पापा ने वो मुम्बई वाले लड़के को हाँ कर दिया,परसों ही लड़के वाले आ रहे रोका के लिए..

हम्म..बधाई हो! लड़का अच्छा है,तू खुश रहेगी..

प्लीज़! बकवास मत कर अब।

अरे नहीं,चल जाने दे.. शाम में आज आख़िरी बार मिलते हैं.. युनिवर्सिटी के सामने कैफ़े पर

5 बजे आती हुँ...
आदत से मजबूर मैं समय से पहले 4 बजे ही पहुँच कर इंतज़ार करने लगा..पर वो अपने आदत से मजबूर आधे-एक घंटे की देरी से आने की जगह 30 मिनट पहले ही 4:30 पहुँच गयी।

हमेशा की तरह सड़क पर ही छोड़ कर अंदर आयी पर हमेशा की तरह मैं चाभी लेकर कार पार्क करने बाहर नहीं गया न ही वो बोली...
पहली बार हम एक साथ थे और 10-15 मिनट तक कुछ बोले बिना इधर उधर ताकते रहे..
खैर अंत में खामोशी को उसने ही तोड़ा और कहा क्या खाएगा।

शादी की पार्टी ऐसे जगह पर नहीं,किसी 5 स्टार में लूँगा।

सुनते ही मुझे ग़ुस्से में घूर कर देखने के बाद वेटर को मशरूम चिल्ली गारलिक ब्रेड लाने को बोल दी
फिर से खामोशी छा गयी...खाना आया,पर आज हमेशा की तरह मैं जल्दी जल्दी खाने की जगह सभ्यता से धीरे धीरे खा रहा था,बकवास बंद था, वो हमेशा की तरह “नहीं मेरा वेट बढ़ जाएगा तू खा” कहने की जगह खाने में लग गयी...

खाना ख़त्म होने के बाद फिर शांति छा गयी.. न मैं कुछ बोला ना वो कुछ बोली..
7-8 सालों से साथ होने के बावजूद मेरी बात कभी खतम नहीं होती थी,आज इतना कुछ पूछने को था,आख़िरी मुलाक़ात थी फिर भी मेरे पास शब्द ही नहीं थे..शायद पहला मौक़ा होगा जब हम मिले हों और उसने मेरे से ज़्यादा बोला हो..

मन कर रहा था साथ वाले कुर्सी पर बैठ उसका हाथ थाम लूँ और उसे रोक लूँ
कुछ ऐसी ही कशमकस में वो भी थी,आँखे चीख चीख कर कह रही थी की प्लीज़ रोक ले मुझे,चल मेरे घर मेरे परिवार से बात कर पर न वो कुछ बोल पायी न मैं....भावनाओं के ज्वार में फँसे हम खो से गए थे तभी उसका फ़ोन बजता है और घर से बुलावा आ जाता है.. आज फ़ोन सबसे बड़ा दुश्मन लग रहा था...
आज ऐसा लगा जैसे 3 घंटे 3 मिनट में बित गये हों..अभी तो आयी थी और तुरंत जा रही है...आँसु बार बार पलकों पर दस्तक दे रही थी,उसे भी शायद आख़िरी बार उसे देखना था पर मैं उसे बाहर नहीं आने दिया..क्योंकि अगर वो बाहर आ जाता तो शायद तमाशा बन जाता..
धीरे धीरे छोटे कदमों से थके से बाहर निकल कर सड़क पर आए..खामोशी ऐसी मानो जन्मजात गूँगे पैदा हुए हों दोनों.. चलते चलते हाथ छू गया,पर आज कोई शरारत न कर पाया..न आज उसे कल के प्लान पुछ पाया..समझ नहीं आ रहा था हम मिले ही क्यों...

फिर वो वक़्त भी आ गया जब वो चुपचाप कार में बैठ गयी..
और हम बस एक दूसरे को देखने लगे....जी चाह रहा था उसे ऐसे गले लगा लूँ की सारी ज़िंदगी उसके गर्माहट का अहसास रह जाए पर....

और फिर बिना कुछ कहे वो चली गयी...मैं उसे जाते हुए देखता रहा...चीख चीख कर रोने का मन हो रहा था,उसे रोक ना पाने का ग़ुस्सा खुद को ख़त्म कर देने को कह रहा था पर..
अभी इसी ज्वार में फँसा था की पीछे से कार के होर्न की आवाज़ आयी...
अरे ये वापस क्यों आयी.......दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा..समझ नहीं आ रहा था की क्या प्रतिक्रिया दी जाए..मैं इसी उधेड़बुन में था तभी वो अचानक कार से बाहर आयी और बोली हाथ आगे कर अपना जरा
मैंने काँपते हुए हाथ आगे कर दिया तब वो अपना हाथ आगे की और मेरे हाथ में 500 का एक नोट रखते हुए बोली
-आगे से अपना बिल खुद भरना और यहाँ उधारी वाले डायरी से मेरा नम्बर हटवा देना..आज भी बिल के लिए मुझे फ़ोन किया इसलिए वापस आना पड़ा.. मुफ़्तख़ोरी करने की जगह की ढंग का काम ढूँढ ले..बाय
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