थ्रेड: मितव्ययी सरकार (भाग-२)
(भाग 1 आप यहां पढ़ सकते हैं : https://twitter.com/BankerDihaadi/status/1302284388479070208?s=20 )

एक बार एक गांव में पर्यावरण वाले मंत्रीजी ने दौरा किया। अब दौरा किया तो उसकी निशानी भी होनी चाहिए ताकि सालों बाद भी गॉंव वाले मंत्रीजी के दौरे को याद रखें।
इसलिए दौरे के दौरान मंत्रीजी ने एक पौधा लगाया (लगाया तो मजदूरों ने था, मंत्रीजी ने केवल उसके पानी देते हुए फोटो खिंचवाई थी)। अब मंत्रीजी के नाम का पौधा है तो देखभाल भी करनी पड़ेगी। कहीं सूख न जाए, कोई जानवर ना खा जाए इसलिए उस पौधे कि रखवाली के लिए एक चौकीदार रखा गया।
अब चौकीदार है तो कोई ना कोई तो उसकी रिपोर्ट लेने वाला भी चाहिए, नहीं तो चौकीदार पौधे का ध्यान रखता कि नहीं इसका ध्यान कौन रखेगा। इसलिए, एक चौकीदार के ऊपर एक सुपरिटेंडेंट बिठाया गया जिसका काम था चौकीदार कि हाजिरी नोट करना और सुबह शाम पौधे की रिपोर्ट लेना।
अब सुपरिटेंडेंट है तो उसको ऑफिस भी चाहिए, कुर्सी-टेबल, पंखा-कूलर भी चाहिए, ऑफिस के सफाई के लिए चपरासी भी चाहिए। कागज-पत्तर का काम करने कि लिए लिपिक भी चाहिए। सुपरिटेंडेंट साहब औचक निरीक्षण कर सकें इसलिए गाड़ी भी चाहिए और ड्राइवर भी।
एक वनस्पति विज्ञानी भी बिठाया गया जो समय समय पे चौकीदार को ये बताएगा कि पेड़ को कब कितना पानी, कितनी खाद, कितनी दवाई देनी है। पेड़ की रखवाली में कितना खर्चा हो रहा है इसके लिए एक अकाउंटेंट भी जरूरी है। अब इतने लोग हैं तो सबकी सैलरी भी देनी है इसलिए वित्त विभाग बनाया गया।
कोई घपला ना करे इसलिए विजिलेंस, ऑडिट वगैरह के लोग भी नियुक्त किये गए। कुल मिला कर काफी बड़ा ऑफिस बन गया। इतने बड़े ऑफिस को चलाने के लिए एक आईएएस अधिकारी बिठाया गया जो सीधे मंत्रीजी को रिपोर्ट करता था। कुछ समय बाद चुनाव आ गए।
मंत्रीजी ने जनता को बताया कि कैसे उनका लगाया पौधा अब पेड़ बनने वाला है और जल्दी ही फल देने लगेगा। जनता ने मंत्रीजी की बातों में आके उनको दोबारा जिता दिया। लेकिन कुछ समय बाद वैश्विक मंदी का दौर आया। सरकार पर भी कॉस्ट-कटिंग का जूनून छाया।
मंत्रीजी को खर्चे काम करने का आदेश आया। मंत्रीजी ने मीटिंग बुलाई जिसमें ये निर्णय हुआ कि एक आयोग गठन किया जाएगा जो पूरे विभाग की जांच करेगा और खर्चे कम करने के उपाय सुझाएगा।
जांच आयोग ने पूरे तीन महीने तक जांच पड़ताल करने के बाद ये निष्कर्ष निकाला कि एक चौकीदार को छोड़कर बाकी सारी पोस्ट जरूरी हैं। आयोग की सिफारिश पर कॉस्ट-कटिंग के लिए चौकीदार की पोस्ट ख़तम कर दी गयी है। बाकी पूरा ऑफिस अब भी वैसे ही चल रहा है।
बैंकों में भी कुछ ऐसा ही हाल है। मैनेजर क्रेडिट अलग है, मैनेजर NPA अलग। इनके ऊपर एक चीफ मैनेजर क्रेडिट & NPA है और नीचे डेस्क ऑफिसर। इसी तरह HR, क्रॉस सैलिंग, ऑपरेशन्स, ऑडिट, विजिलेंस, सेल्स, सबके अपने अपने डेस्क ऑफिसर, मैनेजर, चीफ मैनेजर हैं।
इन सबका एक ही काम है, ब्रांचों को टारगेट बांटना और ब्रांचों से डाटा लेना। काम सारा ब्रांच वालों को ही करना है। बाकी लोग केवल फ़ोन करके सुबह बताएँगे कि क्या करना है और शाम को पूछेंगे कि क्या किया।
एक ही चीज जिसके लिए एक मेल ही पर्याप्त था उसके लिए पहले डेस्क ऑफिसर फोन करेगा फिर मैनेजर और फिर चीफ मैनेजर। शाम को रिपोर्टिंग के टाइम भी यही क्रम रहता है। बीच-बीच में RM साहब भी फ़ोन करके अपने बॉस होने का सबूत देते रहते हैं।
अब कॉस्ट कटिंग का मौसम चल रहा है तो पोस्ट ख़तम की जा रही हैं। ब्रांचेज में से परमानेंट मैसेंजर की पोस्ट ख़तम कर दी गयी है। तीन ऑफिसर की ब्रांच को सिंगल ऑफिसर कर दिया है। जहाँ पहले 5-6 क्लर्क बैठते थे अब 1-2 से ही काम चल रहा है। बाकी सारा काम टेम्पोरेरी स्टाफ से कराया जा रहा है।
मतलब हालत ये हैं की ब्रांच में ५ सिस्टम हैं जिनमें से ३ खाली रहते हैं। अमिताभ कांत साहब की मानें तो बिना ब्रांच के भी बैंकिंग की जा सकती है। मतलब चौकीदार की अब कोई जरूरत नहीं। हाँ, बिज़नेस इनको डबल चाहिए।
मतलब घोड़े की चारों टाँगें तोड़ दो और फिर ये उम्मीद रखो कि वो रेस जीतेगा। धन्य है ऐसी सरकार और ऐसी सरकार के सलाहकार।

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