कारगिल युद्ध को जम्मू-कश्मीर के कारगिल सेक्टर में लाइन ऑफ कंट्रोल के किनारे, 1999 के मई-जुलाई के दौरान लड़ा गया था। इस युद्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 3 हजार सैनिकों को मार गिराया था। यह युद्ध 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था।
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना को कई बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। पाकिस्तानी सैनिक ऊंची पहाड़ियों पर थे जबकि हमारे सैनिकों को गहरी खाई में रहकर उनसे मुकाबला करना था। भारतीय जवानों को आड़ लेकर या रात में चढ़ाई कर ऊपर पहुंचना पड़ रहा था, जोकि बहुत जोखिमपूर्ण था।
कारगिल युद्ध 60 दिनों तक चला और अंततः 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। भारत में युद्ध में विजय पताका फहराई और देश के स्वाभिमान के इस प्रतीक को ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया गया।
कारगिल युद्ध के हीरो
विक्रम बत्रा
जिन्होंने कहा था `ये दिल मांगे मोर`
कैप्टन विक्रम बत्रा के अदम्य साहस और पराक्रम के लिए 15 अगस्त 1999 को उन्हें वीरता के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया
विक्रम बत्रा
जिन्होंने कहा था `ये दिल मांगे मोर`
कैप्टन विक्रम बत्रा के अदम्य साहस और पराक्रम के लिए 15 अगस्त 1999 को उन्हें वीरता के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया


राजस्थान के सीकर के रहने वाले दिगेंद्र
कारगिल युद्ध के दौरान दिगेंद्र ने चाकू से पाकिस्तान के मेजर अनवर का सिर काटकर उसमें तिरंगा फहराया था।युद्ध के बाद दिगेन्द्र सिंह को राष्ट्रपति डॉक्टर केआर नारायणन ने महावीर चक्र से नवाजा था। 47 साल के दिगेद्र सिंह 2005 में रिटायर हुए थे।
कारगिल युद्ध के दौरान दिगेंद्र ने चाकू से पाकिस्तान के मेजर अनवर का सिर काटकर उसमें तिरंगा फहराया था।युद्ध के बाद दिगेन्द्र सिंह को राष्ट्रपति डॉक्टर केआर नारायणन ने महावीर चक्र से नवाजा था। 47 साल के दिगेद्र सिंह 2005 में रिटायर हुए थे।
कारगिल युद्ध का हीरो सौरभ कालिया
दुनिया के लिए नायक रहे और परिवार के लिए ‘शरारती’ कैप्टन सौरभ 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान शुरुआत में शहीद हुए सैनिकों में एक थे। वह भारतीय थल सेना के उन 6 कर्मियों में एक थे, जिनका क्षत-विक्षत शव पाकिस्तान द्वारा सौंपा गया था।
दुनिया के लिए नायक रहे और परिवार के लिए ‘शरारती’ कैप्टन सौरभ 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान शुरुआत में शहीद हुए सैनिकों में एक थे। वह भारतीय थल सेना के उन 6 कर्मियों में एक थे, जिनका क्षत-विक्षत शव पाकिस्तान द्वारा सौंपा गया था।

हरियाणा के सिरसा के गांव तरकांवाली के सिपाही कृष्ण कुमार ने भी देश के खातिर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे जयसिंह बांदर का 25 वर्षीय पुत्र कृष्ण कुमार कारगिल युद्ध के समय जाट रैजिमेंट में सिपाही के पद पर तैनात था. परम्परागत कृषि कार्य को छोड़कर उसने फौज में जाने का फैसला लिया

अमर बलिदानी कैप्टन विजयंत थापर
विजयंत ने 28-29 जून 1999 की दरम्यानी रात में नॉल पहाड़ी पर तिरंगा लहराया। इसके बाद थोड़ा आगे बढ़े तो दुश्मनों की मशीन गनें गोलियां उगल रहीं थीं, इसी दौरान एक गोली विजयंत के माथे पर लगीं और वह हवलदार तिलक सिंह की बांहों में गिरकर शहीद हुए।
विजयंत ने 28-29 जून 1999 की दरम्यानी रात में नॉल पहाड़ी पर तिरंगा लहराया। इसके बाद थोड़ा आगे बढ़े तो दुश्मनों की मशीन गनें गोलियां उगल रहीं थीं, इसी दौरान एक गोली विजयंत के माथे पर लगीं और वह हवलदार तिलक सिंह की बांहों में गिरकर शहीद हुए।

मनजीत फरीदाबाद के बराड़ा गांव के रहने वाले थे। शहीद मनजीत सिंह के पिता गुरचरण सिंह एक किसान थे।
मनजीत सिंह की ड्यूटी कारगिल में लगा दी गई।7 जून 1999 में टाईगर हिल में दुश्मनों का डटकर सामना करते हुए मनजीत सिंह शहीद हो गए।
मनजीत सिंह की ड्यूटी कारगिल में लगा दी गई।7 जून 1999 में टाईगर हिल में दुश्मनों का डटकर सामना करते हुए मनजीत सिंह शहीद हो गए।

कैप्टन मनोज कुमार पांडे गोरखा राइफल्स के फर्स्ट बटालियन में थे. उन्होंने 11 जून को बटालिक सेक्टर में दुश्मनों को करारी मात दी थी. उनके ही नेतृत्व में सेना ने जॉबर टॉप और खालुबर टॉप पर दोबारा कब्जा किया था. पांडेय को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया

लेफ्टिनेंट शींग क्लिफोर्ड नोंग्रुम जम्मू कश्मीर लाइट इनफेंट्री की 12वीं बटालियन में थे. वो कारगिल युद्ध के दौरान प्वांइट 4812 पर लड़ते हुए 1 जुलाई 1999 को शहीद हुए.
नोंगुर्म को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया
नोंगुर्म को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया

कर्नल सोनम वांगचुक
वांगचुक लद्दाख स्काउट रेजिमेंट में अधिकारी थे. कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना को खदेड़ते हुए वांगचुक कॉरवट ला टॉप पर वीरता से लड़े और युद्ध ख़त्म होने पर वापस लौटे. उन्हें बाद में महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
वांगचुक लद्दाख स्काउट रेजिमेंट में अधिकारी थे. कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना को खदेड़ते हुए वांगचुक कॉरवट ला टॉप पर वीरता से लड़े और युद्ध ख़त्म होने पर वापस लौटे. उन्हें बाद में महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

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