इस्लामोफोबिया बनाम इस्लामिक कट्टरता : एक धागा

1.फ्रांस वो देश है जिसने राज्य के संचालन में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की स्थापना सबसे पहले की. फ्रांसीसी क्रांति पूरी दुनिया में तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा बनी. स्वंतंत्रता, समानता, बंधुत्व शब्द फ्रांसीसी क्रांति से ही निकले.
2.आधुनिक समय में फ्रांस ने बड़े दिल से अश्वेतों को शरण दी जिसमें बहुत से मुस्लिम हैं.फ्रांस जाएंगे तो योरोप के देश में अश्वेतों की संख्या देखकर ताज्जुब में पड़ जाएंगे.फ्रांस खुली सोच वाला देश है.जिनको शरण दी वो उसे ज्ञान पढ़ा रहे हैं कि अपनी लोकतांत्रिक व स्वतंत्र आदतों को बदले.
3.किसी को क्या हक है कि वो फ्रांस को बताए कि उसे कितनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देनी है. भावनाएं आहत होने पर सभ्य समाज के तौर तरीके अपना कर विरोध होना चाहिए. हत्या को छुप कर गर-मगर के जरिए जायज न ठहराएं. आहत होना किसी का व्यक्तिगत मामला है राज्य की नीति उसके लिए नहीं बन सकती.
4.ईशनिंदा की संकल्पना ही आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप नहीं.ईशनिंदा के लिए मृत्युदण्ड तो कबीलाई सोच है.अगर ये कहीं लिखा है तो आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार उन प्रावधानों को बदलना चाहिए.पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश में भी एक वर्ग ईशनिंदा कानून खत्म करने की मांग कर रहा है.
5.सभी धर्मों में धार्मिक सुधार हुए हैं. ईसाई धर्म में तो धार्मिक सुधार के बाद बाकायदा अलग-अलग पंथ ही बन गए. हिंदूधर्म में लंबे समय तक धार्मिक सुधार होते रहे. ब्रम्ह समाज,आर्य समाज आदि सुधार का हिस्सा बने. धर्म को स्थिर संकल्पना बनाने के अपने जोखिम हैं जिनसे आज दुनिया दो चार है.
6.पूरी दुनिया में इस्लाम के धर्मगुरुओं को बैठ कर इस पर विचार करना चाहिए वर्ना इस हिंसक सोच का कोई अंत नहीं होगा. पाखंड करके तो इस्लामिक कट्टरवाद की समस्या दूर नहीं होगी. जार्ज बुश जू. बोलते थे इस्लाम इज़ अ पीस लविंग रिलिजन और मुल्ला उमर उसी दौर में जेहादी इस्लाम को सही बताते थे.
7.ऐसे में किसकी बात मानेगा अनुयायी? एक मुसलमान की नजर में बुश को इस्लाम की ज्यादा जानकारी होगी या मुल्ला उमर को? जब मौलाना ही मुल्ला उमर को खारिज करेंगे तब बनेगी बात. दुनिया को अनावश्यक हिंसा से बचाने की जिम्मेदारी मुस्लिम धर्मगुरुओं को उठानी चाहिए.
8.इस्लाम के धर्मगुरुओं को बगदादी जैसी सोच का खुल कर विरोध करना होगा. ये कहना होगा कि सिर काट देना कोई इस्लाम की शान में वद्धि नहीं करता. हिंसक प्रवृत्तियों को मौलाना गैरइस्लामिक घोषित करें. वर्ना फ्रांस जैसी घटनाएं होती रहेंगी, इस्लाम की बदनामी होगी, इस्लामोफोबिया बढ़ता जाएगा.
9.समस्या वैश्विक इस्लामिक भातृत्व का अतिवाद भी है. जब आप एक देश में रहते हुए अपने मुल्क से ज्यादा उन मुल्कों से कनेक्ट करते हैं जहां इस्लामिक शासन है तो आप अपने देश और नागरिकों के बीच भाईचारे के ऊपर मजहब को रख देते हैं.ये आधुनिक सिद्धातों के विरुद्ध तो है ही न्याय के भी खिलाफ है.
10.पूरी दुनिया को अगर किसी बात से दिक्कत हो रही है तो उसमें गलती दुनिया की नहीं है. आधुनिक संकल्पनाओं के ऊपर खिलाफत के साम्राज्य सपना निहायत अव्यावहारिक है पर ये बात मुसलमानों को समझाने का काम इस्लाम के ही रहनुमाओं को करना होगा.
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