I’m giving three random explanations. I hope all 3 would make some sense in the end. (1/8) https://twitter.com/_sthitpragya/status/1319638583662104578
पंचामृत में घी वह एक मात्र द्रव्य है जिस्मे ‘अग्नि’ और ‘जल’ तत्त्व मुख्य होते है | कठोपनिषद के श्लोक कहते है की - अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश यह पंचमहातत्त्वो में से जो सबसे पुराने है वह अग्नि+जल ही परम ज्ञान के कारक है, उनकी(ज्ञान की) आहुति जीवनरूपी यज्ञ में देनी चाहिए | (2/8)
एक और श्लोक कहता है की - ब्रह्म एक बिना धुए (fumes) के जलती शुद्ध ज्योत (यज्ञ) है | जैसे अपना हेतु पूर्ण होते ही शरीर पंचमहाभूत में विलीन हो जाए, शरीर की प्राण-शक्तिया (संवेदना, स्मरण, बुद्धि, अहम् ) सृष्टि में विलीन हो जाए , वैसे ही आत्मा ब्रह्म में विलीन हो जाती | (3/8)
जब शरीर विलीन होता है, तब धुआँ छोड़ता है, विघटन disintegration कहलाता है, लेकिन आत्मा disintegrate नहीं होती, वह ब्रह्म में dissolve होती है, ब्रह्मरूपी यज्ञ में होनेवाली इस पवित्र आहुति में कोई धुआँ नहीं छूटता | (4/8)
जब घी का दिया जलता है, तब disintegration नहीं होता dissolution होता है | सम्पूर्ण दहन से the most inert state कार्बन (आँखों क लिए काजल बनता) और water बनाता है | क्युकी घी तेल की तरह वनस्पतिज चर्बी नहीं, जैविक (या प्राणिज) चर्बी है | (5/8)
घी जैसी प्राणिजचर्बी बॉडी में बिना outproduct दिए dissolve हो जाए उसे Ayurveda जीवनयज्ञ को निरंतर रखने की सर्वोत्तम आहुति कहते है | अगर कर्मो की आहुति देने से पहले जीवन बुझ गया तो ब्रह्म में विलीन कब होंगे ? इसीलिए जो निरंतर कर्मशील है वह अपने शरीर में घी की आहुति देते है |(6/8)
एक और श्लोक कहता है की जो व्यक्ति सृष्टि में हर जगह disintegration ही देखेगा, dissolution / integration (संकलन/योग) से जो मुँह मोड़ लेता, उससे आत्मा का ब्रह्म क साथ होता संकलन नहीं दिखाई देगा | (7/8)