#श्रृंखला
~• ॥ #मन्वंतर ॥•~
सनातन परंपरा मे समय की गणना के लिए उन्हे कई भागों में विभाजित किया गया है, उन्ही मे से एक है मन्वंतर (मनु+ अंतर) जिसका अर्थ है मनु कि आयु , प्रत्येक मन्वंतर ब्रह्मा द्वारा सृजित एक विशेष मनु द्वारा संचालित किया जाता है,
~• ॥ #मन्वंतर ॥•~
सनातन परंपरा मे समय की गणना के लिए उन्हे कई भागों में विभाजित किया गया है, उन्ही मे से एक है मन्वंतर (मनु+ अंतर) जिसका अर्थ है मनु कि आयु , प्रत्येक मन्वंतर ब्रह्मा द्वारा सृजित एक विशेष मनु द्वारा संचालित किया जाता है,
वर्तमान मन्वंतर का संचालन मनु वैवस्वत द्वारा किया जा रहा है, इन्द्र है पुरन्दर तथा सप्तॠषिओं के नाम कुछ इसप्रकार है ,...
• कश्यप,
•अत्रि,
•वशिष्ठ,
•विश्वामित्र,
•गौतम,
•जमदग्नि और,
•भारद्वाज
पुराणो के अनुसार 14 मन्वंतर होते है जिनमे से ६ मन्वंतर बीत चुके है...
• कश्यप,
•अत्रि,
•वशिष्ठ,
•विश्वामित्र,
•गौतम,
•जमदग्नि और,
•भारद्वाज
पुराणो के अनुसार 14 मन्वंतर होते है जिनमे से ६ मन्वंतर बीत चुके है...
और सातवाँ अथार्थ वर्तमान समय मे वैवस्वत मन्वंतर है, हर मन्वंतर के मनु अलग अलग होते है जिनके श्री नाम से ही मन्वंतर को जाना जाता है , प्रत्येक मन्वंतर के मनु तो अलग होते ही है साथ साथ उनके इन्द्र, सप्तॠषि और देवताओं के प्रमुख गण भी बदलते रहते है ,
तथा प्रत्येक कल्प मे इन मन्वंतरों के नाम भी बदल जाते है ,
वर्तमान कल्प के14 मनुओ तथा ॠषियो के नाम कुछ इस प्रकार है ....
वर्तमान कल्प के14 मनुओ तथा ॠषियो के नाम कुछ इस प्रकार है ....


विष्णुपुराण के आधार पर समय की गणना कुछ इस प्रकार है ....
•१५ निमेष = १ काष्ठा
•३० काष्ठा = १ कला
•३० कला = १ मुहूर्त
•३० मुहूर्त = १ अहोरात्र ( एक दिन और रात)
•१५ अहोरात्र = २ पक्ष( शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष)
•२ पक्ष = १ मास
•६ मास = १ अयन
•२ अयन = १ वर्ष
•१५ निमेष = १ काष्ठा
•३० काष्ठा = १ कला
•३० कला = १ मुहूर्त
•३० मुहूर्त = १ अहोरात्र ( एक दिन और रात)
•१५ अहोरात्र = २ पक्ष( शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष)
•२ पक्ष = १ मास
•६ मास = १ अयन
•२ अयन = १ वर्ष
एक वर्ष = देवताओं का एक दिन और रात देवताओं के १२ हजार वर्षों मे सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलयुग नामक चार युग होते है । जिसमे, सतयुग मे १७,२८,००० त्रेतायुग मे १२,९६,००० द्वापरयुग मे ८,६४,००० और कलयुग मे ४,३२,००० होते है ,
चारों युगों को मिलाकर बनते है चतुर्युग, जिनमे ४२,३२,०००० वर्ष होते है । ७१ चतुर्युग से कुछ अधिक काल का होता है १ मन्वंतर
• १४ मन्वंतर मे १ कल्प (ब्रह्मा के एक दिन )और उतने ही समय की होती है उनकी रात्रि जिसे प्रलयकाल कहते है।"
• १४ मन्वंतर मे १ कल्प (ब्रह्मा के एक दिन )और उतने ही समय की होती है उनकी रात्रि जिसे प्रलयकाल कहते है।"
इस प्रकार दिव्य वर्ष से १ मन्वंतर मे ८,५२,००० वर्ष बताये गये है अथवा मानवी वर्ष की गणना के अनुसार यह पूरे ३०,६७,२०,०००वर्ष का होता है। और इसी काल का १४ गुना (१कल्प) होता है ब्रह्मा का एक दिन जिसके तुरंत बाद आता है निमित्तिक नाम का ब्रह्म प्रलय।
उस समय भूलोक, भुवलोक तथा स्वलोक तीनो जलने लगते है और महलोक मे रहने वाले सिद्धगण अति सन्तप्त होकर जनलोक को चले जाते है, और इसी प्रकार त्रिलोकी के जलमय हो जाने पर जनलोक वासी योगियों के द्वारा ध्यान करते हुए नारायण रूप कमल योनि ब्रह्म जी त्रिलोकी के ग्रास से तृप्त होकर ....
१ दिन के ही बराबर वाले रात्रि मे शेषशय्या पर शयन करते है जिसके बीत जाने पर पुनः सृष्टि की रचना होती है । इसी प्रकार ( निमेष, काष्ठा,कला आदि ) की गणना से ब्रह्मा के एक वर्ष और फिर १०० वर्ष होते है , १०० वर्ष ही उन परम ब्रह्म की आयु है , जिनका एक परार्द्ध (आधा हिस्सा) बीत चुका है ,
जिसके अंत मे पाद्म नाम से जाना जाने वाला महाकल्प हुआ और वर्तमान मे उनके दूसरे पदार्द्ध का यह वाराह नाम का पहला कल्प है।
Source : विष्णु पुराण
Source : विष्णु पुराण