सुशांत ने इन्हीं जैसे घटिया लोगों की हरकतों के कारण अपने नाम से राजपूत हटाया था। फिर इन्होंने उसे गालियां देकर ट्रोल किया था। आज ये उस की मौत का इस्तेमाल, अपने मज़े के लिए कर रहे हैं।
ख़ैर! ये तो अपनी कुंठा मिटाने के लिए भगवान का भी इस्तेमाल करते हैं, सुशांत तो फिर भी इंसान था।
ख़ैर! ये तो अपनी कुंठा मिटाने के लिए भगवान का भी इस्तेमाल करते हैं, सुशांत तो फिर भी इंसान था।
जो इंसान क्वांटम विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान की बातें करता था। उसके नाम पर गुंडागर्दी और गाली-गलौच की जा रही है। आज सुशांत की जगह कोई और इन्हीं परिस्थितियों में हमारे बीच से गया होता और सुशांत वही कहता और करता जिसमें वो यकीन रखता था, तो ये लोग उसे पिछली बार की तरह नोच खाते।
सुशांत उस पहचान का प्रतिनिधित्व करता था, जिसका आजकल इंटेलेक्चुअल-बुद्धिजीवी कह कर मज़ाक उड़ाया जाता है। वो लोगों के बीच इसी कारण अजीब महसूस करता रहा क्यूँकि इंटेलेक्चुअल होना यहाँ "वियर्ड" होना माना जाता है। थोथी और खोखली बातें यहाँ लोगों को रोमांचित करती हैं।
ऐसे ही लोगों ने न जाने कितने बुद्धिजीवियों का पहले मज़ाक उड़ाया। उन्हें प्रताड़ित किया और उनके मरने के बाद, अपने झंडे पर उनका नाम लिखकर, अपना झंडा बुलंद किया। जो वैयक्तिकता में यकीन करते थे, उनके नाम से समूह बनाकर गुंडागर्दी करी।
ये लोग दरअसल पेशेवर लकड़बग्घे हैं।
ये लोग दरअसल पेशेवर लकड़बग्घे हैं।