फ्रांस में इस्लामी आतंक के उदय की कहानी
शिक्षक की हत्या से फ्रांस में इस्लामी आतंकवाद फिर सुर्खियों में है। यह घटना कुछ और नहीं 65 लाख मुस्लिमों की 6.7 करोड़ आबादी वाले फ्रांस की सत्ता हथियाने की अघोषित लड़ाई है।फ्रांस की उदारता ने ही आज उसे बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया
क्रमशः
शिक्षक की हत्या से फ्रांस में इस्लामी आतंकवाद फिर सुर्खियों में है। यह घटना कुछ और नहीं 65 लाख मुस्लिमों की 6.7 करोड़ आबादी वाले फ्रांस की सत्ता हथियाने की अघोषित लड़ाई है।फ्रांस की उदारता ने ही आज उसे बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया
क्रमशः
यूरोप का यह खूबसूरत देश आज इस्लामी आत्ंकवाद की राजधानी बन गया है 2015 मेंं कार्टून छापने पर पत्रिका शार्ली एब्दो के ऑफिस से लेकर अब तक हुए कई आतंकी हमलों में ढाई सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। जानिए वो फैसला, जिसने फ्रांस को इस्लामिक कट्टरता की आग में झोंका?
बात 1977 की है। जब फ्रांस ने तुर्की, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और मोरक्को जैसे मुस्लिम देशों के साथ एक समझौता किया। जिसके बाद ये मुस्लिम देश अपने यहां के इमामों को पढ़ाने के लिए फ्रांस भेजने लगे।इमामों को पढ़ाना तो विदेशी भाषा और संस्कृति के बारे में था मगर पढ़ाने लगे कट्टरता का पाठ
तुर्की आदि मुस्लिम देशों से हर साल आने वाले 300 इमाम 80 हजार से अधिक बच्चों को कट्टरता का पाठ पढ़ाने लगे। तुर्की ने साजिश के तहत फ्रांस में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की। लिबरल सरकारों की नींद तब टूटी, जब कट्टरता बढ़ने पर आतंकी हमले शुरू हुए।
जब 2015 से लेकर अब तक 250 से अधिक फ्रांसीसी नागरिक आतंकी हमले में मारे गए तो फ्रांस ने इस्लामी आतंकवाद की जड़ें तलाशनी शुरू की। पता चला कि इसकी बुनियाद में इमामों की सप्लाई वाला 1977 वाला आदेश है। जिसके बाद राष्टपति इमैनुअल ने इस साल समझौते को खत्म करने का ऐलान किया।
राष्ट्रपति इमैनुअल ने स्पष्ट कहा-फ्रांस में हम तुर्की का कानून लागू नही होने देंगे। फ्रांस में जो रहेगा उसे यहां का कानून मानना पड़ेगा। आँखें खुलने के बाद अब फ्रांस में मस्जिदों की निगरानी और मुस्लिम कंट्री से फंडिंग की पड़ताल तेज हुई है। दुनिया को फ्रांस से सबक सीखने की जरूरत है