सही बात। सरकार बनने के बाद राजनीतिक दलों का काम समाप्त होता है परंतु समर्थकों का काम आरंभ होता है। नेता रोडवेज़ के ड्राइवर की तरह होते हैं, और सवारी भरने पर ही बस में बैठते हैं। हज़ार लोगों का जुलूस कई शहरों में निकाल दीजिए, पहुँच जाएँगे और चौड़े मे समर्थन में भाषण भी देंगे। https://twitter.com/rahulroushan/status/1318039177041096704
झारखंड में एक हत्या हुई, केरल से लेकर दिल्ली तक लोग सड़क कर उतर गए। दिल्ली में पिछले दो महीने में दो हत्याएँ हुईं। तबरेज तो मार पीट के पाँच दिन बाद मरा, ये दोनों हत्याएँ तो तथ्यात्मक रूप से पिटाई से ही हुई। कितने लोग सड़क पर उतरे? पालघर में साधुओं की हत्या पर कितनी रैली निकली?
जब आप अपनी बात नहीं उठा सकते हैं तो सरकार क्यों उठाएगी? यदि लोग सड़क पर २०१४ में नहीं उतरते तो आज @narendramodi सरकार केंद्र में नहीं होती। बस का ड्राइवर बस यात्रियों को पहुँचाने के लिए चलाता है, लाँग ड्राइव के लिए नहीं। ख़ाली बस लेकर कोई नहीं जाएगा।
राजनैतिक बस पर चढ़िये, राजनीति भी बदलेगी, राजनैतिक संवाद भी। दस बड़े शहरों में दो दो हज़ार की संख्या में लोग सड़क पर उतर कर #पालघर पर न्याय माँगते तो मोदी क्या राष्ट्रपति भी राष्ट्र को संबोधित कर के निंदा करते। उस कैमरे पर हुई हत्या पर तो #JusticeForSushantSinghRajput भी चुप है।
राजनीति बस स्टैंड है। हम एक नागरिक के नाते उस बस पर चढ़ना चाहते हैं जो भरी हुई है क्योंकि हमें लगता है वो बस पहले निकलेगी। सरकार भरी हुई बस को पहले स्टैंड से निकालती है। क्या कारसेवा के बिना राम जन्मभूमि का निर्णय होता? क्यों न्यायपालिका उसे कश्मीरी पंडितों के केस सा नहीं मानती
सरकार आपके टीएल पढ़कर काम नहीं करेगी। टीएल पर तो लोग मिनी स्कर्ट पर भी क्षोभ प्रकट करने लगते हैं। उस पर कोई दल अपनी राजनीतिक पूँजी क्यों लगाएगा? भारत मे १३ मिलियन या १.३ करोड़ लोग ट्विटर पर हैं।
मान लीजिए भाजपा के वोट शेयर के बराबर, लगभग ४० प्रतिशत भाजपा समर्थक हैं। ये बने कोई पचास लाख। १३० करोड़ के देश में क्या राजनीति पचास लाख लोगों के विचारों पर होगी? ऐसा भ्रम पैदा कर के विपक्षियों को व्यस्त रखा जाता है। राहुल गांधी ट्विटर पर ज्ञान देते है, चुनाव हार जाते हैं।
घरों में बैठ कर समाज या सरकार दोनों नहीं बदली जाती। विपरीत विचारधारा सड़क पर उतरती है, अदालत में जाती है, माहौल बनाती है और सरकार को उस पर जुड़ना ही पड़ता है। महाराष्ट्र में यदि जनता धरने पर उतरती, अदालत में अर्ज़ी दाखिल होती तो #पालघर के लिए CBI क्यों न होती। मोदी जी भी बोलते।
भारत पर गौरी या ख़िलजी की जीत का बड़ा कारण जनता का जातियों में कटा रहना था, जिसके कारण बड़ा वर्ग न युद्ध के लिए प्रशिक्षित था ना ही उसमें रुचि रखता था। जैसे आज लोग पालघर या दिल्ली लिंचिंग पर मोदी को कोसते हैं, तब पृथ्वीराज चौहान को कोसते होंगे। सोचिए। 

