कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक भारतवर्ष एक है।
ये लाइने आप अक्सर सुनते होंगे। विशेषकर नाथूराम गोड़से ने जब कहा था कि जब तक अटक पर भगवा नही फहराता और सिंधु नदी तिरंगे के नीचे नही बहती तब तक मेरी अस्थियां विसर्जित न की जाय।
आज हम उसी अटक और अटक के किले की
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बात करने जा रहे है....!!
#अटक_का_रेगिस्तान_और_अटक_का_किला!
अटक और अटक का बहुचर्चित किला केवल एक किला नहीं है बल्कि भारत के इतिहास का वो पृष्ठ है,जिसे हर भारतीय को जरूर पढ़ना चाहिये...जो भारत की लूट के दास्तानो को संभाले हुए है...इस किले के बहाने आज आप जान पाएंगे कि भारत के
निर्माता सम्राट भरत कितने भविष्यदृष्टा और बुद्धिमान थे..!

जब सम्राट भरत ने हमारे देश का नक्शा डिजाइन किया होगा तब उन्होंने छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखा...जैसे भारत की रक्षा,दक्षिण और पूर्व में समुद्र था तो उत्तर में हिमालय,मगर पश्चिम में सहायता के लिए कुछ नहीं था।
इसलिए भारत देश का विस्तार किया गया,आज के अफगानिस्तान तक मानवों को बसाया गया...वैसे तो सम्पूर्ण पृथ्वी पर सनातन ही था जिसके साक्ष्य पूरी दुनिया में देशों मे बंटे भूभाग में मिल रहे हैं...!!

खैर बात करते हैं अफगानिस्तान की जिसके आगे यानी पश्चिम मे ईरान का रेगिस्तान था
जहाँ रेतीले तूफानों के कारण किसी के लिये भी भारत तक पहुँचना संभव नही था..!!
भरत के बाद सम्राट रघु,प्रभु श्री राम,सम्राट कुरु और धर्मराज युधिष्ठिर ने इस पूरे भूभाग को बार बार एकसूत्र में बांध कर उस पर शासन किया...मगर ईरान में फिर भी बसावट नही की गई।
इसके बाद जब मौर्य वंश की सत्ता
स्थापित हुई तब सम्राट अशोक ने एक ऐसी गलती की जिसका फल देश आजतक भुगत रहा है..दरसल भरत चाहते थे कि वे इस रेगिस्तान में कभी कोई बस्ती ना बसाए और इसे खुला मैदान रहने दे ताकि यदि कोई भारत पर आक्रमण करने आये तो वह या तो रेगिस्तान में फंस जाए या फिर खुले मैदान में होने के कारण पराजय का
सामना करे...लेकिन महान अशोक ने इसके उलट ईरान में बसावट की,इसका नतीजा यह हुआ कि अब भारत का सीधा सम्पर्क अन्य देशों से जुड़ गया...अरब में इस्लाम की स्थापना के बाद जेहादियो ने बड़ी आसानी से ईरान पर कब्जा कर लिया और फिर अफगानिस्तान को भी मजहबी तलवार के दम पर भारत से तोड़ दिया...
इसके बाद शक, हूण, तुर्क,अफगान और मुगल कोई पीछे ना रहा सब आते रहे और भारत की अखण्ड संपदा लूटते रहे...

विदेशियों को रोकने का बीड़ा रखने वालो ने सबसे पहले सन् 1579 में काबुल में घुस कर भारत विरोधी सोच और तत्वों का संहार ही नही बल्कि यह भी भाँप लिया था कि काबुल से संकट हमेशा दिल्ली
की ओर आता रहेगा इसलिए वर्तमान अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर अटक नाम के स्थान पर एक किला बनवाया जाय...यही अटक का किला है!!!

1581 में बनकर तैयार अटक किला वह मजबूत प्राचीर था जिसने सदियों तक भारत को बचा लिया..लेकिन सन् 1739 में नादिरशाह ने धोखे से अटक किले में प्रवेश किया और
उस पर कब्जा कर लिया और इस तरह दोबारा भारतवर्ष की लूट का एक अध्याय आरंभ हुआ!!!

1739 से 1757 तक नादिरशाह और उसका गुलाम अहमद शाह अब्दाली भारत को लूटते रहे मगर इसी दौर में मराठे एक महाशक्ति बनकर उभरे...मराठों ने उत्तर भारत मे प्रवेश किया...अजमेर,आगरा और दिल्ली को जीतते हुए पंजाब में
में घुस गए....पेशवा के भाई और मराठा सेनापति राघोबा दादा ने अटक पर कब्जा कर लिया इस तरह अब सदियों बाद पूरा भारत एक बार फिर भगवा ध्वज के नीचे आ गया....अटक पर कब्जे के बाद राघोबा ने अफगानिस्तान में लूटपाट की और अफगानों को दौड़ा दौड़ा कर मारा...विट्ठल जी गायकवाड़ को अटक का किलेदार
बनाकर लौट आए!!!

अहमद शाह अब्दाली ने धोखे से गायकवाड़ का कत्ल करवा दिया और पाँचवी बार भारत में घुस आया...इस बार पेशवा ने अपने चचेरे भाई सदाशिव भाऊ को अब्दाली को खदेड़ने के उद्देश्य से भेजा।भाऊ ने अब्दाली से लड़ने के लिये यमुना के दोआब क्षेत्र को चुना था मगर विधाता ने ऐसी स्थिति
बना दी कि यह युद्ध दिल्ली और आगरा में ना होकर पानीपत में हुआ...वहां वीर मराठे पराजित हुए और अटक का किला स्थायी रूप से फिर से अफगानों के हाथ लग गया!!

लेकिन सन् 1767 में सिखों ने इस पर फिर कब्जा कर लिया जिसके एवज में बदला लेने अब्दाली फिर भारत आया तथा लाहौर में हिन्दुओ और सिखों का
जमकर नरसंहार किया।

अब्दाली ने पंजाब से हिन्दू धर्म का नामोनिशान मिटा देने का पूरा प्रयास किया तथा वाराणसी से ज्यादा मंदिर वाले शहर लाहौर को तो लगभग पूरी तरह बर्बाद करके रख दिया....सन् 1805 में महान सिख सम्राट रणजीत सिंह ने अपने बाहुबल से एक बार पुन: अटक को दोबारा आजाद करके
केसरिया झंड़े के नीचे ले आये..।

महाराज रणजीत सिंह जी ने अटक किले से अफगानों को सदा के लिए उखाड़ फेंका तथा लाहौर में अफगानों द्वारा तोड़े गए मंदिरों और गुरुद्वारों की पुनः स्थापना किया...महाराज रणजीत सिंह एक आदर्श राजा थे उनके कारण कश्मीर और पंजाब में स्वराज्य की स्थापना हुई!!!
अफसोस उनके निधन के बाद जब सिख राजशाही का पतन हुआ तो इस किले को अंग्रेजों ने सिख रेजिमेंट का गढ़ बना दिया!!

दरअसल अटक के इस किले ने वर्षो क्या सदियों तक भारत को बचाये रखा...लेकिन अंग्रेज और कांग्रेस की दुरभिसंधि के कारण 1947 में यह बहादुर किला स्वयं इस्लामिक आतंकवाद की भेंट चढ़
गया...अटक अब पाकिस्तान का अंग है..पाकिस्तानी सेना ने अटक को एक छावनी में बदल दिया तथा सिखों द्वारा किले के दरवाजे पर स्थापित की हुई भगवान गणेश की प्रतिमा खंडित की और अक्सर गायों की कुर्बानी देकर भारतीयों को चिढ़ाते हैं!!

आज भी यह किला पाकिस्तान की सेना का शिविर बना हुआ है सदियों
तक भारत की रक्षा करने वाला यह किला आज भारत के विरुद्ध षड्यंत्रों का गढ़ बन गया है...पाकिस्तानी सेना अफगानिस्तान से तालिबानियों और आतंकवादियों को घुसाती रहती है और ये आतंकवादी कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते है...अटक के किले की दीवारे इन सब घटनाओं को देख कर मन ही मन आँखे
नम जरूर करती होंगी कि कहां हमारा निर्माण भारत की रक्षा के लिये किया गया था...कहां आज हमारा उपयोग उसी भारत को खंडित करने मे किया जा रहा है...!!
महात्मा गांधी के वध के बाद नाथूराम गोडसे ने बयान दिया था कि जब तक अटक पर भगवा नहीं फहराता और सिंधु नदी तिरंगे के नीचे नही बहती तब तक मेरी
अस्थियां विसर्जित ना की जाएं।

गोडसे जी की इसी एक बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह किला 1581 से लेकर 2020 तक हर समय हमारे लिए कितना आवश्यक है...यह किला दिखने में सामान्य हो सकता है मगर अब आतंकवादियों के लिये इसे भारत का गेटवे बना दिया गया है।
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