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जेहाद की तुलना कृष्ण की गीता के धर्म युद्ध से करने वाली @RubikaLiyaquat जी

लगता है की आपने श्रीमद्भवत गीता के बारे राही मसूम रजा जैसों के केवल फ़िल्मी डॉयलॉग्स ही सुने हैं

गीता में, शंखनाद हो चुका था और युद्ध की औपचारिक घोषणा हो चुकी थी, पर, फिर भी अर्जुन प्रश्न पूछने लगा
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इसका तात्पर्य क्या है रूबिका जी ? इसका तात्पर्य यह है रूबिका जी की सनातन धर्म में प्रश्न पूछने का अधिकार सदैव है और यह मूल अधिकार है।
प्रश्न पूछे जाने पर , गला रेते जाने का भय नहीं है।
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दूसरी बात रूबिका जी, जब अर्जुन ने प्रश्न करना आरम्भ किया तब श्री भगवान ने यह नहीं कहा की “ सुनो ! मैं ईश्वर हूँ चुपचाप मेरी बात मान लो। जैसा की आसमानी किताबों में होता है। न खाता न बही जो दूत पूत कहें वही सही।
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तीसरी बात, गीता में श्री भगवान हमें शुक्रवार को अन्य दिनों से श्रेष्ठ नहीं बताते हैं। वे, लाल या काले कपड़े को श्रेष्ठ नहीं बताते। वे, माथे पर आड़ा चंदन लगाओ या टेढ़ा चंदन लगाओ यह नहीं समझाते।
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वे जीवन में एक हज ( तीर्थ यात्रा ) कम से कम करो या जीवन में जब समय मिले तीर्थ यात्रा करो इस पर भी अपना निर्णय नहीं थोपते।
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चौथी बात, श्री भगवान, हम मनुष्यों को ईद मनाने के लिए कैसे किसी जानवर की हत्या करनी है उसकी रूपरेखा नहीं बताते । वे यह भी नहीं कहते की हे हिन्दुओं ! फलनवे उपवास और ढिमकवे त्योहार ( त्योहार को ही अरबी भाषा में ईद कहते हैं ) के बाद जो मेरी बात न माने उसका गला रेत दो
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उनकी स्त्रियाँ लूट लो और उनके बच्चों का अंडकोष काटकर उनको हरम का चौकीदार बना दो।
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@RubikaLiyaquat जी thread बहुत लम्बा हो जाएगा अत: इसका उपसंहार करते हुए मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ की श्रीमद्भगवत गीता का संदेश पूरी मानव सभ्यता के लिए है और इसमें लकीर की फ़क़ीरी नहीं बल्कि भगवान ने हमसे हमारी बुद्धि का उपयोग करने को कहा है।

जय श्री कृष्ण
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