जैसा कि आप सब को ज्ञात है कि आज हमारा संपूर्ण बंगाली समाज बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ महालया पर्व को मना रहा है।हर साल अश्विनि मास की अमावस्या तिथि यानी सर्व पितृ अमावस्या के दिन महालया मनाई जाता है।
आज का दिन पितृ पक्ष का आखिरी दिन हैं और हिंदू पंचांग के अनुसार आज ही एक महालया अमावस्या शुरु हो रही है | इसे सर्व पितृ अमावस्या,पितृ विसर्जनी अमावस्या एवं मोक्षदायिनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है.
महालय' शब्द का अर्थ है आनन्दनिकेतन. महालया से पितृ पक्ष की समाप्ति और देवी पक्ष की शुरुआत मानी जाती है. आज के दिन मां दुर्गा को धरती पर आने के लिए निवेदन प्रार्थना भी इसी दिन की जाती है।
यह माना जाता है कि आज ही के दिन देवी दुर्गा का कैलाश पर्वत से अपने पुत्र कार्तिकेय और गणेश, के साथ ‌ एक पालकी‌ ,नाव, हाथी या घोड़े पर अपने पैतृक घर पृथ्वी पर सिर्फ 10 दिन के लिए आगमन होता है।
हर वर्ष माता का आगमन अलग प्रकार की सवारी में होता है। यहां पर विदित हो की माता की हर एक सवारी पर आने का अलग अलग महत्व है। वैसे तो महालया दुर्गा पूजा से सात दिन पहले आता है, लेकिन ‌इस बार महालय अमावस्या की समाप्ति के बाद शारदीय नवरात्रि आरंभ नहीं हो सकेगा।
दुर्गापूजा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में होती है। इस बार दो अश्विन माह होंगे। एक शुद्ध तो दूसरा पुरुषोत्तम यानी अधिक मास। 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिक मास रहेगा। 17 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक शुद्ध आश्विन माह होंगे। इस साल अधिक मास के कारण ये एक महीने बाद यानि 17 अक्टूबर को आएगा.
इसलिए मां दुर्गा की उपासना का पर्व इस साल 17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक मनाया जाएगा बंगाल में इस त्यौहार को विशेष उल्लास के साथ मनाया जाता है । बंगाल में इस महोत्सव को एक विवाहिता का अपने पीहर आने का स्वरूप माना गया है।
इस स्थिति के द्वारा बंगाली समाज मां को अपने पीहर आने के लिए आमंत्रित करता है। महालया अमावस्या के दिन बंगाली लोग पारंपरिक रूप से सुबह उठकर चंडीपाठ और महिषासुर मर्दिनी का पाठ सुनते हैं. इसके बाद वो अपने पूर्वजों के लिए प्रसाद बनाते हैं.
माता की आगमन की खुशी में शारदीय नवरात्र के एक दिन पहले यानी महालया को मां दुर्गा की स्तुति करने की परंपरा है. महालया के दिनl भोर में चार बजे रेडियो एवं दूरदर्शन के चैनलों पर मां दुर्गा के आगमन की सूचना को लेकर विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है.
इसमें सबसे लोकप्रिय रेडियो प्रोग्राम कोलकाता से श्री वीरेन्द्र कृष्ण भद्र का महिषासुरमर्दिनी स्तुति को प्रसारित किया जाता है। यह कार्यक्रम ऑल इंडिया रेडियो पर सन 1929 से लगातार प्रसारित किया जा रहा है। परंतु सन 1962 से इस स्वरूप में बदलाव कर दिया गया है।
महालया ही वह दिन है जिस दिन से बंगाल में दुर्गा पूजा का महोत्सव आरंभ हो जाता है और माल्या से ठीक 7 दिन बाद मंडपों में दुर्गा पूजा आरंभ हो जाता है जो की दसमी की तिथि तक चलता है।
वैसे तो बंगाल में मूर्तिकार मां दुर्गा की मूर्ति बनाने का कार्य महालया से कई दिन पहले ही शुरू कर देते हैं और महालया के दिन तक लगभग पूरी मूर्ति तैयार कर ली जाती है। परंतु वह मूर्तिकार महालया के दिन ही मां दुर्गा की आंखों को तैयार करते हैं और उनमें रंग भरते हैं।
इस प्रथा को 'नेत्रदान' अथवा बांग्ला भाषा में 'चोखदान' कहा जाता है।

न केवल यह वार्षिक आयोजन एक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है साथ ही साथ यह हमें सत्य की शक्ति, साहस की और सार्वभौमिक तथ्य की भी याद दिलाता है कि अंत में, अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय प्राप्त करेगी।
महालया के दिन लोग अपने पूर्वजों को भी याद करते है। इस दिन लोग अपने पितरों का पिंडदान भी करते हैं। महालया के पितरों का तर्पण किसी नदी या तालाब के किनारे किया जाता है। पिंडदान या तर्पण का काम प्रातः सूर्योदय से शुरू हो जाता है और दोपहर तक चलता रहता है।
इस दिन हम अपने पितरों के निमित्त दान भी करते है और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वह हम पर कृपा दृष्टि बनाए रखें। 🙏🙏🙏

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