#Thread on नारी और वेद ।

आज वेदों पर सेक्सिस्ट होने का दावा किया जाता है। कई लोग ये कहते और मानते हैं की नारियों को वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी/है।

क्या ऐसा सच में है?

प्राचीन काल में नारियों को न केवल वेद पढ़ने की अनुमति थी, बल्कि उन्हें वेद पाठय करने की भी अनुमति थी।
सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि वे यग-हवन भी करती थीं।

यह सच है कि वैदिक शास्त्र किसी को भी अपनी क्षमताओं और इच्छाओं से ऊपर और उससे जुड़ने के लिए मजबूर नहीं करते हैं, और इसलिए वैदिक सभ्यता में एक नारी केवल परिवार, बच्चों, पति, घर के लिए खुद को समर्पित करने और
अपनी खुद की शारीरिक उपस्थिति के बारे में चिंता करने का विकल्प चुन सकती है। अन्य गतिविधियों में संलग्न होने के लिए मजबूर किए बिना, लेकिन इस तरह के व्यवसाय एक सीमा, एक दायित्व या प्राथमिकता कर्तव्य का गठन नहीं करते हैं।

यजुर वेद के मितानिनिय के शिष्य, हरिता धर्मसूत्र
के अनुसार, नारियों का एक समूह जिसे ब्रह्मवादिनी कहते हैं वह ना केवल वेद पढ़ सकती है किंतु लिख भी सकती है। लिख सकती क्या बल्कि इतिहास में कई नारियों ने वेद के कुछ श्लोक लिखे भी हैं।

ब्रह्मवादिनी एक अत्यंत बुद्धिमान और बहुत ही विद्वान महिला है, जो की वैदिक अध्ययन का
मार्ग चुनती हैं। ब्रह्मवादिनी का शाब्दिक अर्थ है ‘वह नारी जो परब्रह्म के बारे में बोलती है।

ब्रह्मवादिनी कभी-पूरी जिंदगी अविवाहित रहती हैं, हालाँकि, अगर वे चाहें तो शादी कर सकती थी।

ऐसी ही एक ब्रह्मवादिनी हुई जिनका नाम था लोपामुद्रा, जो की संस्कृत और तमिल की प्रसिद्ध
विद्वान थीं ।इन्होंने ऋग्वेद के 1.179.1-2 की रचना की और अगस्त्य ऋषि से शादी की।

इनके अलावा अत्रि के परिवार से विश्ववारा, घोषा, सिकता, निववारी, अपाला और विश्ववारा, अंगिरसा के परिवार से अंगिरसी सरस्वती, यमी वैवस्वती, श्रद्धा, घोष, सूर्या, इंद्राणी, उर्वसी, सरमा, जुहू और पौलोमी
सैक्षानी, इन सब ने ऋग्वेद के मंत्रो की रचना करने में अपना योगदान दिया है।

महान गणितज्ञा लीलावती को कौन नहीं जानता! इन्होंने गणित साहित्य की रचना की।

आईए एक बार वेदों में नारियो के सम्बंध में क्या कहा गया है, जानते हैं-
यजुर्वेद १०.२६
शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें | जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों |

यजुर्वेद २०.९
स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है |
यजुर्वेद १७.४५
स्त्रियों की भी सेना हो | स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें |

अथर्ववेद ११.५.१८
कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें |

अथर्ववेद १४.१.६
माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का
उपहार दें | वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें |

अथर्ववेद १४.१.२०
हे पत्नी ! हमें ज्ञान का उपदेश कर |
वधू अपनी विद्वत्ता और शुभ गुणों से पति के घर में सब को प्रसन्न कर दे |

अथर्ववेद ७.४६.३
पति को संपत्ति कमाने के तरीके बताए|
संतानों को पालने वाली, निश्चित ज्ञान वाली,
सह्त्रों स्तुति वाली और चारों ओर प्रभाव डालने वाली स्त्री, तुम ऐश्वर्य पाती हो | हे सुयोग्य पति की पत्नी, अपने पति को संपत्ति के लिए आगे बढ़ाओ |

अथर्ववेद ७.४७.१
हे स्त्री ! तुम सभी कर्मों को जानती हो |
हे स्त्री ! तुम हमें ऐश्वर्य और समृद्धि दो |
अथर्ववेद ७.४७.२
तुम सब कुछ जानने वाली हमें धन – धान्य से समर्थ कर दो |
हे स्त्री ! तुम हमारे धन और समृद्धि को बढ़ाओ |

अथर्ववेद ७.४८.२
तुम हमें बुद्धि से धन दो |
विदुषी, सम्माननीय, विचारशील, प्रसन्नचित्त पत्नी संपत्ति की रक्षा और वृद्धि करती है और घर में सुख़ लाती है |
अथर्ववेद १४.१.६४
हे स्त्री ! तुम हमारे घर की प्रत्येक दिशा में ब्रह्म अर्थात् वैदिक ज्ञान का प्रयोग करो |
हे वधू ! विद्वानों के घर में पहुंच कर कल्याणकारिणी और सुखदायिनी होकर तुम विराजमान हो |
अथर्ववेद २.३६.५
हे वधू ! तुम ऐश्वर्य की नौका पर चढ़ो और अपने
पति को जो कि तुमने स्वयं पसंद किया है, संसार – सागर के पार पहुंचा दो |
हे वधू ! ऐश्वर्य कि अटूट नाव पर चढ़ और अपने पति को सफ़लता के तट पर ले चल |
अथर्ववेद १.१४.३
हे वर ! यह वधू तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है |
हे वर ! यह कन्या तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है |
यह बहुत काल तक तुम्हारे घर में निवास करे और बुद्धिमत्ता के बीज बोये |
अथर्ववेद २.३६.३
यह वधू पति के घर जा कर रानी बने और वहां प्रकाशित हो |
अथर्ववेद ११.१.१७
ये स्त्रियां शुद्ध, पवित्र और यज्ञीय ( यज्ञ समान पूजनीय ) हैं, ये प्रजा, पशु और अन्न देतीं हैं |
यह स्त्रियां शुद्ध स्वभाव वाली, पवित्र आचरण वाली, पूजनीय, सेवा योग्य, शुभ चरित्र वाली और विद्वत्तापूर्ण हैं | यह समाज को प्रजा, पशु और सुख़ पहुँचाती हैं |
अथर्ववेद १२.१.२५
हे मातृभूमि ! कन्याओं में जो तेज होता है, वह हमें दो |
स्त्री में जो सेवनीय ऐश्वर्य और कांति है, हे भूमि ! उस के साथ हमें भी मिला |
अथर्ववेद १२.२.३१
स्त्रियां कभी दुख से रोयें नहीं, इन्हें निरोग रखा जाए और रत्न, आभूषण इत्यादि पहनने को दिए जाएं |

अथर्ववेद १४.१.५०
हे पत्नी ! अपने सौभाग्य के लिए मैं तेरा हाथ पकड़ता हूं |
अथर्ववेद १४.२ .२६
हे वधू ! तुम कल्याण करने वाली हो और घरों को उद्देश्य तक पहुंचाने वाली हो |
अथर्ववेद १४.२.७१
हे पत्नी ! मैं ज्ञानवान हूं तू भी ज्ञानवती है, मैं सामवेद हूं तो तू ऋग्वेद है |
अथर्ववेद १४.२.७४
यह वधू विराट अर्थात् चमकने वाली है, इस ने सब को जीत लिया है |
यह वधू बड़े ऐश्वर्य वाली और पुरुषार्थिनी हो |
अथर्ववेद ७.३८.४ और १२.३.५२
सभा और समिति में जा कर स्त्रियां भाग लें और अपने विचार प्रकट करें |
ऋग्वेद ३.३१.१
पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है |
इसी तरह, वेद स्त्री की सामाजिक, प्रशासकीय और राष्ट्र की सम्राज्ञी के रूप का वर्णन भी करते हैं |

ये तो सिर्फ़ कुछ मन्त्र हैं।ऐसे कई और मन्त्र है जो की स्त्री को सम्मानिय और किसी भी तरह की अनैतिक बंधन से मुक्त बताते है।
स्त्री का सम्मान ना करना और उन्हें कई तरह के बंधन में रखना दूसरे धर्म को मानने वाले और पक्षिमि दुनिया की सोच थी हमारी नहीं।
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