1959 की बात है कि मैं सड़क पर पैदल गोलगप्पे खाने जा रहा था
कि अचानक से एक बाइक वाला मुझे टक्कर मार कर चला गया
खैर चोट सिर्फ दाएं पैर में लगी थी
मैं लगड़ाते हुए अस्पताल गया
डॉक्टर ने मरहम पट्टी की और एक बैसाखी दे दी जिस से की मुझे चलने में मदद हो जाये
और बोले की
महीने भर मे पैर सही हो जाएगा तो ये बैसाखी वापिस कर जाना
अब मैं एक हट्टा कट्टा तंदुरुस्त इंसान बैसाखी ले कर चला तो काफी अजीब सा लगा
लोग मुझे सहानुभूति की नजर से देख रहे थे
अब मजबूरी थी कि बैसाखी ले कर चलना ही था कुछ दिन
खैर मैं बस में चढ़ा तो लोगो ने मदद कर दी चढ़ने में
और बैठने को सीट भी दे दी
अगले दिन आफिस पहुचा तो सहकर्मियों ने भी काफी सहायता की और बॉस ने भागदौड़ वाले काम भी नही दिए ,बस आफिस के छुटपुट काम के सिवा
2 दिन बाद मैं बिजली का बिल भरने गया तो लाइन में नही लगना पड़ा
हमदर्दी में सबने मुझे आगे जा कर बिल जमा करने का मौका दे दिया था
अब एक महीना हो गया,मेरा पैर भी ठीक हो चुका था,और अब मुझे बैसाखी की जरूरत भी नही थी,अब क्योंकि उस अस्पताल में बैसाखियों की संख्या भी सीमित थी ,तो मुझे वो बैसाखी अस्पताल में वापिस कर देनी चाहिए थी जिससे कि वो किसी और जरूरतमंद के काम आ सके,पर बैसाखी साथ होने के फायदे का लालच
मेरे मन मे घर कर चुका था क्योंकि इस बैसाखी की वजह से मुझे काफी फायदा था,कई बार तो मैंने झगड़ा भी किया लोगो से बस में सीट के लिए,लाइन में आगे जाने के लिए ,क्योंकि मेरे पास बैसाखी थी तो लोगो को मुझे वरीयता देनी ही चाहिये थी ना,अब मैं ये बैसाखी वापिस भी नही करना चाहता
मैं ये बैसाखी अपने बच्चो को भी दूंगा जिससे कि भविष्य में उन्हें भी लाइन में ना लगना पड़े,संघर्ष ना करना पड़े, और मैं ये बैसाखी उनके हक की तरह दूंगा ,उन्हें बताऊंगा की इस बैसाखी और इससे होने वाले फायदे पर उनका जन्मसिद्ध अधिकार हैम
मैं उन्हें सिखाऊंगा की जो इस बैसाखी का विरोध करे उस पर भेदभाव करने का आरोप लगा देना है,कैसे स्वयं को उनके हाथ मे जाने देने से रोकना है जिन्हें वाकई में इसकी जरूरत है ,कैसे मेरे जैसे और भी बैसाखी से फायदा लेने वालों को साथ लाना है और बैसाखी की जरूरत ना होने पर भी
बैसाखी की जरूरत को बनाये रखना है,और कैसे बैसाखी की मदद से कम मेहनत में ज्यादा फायदे उठाने है ,मैंने यही किया अपने बच्चो को सिखाया और मेरी देखादेखी और भी लोगो ने इस बैसाखी का फायदा उठाया ,अब 2020 चल रहा है,पर मेरी पीढियां पूर्णतया स्वस्थ तंदुरुस्त होने के बाद भी
इस बैसाखी का फायदा उठा रही,वो भी सबके साथ बराबर से दौड़ सकती है पर जरूरत ही क्या है जब बिना दौड़े बिना पसीना बहाए मैं उनसे जीत सकता हूँ जो मेहनत करके दौड़ में जीतने का प्रयास कर रहे,अब आज मेरे देश की आधी से ज्यादा आबादी इस बैसाखी के सहारे चल रही स्वस्थ होने के बाद भी न
नोट - इस कहानी का किसी भी जीवित मृत व्यक्ति या किसी सच्ची घटना से कोई सम्बन्ध नही 😁 ये पूर्णतया काल्पनिक कहानी है 🤣🤣
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