#गांधी_एक_साजिश
दोस्तो अब मैं जो लिखने जा रहा हूँ उसको ध्यान से पढिये और गौर करिये🙏🏼
एक काला आदमी लंदन में रहकर बिना किसी परेशानी के गोरो के साथ पढ़ सकता है, होस्टल के एक कमरे में रह सकता है, एक मेस में खा सकता है फिर अचानक ट्रेन में एक साथ सफर करने में फेंक दिया
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@rituabhi77
जाता है ये बात कतई हजम नही होती। यही आदमी बाद में उन्हीं गोरों की सेना में सार्जेंट मेजर बनता है और दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश बोर वार में उसकी तैनाती एम्बुलेंस यूनिट में होती है। मिलिट्री यूनिफॉर्म में उन करमचंद जी की फोटो पूरे इंटरनेट उपलब्ध है।
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आप सार्जेंट मेजर गांधी लिखकर सर्च कर लीजिए।

अचानक 46 वर्ष की उम्र में 1915 में देशप्रेम जागा और मिलिट्री यूनिफार्म उतारकर बैरिस्टर घोषित कर दिया गया। (जबकि रानी लक्ष्मी बाई, खुदीराम बोस, बिस्मिल, भगतसिंह और आजाद जैसे अनेकों देशभक्तों की 25 की उम्र आते आते तक शहादत
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हो गई थी।) फिर उनको महात्मा बुद्ध की तरह शांति अहिंसा का दूत बनाकर दक्षिण अफ्रीका से सीधे चंपारण भेज दिया जाता है जहाँ नील उगाने वाले किसानों के आंदोलन को वे हैक कर लेते हैं। हिंसक होते आंदोलन को अहिंसा शांति के फुस्स आंदोलन में बदल देते हैं।

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महात्मा बुद्ध की तरह दिन में एक धोती लपेट कर शांति अहिंसा के नाम पर भारतीयों के आजादी के लिये होनेवाले हर उग्र आंदोलन की हवा निकाल कर उसे बिना किसी परिणाम के अचानक समाप्त कर देते हैं और अंग्रेज चैन की सांस लेते रहते हैं।

अहिंसा के पुजारी.. दिन में बुद्ध और रात
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में महावीर जैन की तरह दिगम्बर हो जाते हैं। महावीर जैन निर्वस्त्र थे पर पतित नहीं। ये नंगा फकीर अपने साथ अपनी बेटी भतीजी के अलावा अनेक औरतों के साथ खुद पर परीक्षण करने के लिये नंगा सोता है और अपने स्टेमिना को चेक करने को ब्रह्मचर्य का प्रयोग कहता है।
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(यह अपनी पुस्तक "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" में उन्होंने खुद स्वीकार किया है।)

अंग्रेजों के इस एजेंट का नाम दिन में करमचंद और रात को .....चंद हो जाता है और आज भी यह परंपरा चल रही है। यह अहिंसा का पुजारी, प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का खुला साथ देता है
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और अपने अहिंसा के सिध्दांतों को दरकिनार करके भारतीयों को कहता है सेना में भर्ती हो जाओ और युद्ध करो ताकि ब्रिटिश राज बचा रहे तब अहिंसा आड़े नहीं आती। नेताजी से मतभेद भी इसी वजह से होते हैं कि जब अंग्रेजों की तरफ से लड़ना अहिंसा है तो अपने देश के लिये लड़ना क्यों बुरा है।

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देश को बांटने वाला राष्ट्रपिता बन जाता है। लाखों को मरवा देनेवाला अहिंसा का पुजारी और महात्मा बन जाता है। दिल्ली के मंदिर में कुरान पढ़ने की जिद पूरी करने पुलिस बुला लेते हैं पर कभी मस्जिद में गीता या रामायण नहीं पढ़ने की हिम्मत जुटा पाते। पाकिस्तान को 55 करोड़ और
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आज के बांग्लादेश जाने 15 KM चौड़ा कॉरिडोर जिसके दोनों तरफ 10 KM तक केवल मुस्लिम ही जमीन खरीद सके उसकी जिद पकड़कर अनशन करने की धमकी देकर ब्लैकमेल करते हैं।

पर गांधी शब्द एक ब्रांड है एक ढाल है। अंग्रेजों ने भी इस ढाल की आड़ लेकर भगतसिंह, आजाद, सुखदेव, राजगुरु और नेताजी
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सुभाष जैसे क्रांतिकारी वीरों को खत्म किया। आज भी बालाकोट करना है गांधी के नाम पर करना होता है। कल संसार भर में हमको भी आतंकियों को मारना है, जेहादियों को कूटना है, इसे हमें गांधी के नाम पर अहिंसा और शांति की स्थापना के नाम पर करना होगा।

गांधी बहुत मजेदार थीम है इसलिए
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मोदी जी..गांधी गांधी करते हैं..... समझा करो मित्रों, "गोडसे तलवार हैं और गांधी ढाल हैं" इनकी आड़ में ही हिन्दुराष्ट्र का झाड़ खड़ा करना है और इंटरनेशनल कम्युनिटी भी गांधी नाम की ढाल के पीछे ही अपनी तलवार वर्षों से छिपा रही है। जीसस के प्रेम पीस और क्षमा के नाम पर दूसरे
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देशों पर कब्जे कर रही है। इस्लाम भी अमन और भाई चारे का मजहब है वे भी अपनी तलवार इसी ढोंग के पीछे छिपाए बैठे हैं।
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