स्वयं महाकाल भैरव को अपनी ओर आते देख भयाक्रांत जब मैना देवी मूर्छित हो गई तो हिमवंत ने उन्हें थामा।
देवी मेना ने आँखें खोली।
"अच्छा है आपकी मूर्छा टूट गई देवी!" https://twitter.com/viigyaan/status/1315878843412963328
देवी मेना ने आँखें खोली।
"अच्छा है आपकी मूर्छा टूट गई देवी!" https://twitter.com/viigyaan/status/1315878843412963328
वापस वो दृश्य याद आते ही मेना ने तुरंत सवाल किया, "वो एक दु:स्वप्न था ना?"
"मेना तुम इस प्रकार व्यव्हार क्यों कर रही हो। महेश हमारे जामाता है। आओ द्वार पे उनका स्वागत करें।"
"मेना तुम इस प्रकार व्यव्हार क्यों कर रही हो। महेश हमारे जामाता है। आओ द्वार पे उनका स्वागत करें।"
"क्या आपने उन्हें नहीं देखा स्वामी? यदि मुझे पता होता शिव इतने भयानक स्वरुप वाले हैं तो मैं गौरी के लिये उन्हें कदापि ना स्वीकार करती।"
"परंतु..."
"परंतु..."
"नहीं स्वामी। ये विवाह नहीं होगा। गौरी नदी में समाधि ले ले या मृत्यु को प्राप्त हो जाये परंतु वो भूतनाथ के वरण से ऊत्तम होगा।"
"माँ ..."
महादेव के विरुद्ध कुछ ना सुनने को आतुर गौरी बोल उठी।
"चुप हो जाओ पार्वती। सब समाप्त कर तुम मुझसे प्रश्न कर रही हो?"
मेना ने देवी पार्वती पर क्रोधित होते हुए कहा। माता ने क्रोध में पुत्री पर हाथ उठाना तक गलत ना समझा।
महादेव के विरुद्ध कुछ ना सुनने को आतुर गौरी बोल उठी।
"चुप हो जाओ पार्वती। सब समाप्त कर तुम मुझसे प्रश्न कर रही हो?"
मेना ने देवी पार्वती पर क्रोधित होते हुए कहा। माता ने क्रोध में पुत्री पर हाथ उठाना तक गलत ना समझा।
"परंतु माँ..."
"गंगा तुम कुछ ना कहो। वर्षों पुर्व तुमने उस भूतनाथ के लिये सर्वस्व त्याग दिया था और अब गौरी भी!"
"गंगा तुम कुछ ना कहो। वर्षों पुर्व तुमने उस भूतनाथ के लिये सर्वस्व त्याग दिया था और अब गौरी भी!"
"माँ आपको लगता है मैं और गौरी भिन्न है? हम दक्षायिनी सती के दो स्वरुप है माँ जो सदाशिव को समर्पित है सर्वदा के लिये।"
देवी मेना के सम्मुख उनकी दोनों पुत्रियों ने चतुर्भूज रुप लिया। देवी गंगा ने रक्त, जल, अमृत और मदिरा लिये मगर पर आरूढ़ और देवी गौरी दुर्गा स्वरुप में शंख, चक्र, धनुष-बाण लिये सिन्ह पर आरूढ़।
तदोपरांत वो दोनों ने मिल कर सती स्वरुप में चतुर्भूज रुप धारण कर लिया।
"माते जब आपको मैंने स्वरुप दिखा दिया तो मुझे महेश का वरण करने की अनुमती दें। मेरे इस जन्म की यही नियती है। सती के स्वरुप में शिव निंदा सुनने पर मैं उनके वरण के लिये शुद्ध नहीं रह गई।"
"माते जब आपको मैंने स्वरुप दिखा दिया तो मुझे महेश का वरण करने की अनुमती दें। मेरे इस जन्म की यही नियती है। सती के स्वरुप में शिव निंदा सुनने पर मैं उनके वरण के लिये शुद्ध नहीं रह गई।"
मुझे वो स्वरुप त्यागना पड़ा।"
"नहीं।", रोते हुए देवी मेना महाकाली के चरणों में गिर पड़ी।
"नहीं।", रोते हुए देवी मेना महाकाली के चरणों में गिर पड़ी।
"माते, मैं आपकी चिंता का कारण समझती हूँ। परंतु इस समग्र संसार में ऐसा कोई वर नहीं जो महादेव के नख भर भी हो।"
देवी मेना ने स्वीकृती दी और और बाहर देखने को आई।
देवी मेना ने स्वीकृती दी और और बाहर देखने को आई।
महाकाल भैरव स्वरुप को त्याग महेश अब सौम्य गौरांग स्वरुप को धारण किये थे। सुन्दर वस्त्र, मंडित केश, रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित चन्द्रमौलिश्वर के उस अद्भुत स्वरुप को दे मेना का हर संशय समाप्त हो गया।
"हे भोलेनाथ मुझे क्षमा करें।", मेना ने कहा।
"माँ आपकी चिंता का कारण मैं जानता हूँ। अतएव उस विषय में कोई संशय ना रखें। हम सब गौरी से प्रेम करते हैं और उसके लिये शुभ के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहते।"
"माँ आपकी चिंता का कारण मैं जानता हूँ। अतएव उस विषय में कोई संशय ना रखें। हम सब गौरी से प्रेम करते हैं और उसके लिये शुभ के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहते।"
महादेव को विवाह मंडप की ओर ले जाया गया। तदोपरांत देवी उमा संसार के सर्वोत्कृष्ट आभूषणों से सुशोभित सहस्त्रों सूर्यों सी आभा लिये महादेव के वाम भाग में आ विराजमान हुई।
हर-गौरी का नेत्र मिलन संसार के लिये सर्वोत्कृष्ट क्षण था।
कोटि कोटि नई सृष्टियों का उद्गम!
कोटि कोटि नई सृष्टियों का उद्गम!
उमा-महेश का विवाह अलौकिक था, अप्रतिम था, अद्भुत था। ये कुछ ऐसा था जो हर क्षण हर पल घटित होने वाला था।
सप्तपदी के वचनों में बन्ध रहे निर्बाध महेश गौरी के अर्धांग हुए।
सप्तपदी के वचनों में बन्ध रहे निर्बाध महेश गौरी के अर्धांग हुए।
मनमोहक सुगंध वाले पुष्पों की मालाओं से दोनों ने एक दुसरे का वरण किया।
हिमवंत ने गिरिजा पार्वती का कन्यादान किया।
देवी मेना और गिरिराज ने सम्मुख आ उमा का हाथ उमापती के हाथ में रखा।
हिमवंत ने गिरिजा पार्वती का कन्यादान किया।
देवी मेना और गिरिराज ने सम्मुख आ उमा का हाथ उमापती के हाथ में रखा।
सिंदूरदान व मंगलसूत्र पारायण की पवित्र विधियाँ सर्वमंगल को सिद्ध हुई।
हर-गौरी विवाह सम्पूर्ण हुआ!
सृष्टि अनेकों वर्षों के प्यास से तृप्त हुई। सुर-असुर, देव-दानव, गन्धर्व, गण, प्रेत आदि सब जहाँ तक दृष्टी जाती सब लोक नृत्य कर रहे थे।
सृष्टि अनेकों वर्षों के प्यास से तृप्त हुई। सुर-असुर, देव-दानव, गन्धर्व, गण, प्रेत आदि सब जहाँ तक दृष्टी जाती सब लोक नृत्य कर रहे थे।
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