कल रात पेरिस में अपने एक मुसलमान ने अपने एक शिक्षक की गला रेत कर हत्या कर दी। बाद में पुलिस ने थोड़ी देर पीछा करने के बाद उसे गोली मार दी। शिक्षक का गला क्यों रेता? क्योंकि शिक्षक ‘अभिव्यक्ति की आजादी' वाली कक्षा में, एक कार्टून दिखा रहा था समझाने के लिए।
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कार्टून किसका रहा होगा समझना मुश्किल नहीं है। दूसरा पहलू देखिए कि हर ऐसी घटना के बाद, हर 'लोन वूल्फ' अटैक के बाद, श्वेतों की बस्ती में आतंकी हमेशा मरा हुआ ही मिलता है। लेकिन भारत में आप, इन्हीं शूकरों पर पैलेट गन चला देंगे, तो यही गोरे लोग मानवाधिकारों का ज्ञान देते हैं।
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इसलिए, चाहे ऑरलैंडो समलैंगिक बार हो या ब्रूसेल्स एयरपोर्ट, मैनचेस्टर बम धमाके हों, या नीस आतंकी हमला, मैं बहुत ज्यादा संवेदनशील नहीं हो पाता। वो इसलिए क्योंकि इन लोगों ने इस्लामी आतंक को सबसे ज्यादा पाला-पोसा है। भारत में हो रहे आतंकवाद को 'बायलेटरल कॉन्फ्लिक्ट' कहा करते थे।
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जब ट्विन टावर उड़ाया गया, फिर तालिबान और ISIS ने पूरे यूरोप-अमेरिका के हर शहर में तबाही मचानी शुरू की, तब इन्हें लगा कि आतंकवाद होता है। जब तक इनके लोगों पर ट्रक नहीं चढ़ाया गया, मेट्रो ट्रेन में धमाके नहीं हुए, तब तक इनको लगता था कि पाकिस्तान ने भारत को 'बैलेंस' कर रखा है।
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अभी तो यूरोप में शुरुआत है। जिस कैंसर को इन्होंने अपने यहाँ दावत दी है, वो इन्हें इतना मारेंगे, इतना मारेंगे कि इन्हें क्रूसेड का दौर याद आएगा। क्रूसेड के समय कम से कम यूरोप वाले वामपंथी तो नहीं बने थे, अब ये किस मुँह से इन्हें नकारेंगे, भगाएँगे, भर्त्सना करेंगे?
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पाँच सालों में यूरोप इस्लामी आतंक की उस आग में झुलस रहा होगा कि वहाँ के ईसाई सड़कों पर आ कर, समूहों में इस्लामी कट्टरपंथियों से हथियारों के साथ संघर्ष करेंगे। सरकारें मुँह ताकती रहेंगी क्योंकि 5 साल में 'पोलिटिकली करेक्ट' होने वाली सत्ताएँ, देश और नेता, बदल तो नहीं जाएँगे!
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अभी इनकी बच्चियों के रेप की दर बढ़ेगी, इनके चर्च उड़ाए जाएँगे, इनकी गलियों में इस्लामी कट्टरपंथ का अलग स्वरूप दिखेगा। यही विचारधारा जब अपने घरों से निकल कर इनके घरों में दखल करेगी कि तुम्हारे पहनावे से हमारा मजहब खतरे में आता है, तब क्या होगा, वो देखने लायक होगा।
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