उत्तराखंड के चमोली जिले में मंडल से करीब छह किलोमीटर ऊपर ऊंचे पहाड़ों पर प्रसिद्ध अनसूया मंदिर स्थित है। जहां प्रतिवर्ष दत्तात्रेय जयंती समारोह मनाया जाता है। इस जयंती में पूरे राज्य से हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। @UTDBofficial
इस अवसर पर नौदी मेले का भी आयोजन किया जाता है जिसमें भारी संख्या में लोग अपने-अपने गांवों से देव डोलियों को लेकर पहुंचते हैं। देव डोलियां माता अनसूया और अत्रि मुनि के आश्रम का भ्रमण करती हैं और माता अनसूया के प्राचीन मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए एक बड़ा यज्ञ भी कराया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है। इसी मान्यताओं के अनुसार इसी स्थान पर माता अनसूया ने अपने तप के बल पर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और शंकर) को शिशु रूप में परिवर्तित कर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था।
बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुन: उनका रूप प्रदान किया और फिर यहीं तीन मुखवाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। इसी के बाद से यहां संतान की कामना को लेकर लोग आते रहे हैं। यहां दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना भी की गई है।
पौराणिक कथा के अनुसार- पुराणों में सती अनसूया पतिव्रता धर्म के लिए प्रसिद्ध है। उन्हें सती शिरोमणि का दर्जा प्राप्त है। अनसूया मंदिर के निकट अनसूया आश्रम में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश) ने अनसूया माता के सतीत्व की परीक्षा ली थी।
मान्यता के अनुसार एक बार महर्षि नारद ने त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी एवं पार्वती) को कहा कि तीनों लोकों में अनसूया से बढ़कर कोई सती नहीं है। नारद मुनि की बात सुनकर त्रिदेवियों ने त्रिदेवों को अनसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए मृत्युलोक भेज दिया।
तब तीनों देवता माता अनसूया के आश्रम में साधु के वेष में आए और उनसे नग्नावस्था में भोजन करवाने को कहा। साधुओं को बिना भोजन कराए सती मां वापस भी नहीं भेज सकती थी। तब मां अनसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल से तीनों देवों पर जल छिड़का और उन्हें बाल (शिशु) रूप में परिवर्तित कर दिया
जब कई सौ सालों तक तीनों देव अपने स्थानों पर नहीं पहुंचे तो तीनों देवियां चिंतित होकर चित्रकूट गईं। वहीं संयोग से नारदजी से उनकी मुलाकात हो गई। उन्होंने नारदजी से अपने पतियों का पता पूछा। नारदजी ने बताया कि वे लोग सती अनसूया के आश्रम में बालक बनकर खेल रहे हैं।
तब तीनों देवियां अनसूया के आश्रम पहुंची तथा माता अनसूया से क्षमा याचना कर तीनों देवों को उनके मूल स्वरूप में प्रकट करवाने के लिए कहा सती अनसूया ने तीनों बच्चों पर जल छिड़ककर उन्हें उनका पूर्व रूप प्रदान किया स्वर्ग के देवताओं को भी अपनी भूल के लिए माता से क्षमा मांगी।
तदनंतर ब्रह्मा ने चंद्रमा, शिव ने दुर्वासा और विष्णु ने दत्तात्रेय के रूप में माता अनसूया की गोद से जन्म लिया। तभी से देवी अनसूया 'पुत्रदा' यानी माता के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध है। तभी से इस स्थान पर सती मां अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है।
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