गिरा देते हो रोटी जहाज से,
तुम सड़कों से मुआयना क्यों नहीं करते।

देखो मेरा गेहूँ और धान बह गया,
कपड़ा और मकान बह गया।
बचा-खुचा खलिहान डूब रहा है,
मेरा सारा संसार डूब रहा है,
धंधा और कारोबार डूब रहा है।
बाढ़ आती है,तो तबाही आती है।
इसने तो सड़कें तोड़ दी,पुलिया तोड़ दिया,
हमने अपना-अपना कुलियाँ तोड़ दिया।

देखो मियां भाई का बेटा बीमार है,
सरिता माँ बननेवाली है,उसकी हालत तो और खराब है।

और रात को कितनी मुश्किल होती है,समझते हो।
गिरा देते हो रोटी जहाज से,
तुम सड़कों से मुआयना क्यों नहीं करते।

बाढ़ तो हर साल आती है,
तुम तो चुनावी साल आते हो।

अखबार में जो छाप देते हो,वो तो सरकारी बयानबाजी है।
जो युद्ध हम लड़ रहे,वो अकबरी तलबारबाजी है।
मर गया देखो बेटा उसका,
लेकिन उसकी बेटी जन्मी है।
अब यहीं उसका सुकुन है।

गिरा देते हो रोटी जहाज से,
तुम सड़कों से मुआयना क्यों नहीं करते।
~अंकित कुमारा
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