पत्रकारों पर वायरस के संक्रमण का ही नहीं बल्कि अपनी नौकरी जाने से लेकर मुकदमेबाजी तक का चौतरफा संकट छाया रहा है. न्यूज़लॉन्ड्री (हिन्दी) के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया कहते हैं कि कोरोना ने पत्रकारों के लिए असुरक्षा बढ़ा दी है. @dw_hindi @BeechBazar https://www.dw.com/hi/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80/a-54794977
"हर कोई सोचता है कि मैं नहीं जाऊंगा या जाऊंगी तो कोई दूसरा मेरी जगह ले लेगा. हर संस्थान में यह हो रहा है कि जो अभी नहीं आ पा रहे हैं उन्हें बाय-बाय करने का ठान लिया है.” विमल जगदाले, अध्यक्ष, टीवी जर्नलिस्ट एसोसिएशन @sohitmishra99 https://www.dw.com/hi/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80/a-54794977
"दस दिन की बिहार-बाढ़ यात्रा के लिए मुझे अपने दफ्तर से 25 जोड़ी ग्लव्ज, 30 जोड़ी मास्क, 6 फेस शील्ड, 2 पीपीई किट, 5 लीटर सैनिटाईजर की कुप्पी, 2 रेनकोट, 2 बड़े छाते और एक जोड़ी गम बूट्स दिए गए थे." @writetopd @BBCHindi https://www.dw.com/hi/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80/a-54794977
"मैंने बिहार के भागलपुर को बेस बनाकर 40 दिन तक रिपोर्टिंग की. खुश किस्मती से तब बिहार में कोरोना का ऐसा प्रकोप नहीं था जो अब दिख रहा है. ग्रामीण इलाकों में सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाने जैसे नियमों का पालन करना मुश्किल था." @dipankarghose31
"सामाजिक दूरी बनाना इसलिए मुश्किल था क्योंकि यह एकतरफा कोशिश से नहीं हो सकता. मिसाल के तौर पर प्रवासी मजदूरों की समस्या का ही मामला लीजिए. सड़क पर भटक रहे मजदूरों को संक्रमण का डर नहीं था बल्कि उनमें अपनी समस्या को बताने की उत्कंठा कहीं अधिक थी." @ravishranjanshu
"कैमरा ऑन होते ही हर तरफ से मज़दूर घेर लेते थे. उनकी कहानियां इतनी दर्दनाक होती थीं और आधे लोग बोलते बोलते रो पड़ते थे. ऐसे में उनसे यह कह पाना कि, भैया तीन फीट की दूरी रखिए, कम से कम मेरे लिए तो मुमकिन नहीं था" रितुल जोशी, वॉयस ऑफ अमेरिका
You can follow @hridayeshjoshi.
Tip: mention @twtextapp on a Twitter thread with the keyword “unroll” to get a link to it.

Latest Threads Unrolled: