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कौआ और कोयल कुछ कुछ एक जैसे दिखते हैं। लेकिन अंतर बहुत होता है। सरकारी बैंक और प्राइवेट बैंक वैसे तो दोनों बैंक ही हैं मगर दोनों में वही फर्क होता है जो कौवे और कोयल में होता है।
कौआ और कोयल कुछ कुछ एक जैसे दिखते हैं। लेकिन अंतर बहुत होता है। सरकारी बैंक और प्राइवेट बैंक वैसे तो दोनों बैंक ही हैं मगर दोनों में वही फर्क होता है जो कौवे और कोयल में होता है।
जहां कौआ सरकारी बैंक के कैशियर की तरह कर्कश आवाज वाला, वहीं कोयल प्राइवेट बैंक की कॉल सेंटर वाली कन्या सरीखी मधुर मधुर कूं कूं करने वाली। मेरे कुछ बंधु भगिनी सरकारी बैंकों को कौवे सतुल्य बताने पे उद्वेलित हो सकते हैं उनसे अनुरोध है कि धैर्य के साथ आगे पढें।
कौआ की आवाज वैसे तो पसंद नहीं आती मगर अगर वो घर की मुंडेर पे बैठ के कांव कांव करे तो किसी मेहमान के आने का सूचक माना जाता है। मेहमान के आगमन के साथ आती है समृद्धि, लोकप्रियता, और नए अवसर। अब अगर मेहमान ही घटिया निकले उसमें बेचारे कौवे की क्या गलती।
वैसे ही सरकारी बैंक जहां भी खुलता है वहां नये लोगों को जोड़ता है नई संभावनाएं पैदा करता है। अभी SBI ने लद्दाख में 14 नई ब्रांच खोली हैं। कोयल के साथ ऐसा कोई मिथक नहीं जुड़ा है। वो आम के बाग में पाई जाती है। जहां पहले से ही बैंकिंग सुविधा मौजूद है वहां और भीड़ बढ़ा के क्या फायदा।
कौवे ऐसे भी बहुत काम के होते हैं। जहां कोई लावारिस जानवर मरता है वहां कौवे ही सफाई करने पहुंचते हैं। ये एक तरह से समाज के जमादार है। गंदी, बदबूदार जगह जहां पर सरकारी सफाईकर्मी भी जाना पसंद नहीं करते वहां ये सेवाएं देते हैं। सरकारी बैंक भी कुछ ऐसे ही हैं।
पूर्वोत्तर के दुर्गम जंगलों में चले जाइए, कच्छ के नमकीन मरुस्थल में चले जाइए, उड़ीसा झारखंड के घोर आदिवासी इलाके घूम आइए आपको सरकार मिले ना मिले सरकारी बैंक जरूर मिलेंगे। जिन गावों में आजतक सड़क ना पहुंच पाई वहां सरकारी बैंक पहुंचे हुए हैं।
ये समाज के सबसे पिछड़े और गरीब लोगोंको सेवाएं देते हैं। ये गंदी जगह देखके नाक मुंह नहीं सिकोड़ते। कोयल को बुलाने केलिए साफ सुथरे बाग लगाने पड़ते हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे निजी निवेश को आकर्षित करने केलिए सरकार "समृद्धि के टापू" विकसित कररही है। वहां ना आपको गरीब मिलेंगे ना गरीबी।
कौवे के साथ एक और बड़ी खासियत जुड़ी हुई है। कौआ प्राणी जगत के सबसे समझदार जीवों में से एक माना जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार कौवे का IQ सात साल के इंसानी बच्चे जितना होता है। शायद वो प्यासे कौवे की कहानी भी झूठी नहीं है।
वैसे ही सरकारी बैंक और बैंकर भी काफी समझदार होते हैं। प्राइवेट बैंक में अक्सर वही जाता है जो IBPS नहीं क्लियर कर पाता। सरकारी बैंकर प्यासे कौवे की तरह जुगाड़ू होता है। इसलिए तो राजस्थान के गांव का छोरा तमिलनाडु की बूढ़ी अम्मा को सर्विस दे पाता है।
सरकारी बैंकर वैसे भले ही कितना ही होम पोस्टिंग के लिए चिल्लाए, मगर वो घर से 3000 किलोमीटर दूर छोटे से गांव में भी उतनी ही शिद्दत से काम करता है। प्राइवेट वाले को पचास लपुझन्ने चाहिए। कोयल के आम के बाग की तरह।
लेकिन आजकल जो सरकार आयी है उसे शायद कौवे पसंद नहीं। उसने सभी कौवों को कोयल जैसा गाना सीखने का आदेश दिया है। जो ऊपर बैठे कौवे हैं उन्हें आम के बागों में के जा कर गाने की ट्रेंनिग दी जा रही है।
आजकल नीचे वाले कौवों पे बहुत प्रेशर है। कस्टमर को कॉल करके मीठी आवाज में गाना सुनाने का। सर लोन ले लो, insurance ले लो, mutual fund खरीद लो। वे बेचारे कर भी रहे हैं। अपनी कर्कश आवाज में ही सही।
पर पता नहीं इस सरकार को कौवों से आजकल इतनी चिढ़ क्यूं है। इसको आम के बाग में बैठने वाली कोयल ज्यादा पसंद आ रही है। हो सकता है इसलिए कि शायद साहब को आम ज्यादा पसंद है।
#Stop_Privatization
#निजी_आयोग
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