हमारे एक बैंकर साथी @RookieHarvey ने बैंकिंग से जुड़े एक ऐसे पहलू को शब्दों में पिरोने की कोशिश की है जो शायद बरसों से इस इंडस्ट्री में है परन्तु उसकी भयावहता आज के इस मंदी की दौर में ज्यादा उभर कर सामने आ रही।
आज मैं बात करना चाहता हूं एक ऐसे चलन कि जो नया तो नहीं है परन्तु
Covid-19 महामारी के बाद बहुत ही तीव्र गति से फैल रहा है हमारे देश में। निजी बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों द्वारा वसूली के नाम पर गुंडे मवाली की सेवा लेना। हालांकि ये काम बैंक किसी तृतीय पक्ष को सौंपते हैं जिनको वसूली के राशि के एवज में दलाली दी जाती है। अब चुकीं काम ऐसा
है तो ये एजेन्सीज गुंडों की बहाली ही करती हैं। इन गुंडों का काम हर हाल में लोगों से पैसे वसूलना होता है। लोगों को डराना धमकाना, उनके साथ गाली गलौज करना मार पीट करना सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित करना ये हर तिकड़म लगा देते हैं। ख़ैर मैं आपको बता दू की इस तृतीय पक्ष को जाने वाली दलाली
का बोझ भी ये ऋणी के ऊपर ही डालते हैं मतलब बात ये हुई की आप खुद पैसे दे कर ये प्रताड़ना झेलते हो।

बीते कई दिनों से मैं पढ़ रहा और तथा कुछ ग्राहकों से बात भी हुई कि कैसे ये लोग प्रताड़ित कर रहे हैं। किस हद तक नीचता पे उतर आए हैं ये लोग। महिलाओं के साथ अभद्रता,
बहू बेटियों को उठाने की धमकी, फोन हैक कर उसमे मौजूद कॉन्टैक्ट्स को कॉल करना और ना जाने क्या क्या अनैतिक कार्य कर रहे हैं जो सर्वथा असंवैधानिक है और कानूनन जुर्म है जिसके खिलाफ़ कई लोग आवाज़ उठा रहे हैं परन्तु कोई सुनवाई करने को तैयार नहीं है।
एक बैंकर और उससे बढ़कर एक इंसान होने के नाते मैं इस तरह के व्यवहार को कभी समर्थन नहीं दे सकता जहां किसी की निजी जिंदगी में कोई हस्तक्षेप करे किसी को कोई उसके परिवार को हानि पहुंचाने की धमकी दे।
मेरा हमेशा से ये मानना है के कोई भी व्यक्ति घर और कार ऋण या क्रेडिट कार्ड तब लेता है जब वो वित्तीय रूप से मजबूत स्तिथि में होता है ना कि तब जब वो कमज़ोर हो। कोई भी व्यक्ति चाहे वो बिजनेस करने वाला हो या वेतन भोगी हो वो अपने वित्तीय हालातों को देख कर ही ऋण लेने का निर्णय करता है।
हालांकि निजी संस्थानों की वसूली पद्धति से सब वाक़िफ होते हैं तो सवाल उठता है कि कोई ऐसे निजी बैंक या एनबीएफसी के चंगुल में कैसे फंस जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। एक कारण मुझे जो समझ आया वो ये कि अच्छे समय में जब जिंदगी पूरी रफ़्तार से भाग रही होती है तो ग्राहकों के पास पैसे
तो होते हैं पर समय की कमी होती है और उनके इसी परिस्थिति का लाभ ये उठाते हैं। व्यतिगत सेवा देने के नाम पर यही निजी संस्थानों के अधिकारी ग्राहकों के घर तक जा कर सुविधाएं प्रदान करते हैं।
एक सरकारी बैंक के कर्मचारी होने के नाते मुझे ये स्वीकार करने में बिल्कुल भी झिझक नहीं होती कि ऋण की मूल्यांकन और स्वीकृती की पद्धति सरकारी बैंकों में निजी संस्थानों की अपेक्षा थोड़ी जटिल होती है और ये बैंक तथा ग्राहकों दोनों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है।
परन्तु मुझे इस बात पे गर्व भी है कि एक बार ऋण स्वीकृत होने के बाद ग्राहकों को किसी प्रकार की कठिनाईयों का सामना नहीं करना पड़ता।

किसी ने कहा है कि "सच्चे शुभचिंतक या मित्र की पहचान हमेशा बुरे वक़्त में होती है।" और आज जब सारा देश महामारी से उपजी आर्थिक मंदी से जूझ रहा है लोग
अपनी नौकरी छूट जाने से या धंधा बंद हो जाने के कारण आर्थिक रूप से असक्षम है ऋण के हफ़्ते चुकाने में। ऐसे बुरे वक़्त में सरकार द्वारा घोषित हर राहत पैकेज के लाभ को हम सरकारी बैंक के माध्यम से अपने आख़िरी ग्राहकों तक पहुंचा रहे हैं और मुझे इस बात का गर्व है।
अंत में दो शब्द कहना चाहूंगा

"कितना भी समेट लो हाथों से

फिसलता ज़रूर है

ये वक़्त है साहब बदलता ज़रूर है!!!"
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