#श्रृंखला
#श्रावण_मास
-शिव की महिमा के गायन का समय

श्रावण मासको भगवान शिव का प्रिय मासकहा गया है । मान्यता है किभगवान विष्णुयोगनिद्रा में जाते समय भगवान शिवको संसारकेपालनका दायित्व सौंपदेते हैं । श्रावण में भगवान भोलेनाथ की पूजा - अर्चना कर उन्हें सहजही प्रसन्न कियाजासकता है,
ग्रीष्म ऋतु की ज्वाला से झुलसती धरती पर भोलेनाथ का सर्वाधिक प्रिय महीना श्रावण ( सावन ) आ गया है । सिर्फ मनुष्य नहीं , जीव - जंतु से लेकर पेड़ - पौधे , नदी - तालाब , वन - उपवन , पर्वत - झरनों तक को लगता है कि हर तरह के ताप हरने वाले भगवान शंकर का डमरू बज गया है ।
महादेव का यह डमरू कोई साधारण डमरू नहीं , बल्कि ' नाद - सृष्टि ' का अलौकिक यंत्र है , जिसकी ध्वनि से अक्षर और शब्द निकले , मंत्र गूंजे । महर्षि पाणिनि को इसी गूंज से ' माहेश्वर सूत्र ' सुनाई पड़े । गोस्वामी तुलसीदास को वर्षा ऋतु के महीने श्रावण और
भाद्रपद ' राम ' सदृश लगते हैं और वे ' वर्षा ऋतु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास , राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ' कह कर इस ऋतु को सम्मान दे रहे हैं । वे मानस में लिखते हैं कि महादेव शिव के आराध्य श्रीराम राज्य छोड़कर अरण्य ( जंगल ) में आ गए हैं
श्रीराम का आगमन अरण्य संस्कृति को विकासोन्मुखी बनाने के लिए है । श्रीराम दंडकारण्य में अहिल्या के उद्धार के माध्यम से उन स्थलों को जो ' अ - हल्या ' ( हल नहीं चल सकते ) की स्थिति में गैर उपजाऊ हैं , उसे उपजाऊ बनाने की योजना करते दिख रहे हैं ।
माता सीता के अपहरण की पीड़ा के बावजूद किष्किंधाकांड में वे लक्ष्मण से वर्षा 'ॠतु की मोहकता एवं उसी के बहाने समाज की सकारात्मकता का चित्रण भी कर रहे है। ऋषियों ने श्रावण में भगवान शंकर की पूजा के पीछे उनके पंचानन स्वरूप को ध्यान में रखा । चंद्रवर्ष का 5 वां महीना सावन है ।
पंचभूतों (क्षिति , जल , पावक , गगन समीर ) से बने मानव-तन को 'बड़े भाग मानुष तन पावा 'तक पहुंचाने की प्रक्रिया भी है,शिव को प्रसन्न करने का पंचाक्षरी मंत्र'नमः शिवाय'का उद्देश्य यही स्पष्ट होता है।देखा जाए तो हर तरह के पिंडज,उद्भज,श्वेदज आदि जीव जंतुओं केलिए यह माह अनुकूल होता है।
देवशयनी एकादशी को श्रीहरि योगनिद्रा में जाते समय भगवान शंकर को पालन का नेतृत्व सौंप देते हैं । भोलेनाथ मूलतः हैं दानी । कोई कुछ भी मांग ले , सब पर ' तथास्तु ' । उनके इस भोलेपन का दैत्यों ने भी खूब फायदा उठाया । लेकिन जो ' दाता ' होता है , उसे देने में ही आनंद आता है
सो प्रकृति पुरुषमय देवों के देव महादेव को सावन महीना बहुत प्रिय है। प्रिय तो माता पार्वती को भी है। सावन माहात्म्य वर्णन में उल्लेख है कि दक्ष प्रजापति के यज्ञकुंड में भगवान शंकर के अपमान पर आत्माहुति के बाद हिमालय-पुत्री के रूप में जन्म लेकर भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए
कठोर तपस्या इसी सावन माह से ही उन्होंने शुरू की थी । भगवान शंकर का प्रिय मास होने से श्रावण की हर तिथि की महत्ता है । वहीं सोमवार उनके शीश पर विराजे चंद्रमा से ऊर्जा पाने का दिन ।

- via sm
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