अम्बानी और अडानी:

राहुल ने क्यों लिया अडानी अम्बानी का ही नाम ?

राहुल, नाम लेकर दो घरानों को गरिया रहे हैं। पर जैसा कि आप जानते है, 2014 के पहले ये लोग कोई ठेला लगाकर समोसे तो नही बेचते थे।

तो इनकी विकास गाथा में किसका कितना बड़ा हाथ है, जानना पड़ेगा।

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1. अम्बानी विकास गाथा:

साठ के दशक में शुरू हुआ अम्बानी उद्योग कपड़े और पोलियस्टर के व्यापार में था। धीरूभाई के साथ एक और पार्टनर थे, जिसे पांच साल बाद हटा दिया था, उसका नाम किसी को याद नही। मुझे भी नही, याद है तो गुरु फ़िल्म के वो सीन जिसमे खाली खोखे से भी पैसे बनते थे.

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लाइसेंस कोटा राज के जमाने मे, आप उतना ही एक्सपोर्ट करोगे, जितना इम्पोर्ट करोगे- टाइप नियम थे।

तो ये खाली खोखे मंगाते, और उतने ही भरे खोखे भेजते। खैर ..

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फर्स्ट जनरेशन उद्योग 1990 आते आते इतना बड़ा हो गया कि बांबे डाइंग के नुस्ली वाडिया जैसे खानदानी उद्योगपति को टक्कर देने लगा और फिर 1993 में हजीरा में एक प्लांट लगा।

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हजीरा प्लांट असल मे पोलिएस्टिरिन बनाने के उद्देश्य से लगा, लेकिन इससे ग्रुप को हाइड्रोकार्बन का स्वाद मिल गया।

ग्रुप पेट्रोलियम की ओर मुड़ा, याद रहे इसकी खरीद बिक्री सिर्फ सरकारी कम्पनियां करती हैं। इसलिए सरकार का जेब मे होना पहली जरूरत है.

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जामनगर की आटा चक्की ( माल दूसरे का, हम पीसकर बेच देते है) तब बनी जब गुजरात और दिल्ली में कमल खिला हुआ था।

यह 1999 की बात है, पेट्रोलियम में प्रवेश वह बिग बैंग है, जहां मार्किट की बहुतेरी ताकतों में से एक, मार्किट की अकेली ताकत होने की यात्रा शुरू करती है।

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जामनगर रिफाइनरी के साथ केजी बेसिन में सोने की खदान भी अटल युग मे उनके नाम होती है ।

लड़ने न आइए, 1993 में खोज का काम बहुतेरी कम्पनियो को मिला था. रिलायंस भी दूजी कम्पनी के साथ जॉइंट वेंचर में "खोज" करने गयी थी। जब खोज सफल हो गयी, तो गैस अकेले अम्बानी को अटल ने दी।

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दूसरो का धंधा लूटने की GSM टेक्निक के नाम पर पूरे देश में मोबाइल टेलीफोनी के लाइसेंस बेचे जा चुके थे।
दूसरो के एरिया में घुसकर CDMA टेक्निक के नाम पर, दुनिया मुट्ठी में कर ली गई।

यह भी अटल दौर था, पिछले 40 साल में जितनी बढ़ोतरी हुई थी, इन 6 साल में उससे तिगुना जोड़ लिया गया।
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मनमोहन युग मे कम्पनी भाइयों में बंटी। पावर, फाइनैंस, मोबाइल छोटका ले गया।

पावर बूम का दौर था, हर छोटा मोटा उद्योगपति पावर प्लांट खोल रहा था। इनने भी खोले, गैस पर झगड़ा हुआ।

इस झगड़े पर पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी ने डंडा फंसा दिया।

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जयपाल रेड्डी ने कहा कि KG बेसिन देश की संपत्ति है, तुमको खोदने मिला है, बाप की प्रॉपर्टी नही जो उसके लिए लड़ रहे, यह 2011 था।

यह ब्रेकिंग पॉइंट था।

इस लड़ा लड़ी में सरकार ने मध्यस्थता की, एक फार्मूला निकाल कर समाधान किया.

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मगर तब तक वाइब्रेंट गुजरात मे जाकर अम्बानी ब्रदर्स सीएम गुजरात को भावी पीएम मटेरियल घोषित कर चुके थे और फिर नई कम्पनियां खरीदी।

तेल, पोलियस्टर, पावर, टेलीफोनी की नहीं।

चैनल खरीदे, लाखो करोड़ की कम्पनी, कोई 42000 करोड़ की सालाना इनकम, 200-300 करोड़ के मीडिया चैनल खरीदे।
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जिनमे से अधिकांश लॉस में चलते है, यह15-20 करोड़ मुनाफा कमाते है।

एक 42000 करोड की कंपनी मीडिया खरीदती है, जिनकी आय 15-20 करोड़ थी।

इसके बाद 2014 तक ये चैनल क्या करते है, और 2014 के बाद क्या करते है, आपको पता है।

उसका जवाब आज सबके सामने है।

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2. अडानी विकास गाथा:

अडानी का किस्सा लम्बा नही।

कोई 85-86 के आसपास कमोडिटी ट्रेडिंग करते थे।

गुजरात की भाजपा सरकार के दौरान मुंद्रा पोर्ट डेवलप करने का ठेका मिला, अटल के दौर में उसका मालिकाना हक।

यहाँ से जो जेब भरी, तो कई क्षेत्रों में घुस गए।

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और अटल के जाते जाते गुजरात के बड़े उद्यमी हो चुके थे।

खुद का हवाई जहाज हो गया, जिसमे उड़ता कोई और था.

UPA दौर में पावर बूम का लाभ लिया, खदानी के क्षेत्र में घुसे, चले गए ऑस्ट्रेलिया, कारमाइकल खदान ले ली।

मगर वो गुजरात नही था।

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वर्किंग स्टाइल जैसी थी, आसपास के लोग इनका विरोध करने लगे, मॉन्स्टर बताने लगे।

ऑस्ट्रेलिया सरकार ने भगा दिया।

मगर अब तक इंडिया में बप्पा (मोदी जी) हॉट सीट पे आ चुके थे।

तो सेहत पर फर्क न पड़ा, हॉट केक यहीं बेक करने लगे।
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3. 2014 के बाद की कहानी:

2014 के बाद का दौर लूटमार का है, औरों के चलते फिरते धंधे में सरकार कठिनाइयाँ पैदा करे।

उसे लॉस में डुबा दे, मुकदमो में डुबा दे, फिर उसे सस्ते मस्ते में ये भाई लोग खरीद लें।

चट से पॉलिसी बदल जाये, और नए मालिक के साथ उस कम्पनी की दिक्कतें खत्म।

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यह काम धर्मनिपेक्षता के साथ सरकारी और प्राइवेट हर प्रकार की कम्पनी के साथ हुआ।

उदाहरण देने से लम्बी पोस्ट और लम्बी हो जाएगी।

मंदी का यह भी कारण है।

चलती फिरती कम्पनियां ही टैक्स देती हैं, सरकारों का खर्च निकलता है।

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उसे डुबा कर नए मालिक के साथ रिफ्रेश शुरू होना ऐसा आसान नही।

तो इस कार्यक्रम के बाद टैक्स कुछ बरस भूल जाइये, इसलिए अब प्रॉफिट वाले पीएसयू सीधे ही शेयर बेच देने का दौर चल रहा है।

बिग बाजार ये खरीद चुके, स्माल किसान बेचने की प्रक्रिया चालू है।

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समझने वाली बात ( सरकार की भूमिका ):

राहुल ने दो नाम इसलिए लिए। बाजार को बराबरी से बढाना सरकार का जिम्मा है।

दो चार फेवरेट्स की दलाली करना नही.

मूर्ख जनता "प्राइवेटाइजेशन" का शब्द पकड़ कर बैठी है।

पर खेल उससे कही बड़ा है, ये पूंजीवाद है।

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तर्क है कि भई, निजीकरण तो कांग्रेस की नीति है, कांग्रेस इसकी जननी है।

कुतर्क है कि ये लोग 2014 के पहले, इंडिया गेट के सामने समोसे बेचते थे।

भक्त और कमबख्त जरा पढ़ें, समझें, जाने।

ये पहले अपना पैसा लगाते थे, औरो की तरह अपनी भी दुकान लगाकर धंधा करते थे।

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सरकार देश मे इन्फ्रास्ट्रक्चर और फैसिलिटीज बढाने के लिए सबको बराबर मौके देती थी, इनको भी।

2014 के बाद ये सत्ता के मालिक बनकर अपने चैनलों पर अफीम बंटवाते हैं, और पीछे से आपका माल लूटते हैं।

मीडिया में ये नकली न्यूज का नशा जनता की आखों में धूल झोंकने का काम कर रहा है।

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भारत के आधुनिक महमूद गजनवी और मोहम्मद गोरी है।

वह भी पूर्णतः स्वदेशी .. 

हम लुटेरे पैदा करने के मामले में पूर्ण आत्मनिर्भर हो गए हैं।

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