यम, नियम का पालन न करने पर आसन केवल व्यायाम तक सीमित रहता है, समाधि तक नही पहुंच सकता।
आत्मा तक पहुँचने के जो अवरोध हैं, उन्ही पर संयम करके आत्मा तक पहुँचा जा सकता है। जिस प्रकार पृथ्वी से उठने के लिये पृथ्वी का ही आलम्बन लेना पड़ता है, उसी प्रकार
अन्नमय कोष (स्थूल शरीर) से ऊपर उठने के लिये यम नियम सहित आसन, प्राणमय कोष(प्राण) के शोधन के लिये प्राणायाम का आलम्बन लेना पड़ता है। प्रत्याहार द्वारा मन पर नियन्त्रण तथा धारणा व ध्यान द्वारा विज्ञानमय कोष(बुद्धि) से ऊपर उठा जाता है। समाधि प्राप्त होबे पर ज्ञानस्वरूप आनन्द
की प्राप्ति होती है। इति अष्टांग योग:।
अत: योग दर्शन के अनुसार अष्टांग योग 'ज्ञान'मार्ग द्वारा मोक्ष् प्रदान करता है। योग दर्शन व विष्णु पुराण में आसन से पहले यम नियम की संख्या पांच निश्चित की है।: परम पूज्य @govardhanmath जगद्गुरु महाराज।
कार्य की उत्पत्ति के क्रम के विपरीत क्रम में उसका लय होता है।[म.भा., शा.प.]। शब्द तन्मात्रकता युक्त आकाश से स्पर्श तन्मात्रक वायु की उत्पत्ति होती है, इसी प्रकार वायु से रूप तन्मात्रक तेज की, तेज से रस तन्मात्रक जल, तथा जल से गन्ध तन्मात्रक पृथ्वी की उत्पत्ति होती है।
अत: पृथ्वी का लय जल में (व्युत्क्रम), जल का तेज में, तेज का वायु में तथा वायु का लय आकाश में होता है। आकाश में मात्र एक गुण (शब्द) है, तो इसका लय शून्य में ही होगा, वही निर्गुण(0 गुण) निर्विशेष है। उसका लय सम्भव नही, वही सगुण साकार समस्त गुणों से अवतीर्ण होता है।
You can follow @paramparAvAdI.
Tip: mention @twtextapp on a Twitter thread with the keyword “unroll” to get a link to it.

Latest Threads Unrolled: