जिन लोगों को लगता है कि अपने राज को कायम रखने के लिए क्षत्रियों ने मुगलों से संधियां की उन्हें एक बार हठी हम्मीर के बारे में जरूर पढ़ लेना चाहिए जिन्होंने क्षत्रिय धर्म के पालन में अपना राजपाठ तक उजाड़ दिया,अगर क्षत्रिय स्वार्थी होते तो उन्हें 13वीं सदी से लेकर 18विं
सदी तक जौहर नही करने पड़ते... हमें संधियां करनी पड़ी क्योंकि मुगल/अफगानी/तुर्क आक्रांता क्षत्रियों से आमने सामने के युद्ध में न जीत पाने के कारण प्रजा को प्रताड़ित करते थे उनके घरों को फूंक देते थे उन्हें बंधक बनाकर मंडियों में बेचते थे जौहर शाके तो हमारे लिए खेल थे हर
रोज मौत का नंगा नाच होता था किंतु निरीह प्रजा की गुहार क्या होती है अटल बिहारी बाजपेयी से पूछिए जब कंधार विमान अपहरण में 176 यात्री बंधक बना लिए गए थे और बदले में उन्हें आतंकियों को मुक्त करना पड़ा था ये तो महज एक घटना है जिससे अटल जी निरुपाय हो गए थे एवं सम्पूर्ण
राष्ट्र हिल गया था।
मध्यकाल में तो दो-दो लाख क्षत्रियों के खोपड़ी से दीवारें बना दी जाती थी फिर भी वो कभी झुके नहीं आज जिन्हें क्षत्रिय कायर लगते हैं वो जरा इस्लाम का इतिहास पढ़ ले इस्लाम जहां भी गया उसे उस देश की मूल संस्कृति के उच्छेदन में 50 वर्ष नहीं लगे लेकिन भारत में
इतने वर्ष मुसलमानों का शासन रहने के बावजूद सनातन धर्म जिंदा है तो ये क्षत्रियों की तलवारों का जौहर है आम क्षत्रिय संघर्ष से कभी असम्बद्ध नहीं रहा उसे सदैव अपने क्षेत्र के लोगों की रक्षा का दायित्व बोध रहा।
कभी कौटुम्बिक मोह ने उसे रोका भी तो क्षत्राणियों ने मोह उग्रह हेतु अपने
अपने सर थाल में सजाकर दे दिए। आज भी किसी क्षेत्र में क्षत्रिय 5% भी हो तो किसी आततायी में इतना साहस नहीं की वो उन्हें प्रताड़ित कर सके उदाहरण पश्चिमी उत्तरप्रदेश है जहां दलित और मुस्लिम की युति भी क्षत्रियों को दबा नहीं पाती बिहार में जब नक्सलियों के भेष सत्ता समर्थित अहीरों ने
सवर्णों की बस्तियां उजाड़ी तो क्षत्रियों ने अपना वो उग्र रूप दिखाया कि अहीरों ने लोगों को अपनी जाति बताना छोड़ दिया था कश्मीर से ब्राह्मण पलायन को मजबूर हुए किंतु किसी आततायी में साहस है तो डोगरा क्षत्रियों को छेड़कर देखे कश्मीर में स्वयं न अल्पसंख्यक हो जाये तो कहना कैराना में
नए नए पैदा हुए वीर जाट, गूजरो का क्षेत्र है अपने घर छोड़कर क्यों भाग गए भाई?? अपनी वीरता क्षत्रियों को गाली देकर ही दिखानी है क्या सबको?? भदरी रियासत में मोहर्रम के दिन किसी मुसलमान ने एक बंदर मार दिया था तब से उदय प्रताप सिंह मोहर्रम के दिन जानबूझकर उसी रास्ते पर भंडारा कराते
हैं जिस रास्ते से ताजिया निकलती है किसी सरकार मे साहस है तो रोक ले उन्हें ये क्षत्रियों का रक्त है, यह ढाई इंच की जुबान चलाकर वीरता नहीं दिखाते।
समस्त क्षत्रियों को समर्पित❤️🙏🚩
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