कृषि विधेयक पर हर तरह के शब्द-जाल को छोड़ केवल एक बात देखने की जरूरत है। अब तक किसान के पास मंडी से बाहर फसल बेचने का अधिकार नहीं था और मंडी के अंदर वह मजबूर था। अब किसान आजाद है, वह मंडी में आढ़तियों और दलालों के तय किये हुए दाम पर फसल बेचने को मजबूर नहीं रहेगा।
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क्या आपने कभी मंडी में अनाज बेचा है? कभी देखा है वहाँ होता क्या है? मैं बताता हूँ.
मंडी में किसान अपना माल फैला कर एक कोन में हाथ बांध कर मज़दूरों की तरह बैठ जाता है और बार बार मंडी के दलाल से विनती करता रहता है कि साहब मेरे माल की भी बोली लगवा दो। बिल्कुल निरीह!
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बार-बार मिन्नत करने के बाद जब दलाल किसान पर एहसान जताते हुए आता है और एक मुट्ठी अनाज अपने हाथ मे लेकर बोलता है, सी ग्रेड का माल है... तब किसान के पास एक ही उपाय रह जाता है "जैसा भी है, आप समझ के दाम लगा लो"
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फिर जब उसका माल उठाया जाता है तो 20 क्विंटल अनाज का 18 क्विंटल का रसीद कटता है... वहाँ बहस कौन करे? ज़्यादा बहस पे शायद नकद भी ना मिले और बाद में लेने के लिए कहा जाए। लेकिन घर मे पैसे की बहुत जरूरत है।
तब हिसाब लगा...
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उस पैसे मे से 5% कमिसन, 9% मंडी टैक्स, 200 रुपए सफाई वाली के, 1000 रुपये बेलदार के, और 500 रुपये तुलाई लग गई। किसान हाथों में नोटो को दबा कर घर जाकर, जब हिसाब लगाता है, तो पता चला, सब कट पिट कर कुल 15 क्विंटल के माल का पैसा ही हाथ लगा। तो बाकी 5 क्विंटल कहाँ गये?
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ये जो कल आपने राज्य सभा मे हाथापाई देखी और जितना भी विरोध देख रहे हो, ये सब उसी 5 क्विंटल के लिए हो रहा है। किसानों को कोई हानि नही है। चूँकि अब बिचौलिए किसानों पर अपनी मनमर्जी नही कर पाएंगे, सारी परेशानी बस किसानों का ये 5 क्विंटल खाने वालों को ही हो रही है।
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