#थ्रेड_आत्मकथा
#मैं_सरकारी_बैंक_हूँ
हाँ,हाँ सही पढ़े,मैं सरकारी बैंक हूँ,
मुझे लोग इसी नाम से जानते हैं,देश के हर गाँवों में,कस्बों में,शहरों में,राज्यों में,इसी नाम से व्याप्त हूँ।आज से नहीं हूं,सैकड़ों साल बीत गये,कितने पीढ़ियों को देखा है।
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#StopPrivatisationofBanks
#मैं_सरकारी_बैंक_हूँ
हाँ,हाँ सही पढ़े,मैं सरकारी बैंक हूँ,
मुझे लोग इसी नाम से जानते हैं,देश के हर गाँवों में,कस्बों में,शहरों में,राज्यों में,इसी नाम से व्याप्त हूँ।आज से नहीं हूं,सैकड़ों साल बीत गये,कितने पीढ़ियों को देखा है।
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#StopPrivatisationofBanks
कितने गांवों को प्रखंड और प्रखंड को जिले और जिले को राजधानी बनते देखा!
ये भी सच्चाई है कि पहले मैं कॉरपोरेट के अधीन था,मेरी पहुँच सीमित था,मैं कुछ हीं लोगों को सेवाएँ दे पाता था,बेहद दुखी था।
उसी क्रम में 1947 से 1969 तक लगभग 559 बार फेल हुआ।
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#StopPrivatisationofBanks
ये भी सच्चाई है कि पहले मैं कॉरपोरेट के अधीन था,मेरी पहुँच सीमित था,मैं कुछ हीं लोगों को सेवाएँ दे पाता था,बेहद दुखी था।
उसी क्रम में 1947 से 1969 तक लगभग 559 बार फेल हुआ।
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#StopPrivatisationofBanks
ये अलग बात है कि वजह मेरे नियंत्रण में नहीं था,लेकिन कहते हैं न कि मेरे भी अच्छे दिन ऐसे नहीं आये।
ये भी सच्चाई है कि सरकार की आंख तब खुली,जब गरीब और मध्यम वर्गों को सूदखोरों द्वारा लूटा जा रहा था,लोग असहाय हो गये थे,कॉरपोरेट चला नहीं पा रहे थे,मेरा फेल होना सामान्य हो गया।
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ये भी सच्चाई है कि सरकार की आंख तब खुली,जब गरीब और मध्यम वर्गों को सूदखोरों द्वारा लूटा जा रहा था,लोग असहाय हो गये थे,कॉरपोरेट चला नहीं पा रहे थे,मेरा फेल होना सामान्य हो गया।
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स्थिति इतनी बदतर हो गयी थी कि 1960s में एक वरिष्ठ नागरिक ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित नेहरू जी को अत्यंत भावुकता भरा चिट्ठी लिखा।उक्त चिट्ठी में उन्होंने लिखा:-
"एक मध्यमवर्गीय का जीवन कांटों भरा होता,बहुत मेहनत कर मैने अपने जिंदगी भर की कमाई उक्त बैंक में रखी"
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"एक मध्यमवर्गीय का जीवन कांटों भरा होता,बहुत मेहनत कर मैने अपने जिंदगी भर की कमाई उक्त बैंक में रखी"
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मैं नहीं फेल हुआ,हजारों-लाखों सपने टूट गये,कितनों के घर में मातम का माहौल है,हमारी जिंदगी बदतर हो गयी है,खाने को पैसे नहीं हैं,कैसे होगा
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फिर 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती गाँधी ने राष्ट्रीयकरण किया,फिर तो मेरे साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था का काया हीं पलट हो गया।
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फिर 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती गाँधी ने राष्ट्रीयकरण किया,फिर तो मेरे साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था का काया हीं पलट हो गया।
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मैने देश के हर दिशा तक अपने शाखाओं का व्यापक विस्तार किया, गाँव-गाँव, शहर-शहर, राज्य-राज्य तक पहुंचा,मैनें लद्दाख़ जैसे दुर्गम स्थानों पर भी शाखा खोला।
1969 में केवल 1833 ग्रामीण शाखाएँ थी,जबकि जून 2019 तक 28815 हो गयी,कुल जमा 4646 करोड़ से बढ़कर ₹51060 करोड़ हो गया।
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1969 में केवल 1833 ग्रामीण शाखाएँ थी,जबकि जून 2019 तक 28815 हो गयी,कुल जमा 4646 करोड़ से बढ़कर ₹51060 करोड़ हो गया।
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मेरा कारवाँ बढ़ता गया,हर नये आयाम पार किये,लोगों को बचत का आदत सिखाया,मैं हीं तो हूँ, जो तब था,जब कोई न था,मैंने घर-घर जा कर लोगों का खाता खोला,जरूरतें के लिये ऋण भी दिया।कृषि इस देश की जीवन रेखा है,जिसे मैंने हीं पुनर्जीवित किया,1969 में 14% कृषि ऋण था,जो कि आज 40% है।
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मैंने हर सेक्टर में वित्तीय सुविधा मुहैया कराया,चाहे टेक्सटाइल सेक्टर हो या टेलीकॉम सेक्टर हो या इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर हो या लघु या बृहत उद्योग हो,वो भी बिना मुनाफ़ा का परवाह किये,
अधिकांशतः तो सामाजिक बैंकिंग ही थे,आज भी 70-80फ़ीसदी उद्योग धंधे मेरे हीं सहयोग से चल रहे।
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अधिकांशतः तो सामाजिक बैंकिंग ही थे,आज भी 70-80फ़ीसदी उद्योग धंधे मेरे हीं सहयोग से चल रहे।
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ये तब नहीं कर पाया था,जब मैं निजी हाथों में था।लेकिन मेरा दुर्भाग्य है की मेरे द्वारा किये गये कार्य किसी को नहीं याद आता,मुझे केंद्र में ऱखकर हीं नीतियाँ बनती,मेरे अथक प्रयास से हीं योजना का सफलतापूर्वक कार्यान्वयन होता,फ़िरभी श्रेय के बदले भाइयों का हत्या,संख्या कम हो रहे।
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ऐसा नहीं है,की मैंने सामाजिक बैंकिंग करते हुये, सरकार को लाभांश नहीं दिया है!
सामाजिक बैंकिंग के साथ मुख्यधारा की बैंकिंग भी किये हैं।हाँ,ये अलग बात है कि NPA और विलफुल डिफॉल्टर्स के प्रति @RBI और @FinMinIndia की नरम रुख से हर साल प्रावधान के नाम पर मुनाफे में बट्टा लग जाता
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सामाजिक बैंकिंग के साथ मुख्यधारा की बैंकिंग भी किये हैं।हाँ,ये अलग बात है कि NPA और विलफुल डिफॉल्टर्स के प्रति @RBI और @FinMinIndia की नरम रुख से हर साल प्रावधान के नाम पर मुनाफे में बट्टा लग जाता
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अफ़सोस,जैसे सरकारें बदलती हैं,बड़े कॉरपोरेट उसी का फायदा उठाने के लिये तंत्र में सेंधमारी शुरू कर देते,ताकि निजीकरण का प्रयास सफ़ल हो
फिर 40% गरीबी रेखा वाले और मध्यमवर्गीय की कौन सुनता?कृषि और अन्य प्राथमिक क्षेत्रों की चिंता कौन करता!सब पूर्ववत लूटेंगे
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मैं फिर फेल हूँगा
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फिर 40% गरीबी रेखा वाले और मध्यमवर्गीय की कौन सुनता?कृषि और अन्य प्राथमिक क्षेत्रों की चिंता कौन करता!सब पूर्ववत लूटेंगे
मैं फिर फेल हूँगा