आप लाख गालियां दे लें लेकिन मेंटल हेल्थ के क्षेत्र में सबसे सही काम न्यूज़ चैनल्स ने किया है। साल-डेढ़ साल पहले जब ऑटो सेक्टर की लगी पड़ी थी, वॉचडॉग कुत्ते की तरह भौंक रहे थे, तब न्यूज़ चैनल्स कश्मीर और मुसलमान दिखा कर एंटरटेन कर रहे थे।
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विकास की रफ्तार सुस्त पड़ी, सरकार ने मंदी को सुस्ती कहा, जीडीपी के पकौड़े तल गए, इकॉनमी के आठ सेक्टर्स की लंका लग गई, बेरोजगारी बेतहाशा रिकॉर्ड तोड़ रही थी तब मोदीजी के प्रचार को देशभक्ति बताकर हैलोजन ठेली जा रही थी।

सच ये है कि देश की जो दशा है, वो सुनकर आपका हाड़ कांप जाए।
सीमेंट सरीखा टचअप पोत एंकर सिर्फ कोरोना के आंकड़े पढ़ दे तो आपके नलके बह जाएं।

आने वाला समय इतना खराब है कि एंकर सही तस्वीर बता दे तो डिप्रेशन, अवसाद, चिंता-हताशा, ब्रेकडाउन, पैनिक अटैक, एंग्जाइटी, सेल्फ लोदिंग, इरीटेबिलिटी हैशटैगों से सोशल मीडिया भर जाए।
आपके कल्ले चनचना जाएं अगर 5 दाढ़ी वाले या संभ्रांत मृदुभाषी महिलाएं 6 बजे की डिबेट में आकर ये बताने लग जाएं कि हम कहां लैग कर रहे हैं और आम आदमी की जेब पर क्या फटका पड़ने वाला है।

जब वो ग्राफिक्स वाला टेक्स्ट चमकेगा न तो करेजा धुकुर-धुकुर होगा
'बाप-बाप चिल्ला रही अर्थव्यवस्था, देख लो अपना रस्ता',

'कोरोना में प्रिंटिंग प्रेस का निकला दम, कर रहम',

'एक्सपोर्ट की फटी, भारतीय वस्तुओं की ब्रिटेन में डिमांड घटी'

'ले भटाभट, बिजली, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस और रिफाइनरी उत्पादन में भारी गिरावट'
'कोरोना की नमी, इस्पात के उत्पादन में 33% से ज्यादा की कमी'
ऐसा टेक्स्ट जब आग के बीच से निकलेगा तो ऐड देखकर भी कलेजा सूखेगा।
तो अपनी एवरेज लोअर मिडिल क्लास बुद्धि और मुंह बंद रखो, क्योंकि तुम जर्नलिज्म से घण्टा कोई उम्मीद नहीं रखते, इसलिए शो ऑफ भी मत करो, तुम्हें कचरा पसंद है वो मिल रहा है उसे भकोसो और भगवान के लिए डरपोक अहसानफरामोशों, टीवी चैनलों को दोष देना बंद करो।
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