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लैंगिक समानता

स्त्री और पुरुष इस समाज के अभिन्न अंग है।एक सम्पूर्ण समाज स्त्री और पुरुष के शारीरिक गठन में अंतर होने के उपरांत भी,स्त्री और पुरुष के मध्य भेदभाव न करके दोनों को इस समाज के हर क्षेत्र में समान अधिकार प्रदान करता है।
(१/११)
आज मनुष्य विकास के पथ पर अग्रसर है।और इस विकास के पीछे शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है।आज पहले की अपेक्षा स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त है।
(२/११)
आज शिक्षण संस्थाओं में,स्त्री और पुरुष को उनके ज्ञान के आधार पर आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त है न कि उनके लिंग के आधार पर।इसलिए आज समाज में शिक्षितों की संख्या में वृद्धि हुई जो कि इस समाज में एक सकारात्मक दृष्टिकोण और समाज का विकास करने में एक अहम भूमिका का निर्वाह करता है।
(३/११)
आज स्त्रियां पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है।वर्षों पहले जहां महिलाओं के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी,वहां सिर्फ नारी स्वयं को स्थापित ही नहीं कर पायी है,बल्कि वहां सफल भी हो रही है।

(४/११)
उदहारण के तौर पे खेल के क्षेत्रों में निशानेबाज़ी,तीरंदाज़ी, कुश्ती, बैडमिंटन, जिम्नास्टिक,ट्रैक एंड फील्ड जैसे खेलों में महिलाओं ने खुद को साबित किया है।
हम किसी भी कीमत पर नहीं बोल सकते की वो अब किसी से कम है।हमें ऐसे ही नारी शक्ति की हिम्मत और हुनर को बढ़ावा देना चाहिए|
(५/११)
रोजगार भी इस समाज में लिंग के आधार पर नहीं अपितु व्यक्ति के कार्य कुशलता के आधार पर प्रदान किया जाता है।
अगर रोजगार व्यक्ति के लिंग के आधार पर प्रदान किया जाएगा तो समाज बहुत सारी कुशलताओं से और विकास से वंचित रह जाएगा।
(६/११)
हर व्यक्ति अपने भविष्य के निर्माण के लिए किसी ना किसी रोजगार में लगना चाहता है।समाज की इस रोजगार समानता के कारण आज ना जाने कितने मासूमों का पेट पलता है और न जाने कितने जीवनों का निर्वाह होता है।

(७/११)
लोकतंत्र समाज में नारी और पुरुष को समान अधिकार प्राप्त है।दोनों के मतो के आधार पर ही समाज के भविष्य का गठन होता है।नारी और पुरुष,दोनों को समान अधिकार प्राप्त है कि वे स्वतंत्रता से अपने मतो को व्यक्त कर समाज गठन में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
(८/११)
स्त्री और पुरूष गाड़ी के दो पहिये की तरह है। जो एक पाहिये के बिना दूसरा नकारा हो जाता है।ठीक उसी तरह इस समाज की उन्नति के लिए, उसकी आर्थिक अवस्था में वृद्धि के लिए,इस समाज की सूख शान्ति के लिए,दोनों लिंगों का समान अधिकार प्राप्त होना अत्यंत आवश्यक है।
(९/११)
लिंगों के मध्य असमानता बहुत सारी कुरीतियों को,बुराइयों को जन्म देती है।परन्तु जब स्त्री को भी समाज में वह स्थान प्रदान किया जाए जो पुरुषों को प्राप्त है तो इस समाज में स्वयं ही बहुत सारी कुरीतियां और बुराइयां जड़ से खत्म हो जाएगी।
(१०/११)
भारत में लिंगों को समान अधिकार प्राप्त नहीं है,केवल आंशिक भाग ही प्रचलित है।अगर यह समाज मेहनत,परिश्रम करके लिंगों की समानता के इस आंशिक रूप को सम्पूर्ण समानता में परिणत करने में सक्षम हो जाएगा तो यह राष्ट्र स्वयं ही उन्नत और विकासशील से विकसित राष्ट्र में परिणत हो जाएगा।
(११/११)
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