(Thread)
जो मुस्लमान ये कह रहे हैं की, हुज़ूर(S.A.W) की बेहुरमती करने वाले का सर क़लम करना जाएज़ है, उनसे कुछ सवाल हैं?
1. चलिए माना किसी ने कार्टून बनाया, किसी ने मज़ाक़ उड़ाया. पर क्या आपने हुज़ूर(S.A.W) को देखा है? क्या किसी ने उनका चेहरा देखा है?
कोई पत्थर पे हुज़ूर(S.A.W) लिख जायेगा तो क्या वो पत्थर हुज़ूर की तस्वीर बन जायेगा? जब किसी ने उनको देखा ही नहीं है, उनकी तस्वीर बनाने की मुमानियत थी. तो भौंकने दो जिस को जो भौकना है? जब तुम बुरा मानते तो वो तस्वीर हुज़ूर(S.A.W) की हो जाती है.
यानी की तुम्हारी वजह से हुज़ूर(swa) की बेईज्ज़ती होती है. गर झूठ है, तो क्या बुरा मानना, बुरा तो सच का माना जाता है?
2. वो हुज़ूर(S.A.W) का क़िस्सा ज़रूर सुना होगा जहाँ हुज़ूर(swa) जब भी नमाज पढ़ने मस्जिद जाते तो उन्हें रोज ही एक बूढ़ी औरत के घर के सामने से निकलना पड़ता था.
वो बूढ़ी बदतमीज़ और गुस्सैल, जब भी हुज़ूर(S.A.W) उधर से निकलते, वह उन पर कूड़ा-करकट फेंक दिया करती थी. हुज़ूर(S.A.W) बगैर कुछ कहे अपने कपड़ों से कूड़ा झाड़कर आगे बढ़ जाते. रोज की तरह जब वो एक दिन उधर से गुजरे तो उन पर कूड़ा आकर नहीं गिरा. उन्हें कुछ हैरानी हुई पर वो आगे बढ़ गए.
अगले दिन फिर ऐसा ही हुआ तो हुज़ूर(S.A.W) से रहा नहीं गया. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी. बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला. बीमारी की वजह से वो बहुत कमजोर हो गई थी. हुज़ूर(S.A.W) उसकी बीमारी की बात सुनकर हकीम को बुलाकर लाए और उसकी दवा का इंतजाम किया. उनकी तीमारदारी और देखभाल से ठीक हो गयी.
और उसने इस्लाम क़ुबूल कर लिया? जब हुज़ूर(S.A.W) खुद अपने पे कीचड़ उछालने वालो का बुरा नहीं मानते थे, तो तुम कौन खां हो यार? अमाल तो तुम से अच्छे बन नहीं रहे हैं, बस दुनिया भर का गुस्सा करवा लो. मियां अमाल में मेहनत लगती है, गुस्सा तो सबके पास टके सेर है.
3. चलो माना तुम्हारे दिल को ठेस पहुची, तो क्या तुम पूरी दुनिया को आग लगा दोगे? ठेस तो किसी भी बात पे लग सकती है. लड़की ने बात नहीं की, दिल को ठेस लगी, तेज़ाब फ़ेंक दो. आज रोटियां जल गई थी, दिल को ठेस लगी, बीवी का गला घोंट दो. कार वाला कीचड़ उछाल गया, दिल तो ठेस लगी, कार जला दो.
भाई, तुम्हारे दिल की ठेंसों का कोई इलाज नहीं है. पहले तो न जाने कौन से कार्टूनों को हुज़ूर(S.A.W) का मान कर उनकी बेईज्ज़ती करवा रहे हो, फिर ऊपर से सर काट काट के अपनी जहालत दिखा रहे हो?
ये तीन बातें है, अगर जवाब है तो बहस करो,बेकार में मुसलमानों का नाम खराब मत करो.
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