समाधि क्या है ?

हम हर समय समाधि में रहते है !

किन्तु क्षिप्त , विक्षिप्त और मूढ़ की चित्त भूमि में समाधि को 'अयोग समाधि 'कहते है ।

किन्तु एकाग्र और निरूद्ध की अवस्था में 'योग समाधि' कहते है।

समाधि का प्राय: अर्थ ' योग समाधि' के रूप में प्रयुक्त होता है
समाधि की स्थिति में " ग्रहण" (अवलोकन की प्रक्रिया/ ज्ञान) ,ग्राह्य (अवलोकन की वस्तु) और ग्रहीत ( साधक ,अवलोकन कर्ता) ; तीनों का विलय हो जाता है ।

दूसरे शब्दों में ज्ञाता ,ज्ञान और ज्ञान की वस्तु तीनों में भेद नहीं रहता।
चित्त भूमि को जानने हेतु 👇 देखें
https://twitter.com/shrilalraghudev/status/1300356967592943618?s=19
उदाहरस्वरूप ,अगर आप ये थ्रेड पढ़ रहे है तो आप ,इस थ्रेड का ज्ञान ,और ये थ्रेड इनका विलय हो गया , चूकी आपका चित्त स्थिर नहीं है और वो विक्षिप्त , क्षिप्त और मूढ़ की अवस्था में है इसलिए समाधि नगण्य समय के लिए रहती है ,फिर हटती है ,फिर आती है जाती है ; ये अयोग समाधि है।
आपने सुना होगा कि इस बच्चे ने १० मिनट में ये सूत्र कंठस्थ कर लिया ,किसी ने ५ मिनट में ,कोई २ मिनट; यदि यही समय शून्य हो जाए ,तो वो एक झलक होगी योग समाधि की।

इसी को एकाग्र वा निरूद्ध अवस्था में ले जाने से ,योगी योग समाधि में योगारूढ़ होता है
समाधि मुख्यत: दो प्रकार की होती हैं
१) संप्रज्ञात
२) असंप्रज्ञात
संप्रज्ञात चार प्रकार के होते हैं। इस समाधि में
प्रकृति को नियंत्रित करने की शक्तियां प्राप्त होती हैं।
वा " संयम" का प्रयोग करके विभिन्न सिद्धियों की प्राप्ति होती है जो निम्नाकिंत है https://twitter.com/shrilalraghudev/status/1301016870011588608?s=19
१) वितर्क:सवितर्क और निर्वितर्क

जब मन किसी वस्तु के प्रति ध्यान लगता है,अन्य वस्तुओं से अलग करके तब उसेवितर्क कहते है

जब ध्यान की वस्तु बाहरी स्थूल तत्व हो तब उस समाधि को सवितर्क कहते है।

तर्क अर्थ है प्रश्न,जब योगी तत्व पर ध्यान लगता है उसकी सत्यता और शक्तियों को जानने हेतु
फिर यदि तत्व को समय और स्थान से बाहर लता है ,ध्यान में,और ये जाननाचाहता है जैसे कि वो है ; यथा रूप में ,बिना किसी प्रश्न में;ऐसी अवस्था, निर्वितर्क समाधि की है।
जैसे
वस्तु = पक्षी
पक्षी की भाषा ?-सवितर्क
पक्षी के सामने मै हूं -[जितनी भी जानकारी है अपने आप पहुंचेगी]- निर्वितर्क
२) विचार : सविचार और निर्विचार

जब ध्यान थोड़ा आगे बढ़ता है ,और योगी तन्मात्राओं को वस्तु बनाकर सोचता है तो इसे साविचार समाधि कहते है।

जब वहीं ध्यान स्थान व समय से परे हो जाता है ,और तत्वों को वैसे ही देखते है जैसे कि वे है; तब इसे निर्विचार समाधि कहते है।
३)आनंद
अगले चरण में स्थूल और सूक्ष्म दोनो प्रकार के वस्तु ; तर्क और विचार से मुक्त हो जाती हैं;और ध्यान की वस्तु आंतरिक वैचारिक अंग बन जाते है , गुण ,गतिविधि और नीरसता का ध्यान किया जाता है।अपने आंतरिक खोज में लिप्त इस अवस्था को
आनंद समाधि कहते हैं।
४) अस्मिता
इस समाधि में ध्यान की वस्तु आंतरिक सूक्ष्म अंग की जगह आत्मा "मै" तत्व हो जाता है

प्रकृति और पुरुष में पृथकत्व ही कैवल्य की स्थिति है ,जो परम लक्ष्य होता है।

जो इस अवस्था में लक्ष्य प्राप्त किए बिना प्रकृति में विलीन हो जाते हैं उन्हें प्रकृतिलय कहते है
उपरोक्त सभी को सबीज समाधि भी कहते हैं।

अंत में हम किसी भी वस्तु को छोड़ देते है ,ध्यान की कोई वस्तु नहीं होती इसको निर्बीज समाधि कहते हैं।

जो योगी प्रकृति में भी विलीन नहीं होते और आगे बढ़ते है ,उन्हें अंतत: कैवल्य कीप्राप्ति होती हैं।

दग्धबीज भाव:=> निर्बीज => प्रकृति + पुरुष
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