#बिहार_90_के_दशक_में,
मेरा व्यक्तिगत और आंखो देखा अनुभव:-
#मैं_आगामी_बिहार_विधानसभा_चुनाव_का_माहौल_खराब_नहीं_करना_चाहता
कहा जाता है कि,जिस तरह बिहार कि राजनीति देश की राजनीति तय करती है,ठीक उसी तरह बिहार कि गुंडागर्दी पूरे देश के अपराधों को एक नए लेकिन भयानक अंजाम तक ले जाती है
2016 को एक दुर्दांत अपराधी जेल से छूटता है, और 1300 गाड़ियों का काफिला जेल से उसके घर #सीवान तक जाता है और टोल टैक्स वाले साइड में खड़े होकर बस चुपचाप देखते रहते हैं। ऐसा तो फिल्मों में भी नहीं देखा होगा किसी ने। पर ये सच है। जेल से छूट कर बिहार के मुख्य मंत्री को चुनौती और
धमकी तक दे डालता है। #शहाबुद्दीन जो कम्युनिस्ट और #बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ खूनी मार-पीट के चलते चर्चित हुआ था. इतना कि शाबू-AK 47 नाम ही पड़ गया.
बिहार में #जंगलराज कि बात जब भी होती है, तो मुझे उस जंगल के कुछ #शेरों की याद आ जाती है, जिन्होंने बिहार का विनाश कर दिया।
1986 में हुसैनगंज थाने में शहाबुद्दीन पर पहली FIR दर्ज हुई थी. आज उसी थाने में ये A-लिस्ट हिस्ट्रीशीटर है. मतलब वैसा अपराधी जिसका सुधार कभी नहीं हो सकता.
80 के दशक में लालू जी सीएम बने और शहाबुद्दीन लालू के साथ हो लिया. मात्र 23 की उम्र में 1990 में विधायक बन गया.
विधायक बनने के लिए 25 मिनिमम उम्र होती है. पर इसके सामने तो #संविधान ने भी अपना सिर झुका लिया था। लालू के लिए ये कुछ भी करने को तैयार था. और लालू इसके लिए. इसी प्रेम में बिहार में अपहरण एक उद्योग बन गया. सैकड़ों लोगों का अपहरण हुआ. कोई इस राज्य में आना नहीं चाहता था.
इसके अपराधों की लिस्ट बहुत लम्बी है. जैसे रात को 8 बजने से पहले लोग घर में घुस जाते थे. क्योंकि शहाबुद्दीन का डर था. कोई नई कार नहीं खरीदता था. अपनी तनख्वाह किसी को नहीं बताता था. शादी-विवाह में कितना खर्च हुआ, कोई कहीं नहीं बताता था. लोग ये भी नहीं बताते थे कि बच्चे कहां
नौकरी कर रहे हैं. धनी लोग पुरानी मोटरसाइकल से चलते और कम पैसे वाले पैदल. लालू राज में सीवान जिले का विकास यही था.
जनाधार के लिए शहाबुद्दीन ने एक चाल चली. वो अपने घर में जनता अदालत लगाने लगा. लोगों की समस्याएं मिनटों में निपटाई जाने लगीं. किसी का घर किसी ने हड़प लिया.
साहब का इशारा आता था. अगली सुबह वो आदमी खुद ही खाली कर जाता. साहब डाइवोर्स प्रॉब्लम भी निपटा देते थे. जमीन की लड़ाई में तो ये विशेषज्ञ थे. कई बार तो ऐसा हुआ कि पीड़ित को पुलिस सलाह देती कि साहब के पास चले जाओ. एक दिन एक पुलिस वाला भी साहब के पास पहुंचा था. प्रमोशन के लिए.
पर पुलिस वालों से 2001 में इसकी मुठभेड़ हो गई, जिसमे शहाबुद्दीन के लोगों ने हजारों राउंड फायरिंग की 12 पुलिस वालों को उनके गाड़ियों के साथ जिंदा जला दिया गया। और शहाबुद्दीन नेपाल भाग गया। पर सबसे बड़ी बात ये थी कि वे लोग पाकिस्तान से हथियार बिहार तक मंगवाते थे।
1999 में इसने कम्युनिस्ट पार्टी के एक कार्यकर्ता को किडनैप कर लिया था. उस कार्यकर्ता का फिर कभी कुछ पता ही नहीं चला. इसी मामले में 2003 में शहाबुद्दीन को जेल जाना पड़ा. जेल में भी शहाबुद्दीन के लोग हथियार के साथ उसकी सुरक्षा करते थे। 2004 के लोकसभा चुनाव को ये फिर जीत गया और खुशी
के मारे विरोधी प्रत्याशी सहित आठ लोगों को गायब करवा दिया, आजतक वो लापता है। 2005 में शहाबुद्दीन के घर से #पाकिस्तान में बने हथियार, बम, मिसाइल लॉन्चर, ग्रेनेड लॉन्चर और #ISI से सीधे सम्बन्ध के सबूत मिले। सुप्रीम कोर्ट ने उसे सजा के तौर पर चुनाव लडने का अधिकार छीन लिया और 7 साल की
जेल दे दी। जजों में इतना खौफ था कि इसके केस की सुनवाई करने में वो डरते थे। 2009 में जब उसके तरफ से उसकी पत्नी चुनाव में खड़ी हुई तो उसकी बुरी हार हुई। 2014 में एक केस दोबारा खुला, जिसमे 2004 में किए गए एक भयानक अपराध में ये दोषी पाया गया। 2004 में इसने एक परिवार के दो भाइयों से
रंगदारी ना मिलने पर उन्हें #तेज़ाब से नहलाकर तब तक तड़पाया जब तक वे दोनों मर नहीं गए। इस अपराध के लिए उसे उम्रकैद की सजा दी गई और सीवान के बाहुबली का आतंक समाप्त हो गया। आज भी #राष्ट्रीय_जनता_दल उसे बाहर निकालने की कोशिश में लगी हुई है।
अब निर्णय आपको लेना है कि आगामी चुनाव
का परिणाम देश और राज्य के हित में होगा या नहीं।
#BiharElection #biharassemblyelection
#JDU #RJD
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