अखिलेश यादव और बहन मायावती ने यूपी के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा लखनऊ पर खर्च किया. 7 से 8 जिलों के बराबर बजट अकेले लखनऊ पर खर्च हुआ.

क्या आप जानते हैं कि लखनऊ की जनता 1991 से लगातार बीजेपी को विजयी बना रही है. जिन जिलों से सपा-बसपा जीतती है, वे सपा-बसपा राज में विकास को तरसते रहे.
विकास और राजनीति के रिश्तों को लेकर ये दल जैसा सोचते हैं, जनता उस तरह नहीं सोचती. वरना लखनऊ से सपा को हारना नहीं चाहिए था. किसी भी हालत में नहीं.

विकास कर देंगे, तो पब्लिक वोट दे देगी, जितना सरल मामला नहीं है. चुनाव एक पेचीदा राजनीतिक प्रक्रिया है.
अगर किसी दल को पता ही नहीं है कि उसका वोटर कौन है, कहां रहता है, क्या चाहता है, उस पर किस तरह से खर्च करने है तो उस दल को पब्लिक इसलिए वोट नहीं दे देगी कि आपने अरबों रुपए खर्च करके राजधानी को चमका दिया.
नोएडा की पब्लिक विकास सपा-बसपा से कराती है और वोट बीजेपी को देती है. सपा-बसपा अगर पिछले कुछ चुनाव के आंकड़े ही देख ले, तो ये बात समझ में आ जाएगी. गरीब इलाकों की अनदेखी इन दलों को महंगी पड़ी है. पूरा पूर्वांचल इनके दौर में उपेक्षित रह गया.
नोएडा विधानसभा में भी सपा-बसपा लगातार हार रही हैं. वहां भी दोनों दलों ने काफी विकास किया है. अरबों रुपए के प्रोजेक्ट यहां बने हैं. यूपी सरकार ने यहां अलग से मेट्रो लाइन चलाई है. लेकिन यहां की पब्लिक हमेशा बीजेपी को जिताती है.
लखनऊ और नोएडा में हारने के कारणों पर सपा और बसपा को गंभीरता से चिंतन करना चाहिए. इससे ज्यादा विकास तो आप कहीं कर नहीं पाएंगे, जितना यहां कर दिया है.

यूपी का सारा का सारा बजट नोएडा और लखनऊ में डालकर भी सपा और बसपा इन दो जगहों पर नहीं जीत सकती. सवाल ही नहीं उठता.
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