन्तु ब्राह्मण और क्षत्रियों ने मिल कर पुनर्निर्माण किया क्योंकि वो समझ चुके थे उनकी शाजिस को। वो जानते थे कि अगर हमारी ये
धरोहर ही नही रही तो आगे हम अपने अग्रजों को क्या दिखा कर समझाएंगे की हमारे ईश्वर कौन है, हम उन्हे क्यों पूजते है, उनका क्या काम है, वो कैसे संसार को रचे इत्यादि।जीवन के नियम को बताते थे।
और ये काम ब्राह्मणों का ही था। तब ब्राह्मण अपनी जिम्मेदारी बहुत ही सतर्कता से निभाते थे। तब
और ये काम ब्राह्मणों का ही था। तब ब्राह्मण अपनी जिम्मेदारी बहुत ही सतर्कता से निभाते थे। तब
गुरुकुल हुआ करता था, जहां 7 साल के बच्चो को प्रवेश मिलता था और 14,से 16 तक की आयु होते ही बच्चे हर कला, विज्ञान और शास्त्र में परिपक्व हो कर निकलते थे। आज ऐसा नहीं है।
समाज में आए दिन धर्म चर्चा, यज्ञ हवन होता था जिसके द्वारा लोगों को पुनः अपने धर्म को समझने का अवसर मिलता था। तब
समाज में आए दिन धर्म चर्चा, यज्ञ हवन होता था जिसके द्वारा लोगों को पुनः अपने धर्म को समझने का अवसर मिलता था। तब
हम बहुत समृद्ध थे। कोई भेद भाव नहीं था।
जब आक्रांताओं मे इस्लाम नामक आक्रांता जुड़ा तब हालत गम्भीर होने लगी। ये लोग सिर्फ धन और जन को ही नहीं बल्कि स्त्रियों के सम्मान को भी लूटने लगे। उससे भी जब इनकी मनसा पूर्ण नहीं हुई तब ये तलवार के नोक पर धर्म बदलवाने लगे।अगर पंडित या पुजारी
जब आक्रांताओं मे इस्लाम नामक आक्रांता जुड़ा तब हालत गम्भीर होने लगी। ये लोग सिर्फ धन और जन को ही नहीं बल्कि स्त्रियों के सम्मान को भी लूटने लगे। उससे भी जब इनकी मनसा पूर्ण नहीं हुई तब ये तलवार के नोक पर धर्म बदलवाने लगे।अगर पंडित या पुजारी
इनका विरोध करते तो ये लोगों के मन में जहर भरते की ये तुम्हारे दुश्मन है इसलिए तुम्हें भटका रहे है। अपने जान के मोह में धीरे धीरे लोग ब्राह्मणों को अपना दुश्मन समझने लगे जो कि आज भी है।
इतना ही नहीं, इनलोगों ने ब्राह्मण और क्षत्रियों को भी बांट दिया। जो एक दूसरे के पूरक थे वो धीरे
इतना ही नहीं, इनलोगों ने ब्राह्मण और क्षत्रियों को भी बांट दिया। जो एक दूसरे के पूरक थे वो धीरे
धीरे बंटते गए। भला हो अंग्रेजो का कि वो इस चीज को समझे और मुस्लिम और हिन्दुओं को अलग किए मुस्लिमो वाले चाल से ही। किन्तु कुछ समय बाद हिन्दुओं को दोनों की चाल समझ आईं, क्योंकि अंग्रेज़ भी लूट और ऐयाशी मे इनसे दो कदम आगे थे। अब एक बार फिर ब्राह्मणों ने समाज को संगठित करना शुरू किया
तो इनलोगो ने ब्राह्मणों को ही जालसाजी द्वारा बदनाम करना शुरू किया। इन्होंने ब्राह्मणों में नशे की और औरत की लत डाली और फिर समाज में उनके इस चरित्र को नंगा किया। अब हम कई जाती मे बट चुके थे। खैर, एक समय ऐसा आया कि ईस्ट इंडिया कंपनी कमजोर पड़ने लगी, ओर उनके शाजिस का नतीजा भारत का
विभाजन बना। अब एक सोची समझी रणनीति द्वारा सरदार वल्लभ भाई पटेल को बहुमत मिलने पर भी नेहरू पीएम बना और देश का दुर्भाग्य प्रबल बना। अब जो काम अंग्रेज़ कर रहे थे वो मुस्लिम करने लगे। ब्राह्मणों के चरित्र का हनन। कुछेक ब्राह्मण के कारण सभी ब्राह्मण बदनाम। फिर छुआ छूत के नाम पर समाज
को बांटा, फिर SC ST एक्ट बना कर समाज को पूरी तरह एक दूसरे का दुश्मन बना दिया गया। आज भी जो कुलीन ब्राह्मण है उनका प्रयास है समाज को पुनः जोड़ने का, इस कारण वो आज भी दुश्मन बताए जा रहे हैं।
दोस्तों, जैसे सैनिक देश रक्षा के लिए जरूरी है वैसे ही संस्कृति रक्षा हेतु ब्राह्मण जरूरी है
दोस्तों, जैसे सैनिक देश रक्षा के लिए जरूरी है वैसे ही संस्कृति रक्षा हेतु ब्राह्मण जरूरी है
समय रहते समाज के सभी वर्ग इन बातों को विचारिए और अपनी अमूल्य सभ्यता संस्कृति और धरोहर को बचाइए वरना हमारा देश भी अशांत इस्लामिक राष्ट्र बनेगा।हमारे पूर्वजों का बलिदान व्यर्थ जाएगा।हमारा काम है सरकार के नीतियों को समझना और जो सरकार हमारी संस्कृति की रक्षा हेतु सक्षम है उसका साथ दे