रूस में चीन के साथ हुई मीटिंग के बाद वापस घर लौटने के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कल अचानक ईरान का दौरा किया।

कुछ वक्त पहले चीन के ईरान में 400B$ के प्रस्तावित निवेश की बाते आयी और ऐसे में भारत के लिए इस वक़्त ईरान को साध के रखने की बड़ी चुनौती है।

आइये कुछ पहलू देखते हैं!
ईरान भारत के लिए क्यों आवश्यक है?

• ईरान काफी कम कीमत पर हमें तेल की आपूर्ति करता रहा है तथा वो भी डॉलर नही बल्कि रुपये लेकर

• भारत ईरान का चाबहार पोर्ट बना रहा है जोकि स्ट्रेट ऑफ होरमुज़ में भारत की उपस्थिति दर्ज कराएगा तथा चीनी ग्वादर पोर्ट के प्रभाव को कम करेगा।
• भारत, ईरान और रूस ने 2002 में इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का प्रोजेक्ट शुरू किया जिसमें भारत के मुम्बई से निकल कार्गो ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट से सेंट्रल एशिया होता हुआ रूस तक जाता है। यह 7200 किमी लंबी परियोजना व्यावसायिक प्रयोग हेतु लगभग तैयार है।
• पाकिस्तान एंगल

कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को अलग थलग करने की भारत की रणनीति में यह आवश्यक है कि ईरान पाक की साइड लेने से बचे। कश्मीर घाटी, गिलगित बाल्टिस्तान और लद्दाख में अच्छी खासी शिया जनसंख्या है जिसपे ईरान का प्रभाव है। इसलिए भी भारत के लिए ईरान को साध कर रखना जरूरी है
• अफगानिस्तान एंगल

ऐतिहासिक तौर पर फीके रहे भारत ईरान के संबंधों में गर्मजोशी 1989 के अफगान गृहयुद्ध के दौरान आयी। पाक ने तालिबान के समर्थन किया और भारत ईरान ने Northern Alliance को सपोर्ट किया। भारत के एन्टी-तालिबान झंडे को उठाये रखने के लिए ईरान का साथ आज भी महत्वपूर्ण है।
तो ये रहे मोटामोटी इस रिश्ते में भारत के प्रमुख हित। दुरौन्धी के मरीज़ नेहरू ने कभी ईरान के साथ रिश्तों को अहमियत नहीं दी। सो ईरान ने 65 और 71 के दोनों युद्धों में जम कर पाकिस्तान का साथ दिया। 90s में बात बदली जरूर पर मधुर रिश्तों की शुरुआत 2002 में वाजपेयी जी द्वारा ही हुई।
आइये देखते है इस रिश्ते में ईरान के हित।

• अमेरिकी सैंक्शन्स से पीड़ित ईरान से दुनिया के अधिसंख्य देश किसी प्रकार का बिज़नेस नही करते। अर्थव्यवस्था चलाने के लिए ईरान भारत को मुख्य ग्राहक के तौर पर देखता है। भारत को कम दाम में तेल बेचना ईरान की अपनी मजबूरी है।
• चाबहार पोर्ट का निर्माण तथा रेल/सड़क माध्यम से रूस तक कि पहुँच ईरान की आर्थिक गतिविधियों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। 2016 में मोदी जी तेहरान गए, राष्ट्रपति हसन रूहानी और सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह अली ख़ामेनेई से मिल कर एक दर्जन समझौते किये और निवेश बढ़ाने का आश्वासन दिया।
• ईरान की सऊदी अरब और इजराइल से दुश्मनी है, और भारत ने खास तौर पर मोदी सरकार के दौरान इन देशों से अच्छी दोस्ती कर ली है। 1980 के ईरान-इराक युद्ध के दौरान भारत ने इराक के साथ दिया था। ईरान नही चाहता कि भारत फिर से खुल कर उसके खिलाफ इन देशों के साथ खड़ा हो।
• भारत विश्व का एकमात्र राष्ट्र है जिसके ईरान/सऊदी/अमीरात/इजराइल और अमेरिका सबसे अच्छे रिश्ते हैं। चूँकि इन देशों से ईरान के औपचारिक संबंध नही है इसलिए ईरान भारत का प्रयोग बैकडोर डिप्लोमेसी में करता है।

दोनों के हित देखने के बाद आइये देखते हैं कि इस रिश्ते में क्या चुनौतियां है
• चुनौती नंबर 1 - अमेरिकी सैंक्शन्स

अगस्त 2017 में अमेरिका ने ईरान पर भारी सैंक्शन्स लगाए और 2018 में परमाणु समझौते को तोड़ कर और भी सैंक्शन्स लगाए। जिन्हें सैंक्शन्स का मतलब समझ ना आता हो उन्हें आसान शब्दो मे कहूँगा की इसका मतलब ना अमेरिका व्यवसाय करेगा ना किसी को करने देगा।
अमेरिका ने भारत को तेल आयात करने की छूट दी थी जो पिछले साल समाप्त हो गयी। ईरान से तेल का आयात लगभग शून्य हो चुका है। हालांकि चाबहार पोर्ट के कार्य को सैंक्शन्स से बाहर रखा गया है परंतु सहयोगी कंपनियां नही मिलने से कार्य काफी धीमा चल रहा है जिससे ईरान खीजा हुआ है।
• चुनौती नंबर 2 - भारत अमेरिका के बढ़ते रिश्ते

ईरान नही चाहता कि उसका कोई सहयोगी उसके कट्टर दुश्मन अमेरिका का दोस्त बने परंतु उसकी भारत से अलग उम्मीदें है। ईरान का मानना है कि भारत को अमेरिका में अपने प्रभाव का प्रयोग करके सैंक्शन्स कम करवाने चाहिए, जिसमे भारत नाकाम रहा है।
• चुनौती नंबर 3 - अफगानी अस्थिरता

अफगान पीस प्रोसेस चल रहा है जहाँ सत्ता तालिबान के हाथ मे जाती प्रतीत हो रही है। भारत की भरसक कोशिश है कि मौजूदा अफगानी सरकार की भी सत्ता में भागीदारी हो। जब तक वो सुनिश्चित ना हो तब तक सभी प्रोजेक्ट्स में भारत थोड़ा धीमे जाकर देखना चाहता है।
• चुनौती नंबर 4 - कासिम सोलेमानी की हत्या

3 जनवरी 2020 को अमेरिका ने ईरानी मेजर जनरल कासिम सोलेमानी की ड्रोन अटैक से हत्या कर दी।
कासिम ईरान में भारत के शुभचिंतक थे और पाकिस्तान को उल्टा पुल्टा बोलते रहते थे। उनके रहने तक वहाँ चीन की दाल नही गलती थी।
• चुनौती नंबर 5 - चीन

मौके पे चौका लगाते हुए चीन ने 400B$ का 25 साल का इन्वेस्टमेंट प्रपोजल दिया ईरान को। ऊपर से चमकदार दिखते इस प्लान में ऐसी कोई खास बात नही है। यदि प्रतिवर्ष देखे तो यह मात्र 16B$ हुआ।
इसके बदले चीन बहुत सस्ते में ईरान को दोनों हाथों से लूट रहा है
ईरान को भी चीनी इरादे पता है लेकिन चूंकि उसके पास देश चलाने के लिए पैसे नही है इसलिए उसको मजबूरी में यह करना पड़ रहा है। अमेरिका कितने सालो से इस प्रयत्न में है कि ईरान में सत्ता परिवर्तन हो जाये। ईरान के पास इस समय चीन से किसी भी शर्तो पर समझौता करने के अलावा क्या विकल्प है?
इस स्थिति में अब भारत के सामने दो पहलू हैं।

पहला की हम अमेरिकी दबाव का दमदार सामना करते हुए उनसे ईरान से तेल खरीदने की छूट प्राप्त करें, निवेश बढ़ाये और प्रोजेक्ट्स की रफ्तार बढ़ाये। ईरान भी भारत पर इसी दबाव को बढ़ाने के लिए चाइना कार्ड का प्रयोग कर रहा है।
इसका दूसरा पहलू यह है कि चीन ईरान के रिश्ते बढ़ने का मतलब चीन के लिए पकिस्तान का महत्व कम होना है। चीन ईरान से होकर CPEC का एक अल्टरनेट बना सकता है। चीन को ईरान में फ्री छोड़ने से मिशन गिलगित आसान हो जाता है। चीन का पाकिस्तान में जितना कम इंटरेस्ट होगा हमारे लिए उतना सही होगा।
आज हमारी ईरान नीति असमंजस में खड़ी है। दोनों में से कोई एक रास्ता लेना बहुत रिस्की है अतः भारत के सामने दोनों कार्यो में बैलेंस बैठाने की दुरूह चुनौती है।
भारत ईरान रिश्तों पर अपनी नज़र बनाये रखिये। गिलगित का रास्ते मे यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

राजनाथ सिंह जी को शुभकामनाएं 😊
बहुत लोगो ने DM में गिलगित बल्टिस्तान एंगल के बारे में और डिटेल्स माँगे। मैंने मई महीने में इसपर एक डिटेल्ड थ्रेड लिखा था। यदि आपने नहीं पढ़ा है और मिशन गिलगित में आपका इंटरेस्ट है तो अवश्य पढ़े। https://twitter.com/avna_kshay/status/1266745075305811968?s=19
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