कोरोना के बाद समाज पर आने वाला संकट
1920 में स्पेनिश फ्लू के अंत के बाद के दशक में सट्टा खोरी ने भारत में उत्पात मचा दिया था। जब व्यापार ढप्प हो जाते है तो सट्टे की प्रवृति जन्म लेती हैं। आर्थिक मंदी के बाद ब्याज की दरे घट जाती है। ब्याज दरों के घटने एवं व्यापार में उपयोग ना
होने वाले धन का उपयोग बड़े सट्टा खोर माल की जमाखोरी कर कृत्रिम रूप से दाम बढ़ाकर लोगों को सट्टा खोरी की प्रवृत्ति में खींचने की कोशिश करते हैं।

सट्टा खोरी में सुरुवात में कुछ लोग मुनाफा कमाकर लोगों के रोल मॉडल बन जाते हैं। बहुत कम समय पैदा हुई उनकी चमक दमक बहुत सारे लोगों
को सट्टे के धंधे में आने के लिए आकर्षित कर देती है। विशिष्ट बनने की चाह के इस दौर में, साधारण बने रहना बहुत कठिन है!

1920 से 1930 के दशक में भारत में बहुत सारे व्यापारी इस सट्टा खोरी के चक्रव्यूह फस कर बर्बाद हुए थे। तेल, कपास, वुल यहां तक की बादलों पर भी सट्टा हुआ था।
एक दशक तक रहने वाली यह सट्टे की भयानक बीमारी लोगों को ऐसा शिकार बनाती है कि वो अपनी सारी पूंजी हार जाते थे। फिर इस खोई हुई पूंजी को पुनः प्राप्त करने के लिए लोगों से कर्ज लेकर वह भी सट्टे में हार जाते थे।

यह बातें गूगल ज्ञान का हिस्सा नहीं है।
यह बातें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अनुभवों को पहुंचाने की प्रक्रिया का हिस्सा है। मेरे मां के मुख से यह सुना था कि इस वजह से उस वक्त के धनवान परिवार गरीबी में तब्दील हो गए थे। उसकी बातों को सुनने के बाद मैंने अपने जीवन में यह निक्षय किया था कि मैं किसी सट्टा या जुआ की
प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनुंगा। यही बात मैंने मेरे बच्चों के जेहन में बिठाई है सट्टे की त्रासदी में फंसने के बाद बहुत से लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते है। फिर वह पीढ़ी गरीबी के चक्रव्यूह से बाहर नहीं पाती हैं।

जो भी सट्टा खोरी के जाल में फंस जाता है, उसका बर्बाद होना तय है
क्योंकि सट्टाखोरों की एक लॉबी इस कार्य को बेहद होशियारी से अंजाम देती हैं। आखिर में लोगों का नुक़सान होता है इनका मुनाफा होता हैं। हाल ही में क्रूड ऑयल में हुई सट्टाखोरी उसका एक छोटा सा नमूना है।

1920 और 30 के दशक में सट्टे की त्रासदी का सबसे बड़ा शिकार समाज के मध्यमवर्गीय
धनवान परिवार हुए थे इसलिए टाटा एवं बिरला की तरह तीसरी पीढ़ी तक धन को बचाने वाले बड़े उद्योगपति आज समाज में हमें दिखाई नहीं दे रहे हैं। आज जो भी समाज में धनवान दिखाई देते है, वह ज्यादातर पहली या दूसरी पीढ़ी के धनवान है। सट्टे के व्यवसाय में घुसना आपके हाथ में है, उससे बाहर निकलना
आपके हाथ में नहीं है। आपको 100-150 साल पुराने उद्योगपती घराने मिल जायेंगे लेकिन 100 साल पुराने सट्टे के धनवान व्यवसायी नहीं मिलेंगे। कभी ना कभी तो उन्हें बर्बाद होना ही है।

कोरोना के इन हालात में अब खुद को और बाद में अपने धन को सुरक्षित रखें।

कोरोना के बाद पैदा होने वाले और
करीबन एक दशक तक चलने वाले सट्टा खोरी के चक्रव्यूह में ना फस कर धीरे धीरे अपने व्यापार को फिर से जमाने की कोशिश करें।

आज यह देखकर बहुत दुख होता है कि समाज के बहुत सारे युवा सट्टे के व्यवसाय में कार्यरत हैं। सट्टे को मुख्य व्यवसाय बनाना या सट्टे की चकाचौंध को देखकर अपने व्यवसाय
को बंद कर सट्टे के व्यवसाय में कूदना मूर्खता है। युवाओं को सट्टे से प्रभावित होने के बदले करोना के बाद पैदा होने वाली व्यापार एवं उद्योग की नई संभावनाओ पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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