थोड़ा लम्बा थ्रेड है, बिना पढ़े लाइक या आर०टी० मत करना। सिर्फ़ कुछ शेयर करने का दिल हुआ तो लिख रहा हूँ।

मेरे दादाजी या फिर यूँ कहूँ मेरे बाबा जो हम उनको कहा करते थे। उनको हमें छोड़ कर गए हुए 24 घंटे से ज़्यादा हो चुके हैं।

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पर अभी भी दिल ये बात ना मानने को तैयार है और ना ही समझ पा रहा है कि ये सब हुआ क्यूँ। मैं अब तक इस उम्मीद में हूँ कि शायद ये एक बुरा सपना है और अभी मेरी आँखें खुल जाएँगी।

पिछले 22 दिनों में मेरी ज़िंदगी कुछ इस तरह बदली जैसा मैंने सोचा नहीं था कि कभी ऐसा भी हो सकता है।

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बाबा की उम्र बेशक से 72 साल थी पर उनकी फ़िट्नेस मुझसे कुछ कम नहीं थी, आज भी वो सुबह 3 बजे उठकर मेडिटेशन करने के बाद 15 किलोमीटर की मोर्निंग वॉक करते थे।

जब भी दिल करता बाइक स्टार्ट करके चल देते और आराम से बिना थके एक दिन में 300 किलोमीटर की ड्राइव कर लेते थे।

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ये सब बातें मैं केवल भावनाओं के आवेश में नहीं लिख रहा बल्कि अचंभित हो कर लिख रहा हूँ।

जिस व्यक्ति ने आज तक बीमारी में Crocin तक ना खायी हो। ना बी०पी०, ना डाइअबीटीज़ और ना कोई और बीमारी रही हो, ना दारू ना सिगरेट, उनके साथ अचानक ऐसे कैसे हो सकता है।

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उनका जीवन बहुत संघर्ष भरा रहा, जो भी उन्होंने ज़िंदगी में बनाया कमाया, अपने दम पे किया। पिछले 40-45 सालों में, हज़ारों लोगों का भला किया।

उनको कभी किसी में कोई बुराई दिखी नहीं, किसने उनके साथ ग़लत किया, कोई मतलब नहीं, बस उनका मानना था की जैसा जिसका पार्ट है वो प्ले करेगा।

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तुम बस अपने अच्छे कर्म करते चलो।

जब वो हॉस्पिटल में थे, तब 50-50 लोग हॉस्पिटल के बाहर उनके स्वस्थ होने की प्रार्थना करते थे।

अंत समय में डॉक्टर्ज़ ने कहा वो Supernatural Dose of Medicines पे थे। उनके मुताबिक़ हर सब इतनी हेवी डोस झेल नहीं पाता, ये पता नहीं कैसे झेल रहे हैं।

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बाबा ने काफ़ी हिम्मत रख कर ये दिन गुज़ारे। वैसे तो ICU में मिलने का समय केवल दो बार है, पर मैं फिर भी किसी ना किसी बहाने 4-5 उनसे मिलके आ जाता था।

डाक्टर्ज़ के मुताबिक़ वो अनकोनशीयस थे और रेस्पॉन्स नहीं करते थे पर जब भी मैं जाके उनसे बात करता था उनकी आँखों में आँसू आ जाते।

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लिखने को अब भी बहुत कुछ है, बचपन की यादें, जब उनकी बाजू को तकिया बना के सोया करता था, बाइक पे उनके सामने बैठ के चलता था, और जीवन सबसे पहले उन्होंने ही मुझे बाइक चलाने दीं थी बिना पापा को बताए। और फिर कुछ समय बाद उनका कहना कि “यार तू तो अपने पापा जैसी गाड़ी चलाने लगा है”।

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जितना हो सकता था उतनी प्रार्थना करी, बहुत लोगों ने दुआएँ की, मन्नतें माँगी, पर अंत में भगवान ने किसी की नहीं सुनी। ये सोचता हूँ कि इंसान किस बात पे इतना अहंकार करता है, क्या औक़ात है हमारी, हम कुछ भी तो नहीं। जो हमारा अपना है हम उसको जी-जान लगा कर भी बचा नहीं सके।

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अब इससे ज़्यादा और लिखने की हिम्मत नहीं, ये थ्रेड कुछ मैंने शाम को लिखा कुछ देर रात को और कुछ जल्दी सुबह, इसे लिखते लिखते रोया भी हूँ और उन यादों को सोच कर मुस्कुराया भी हूँ।

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बस अंत में यही कहूँगा, की जो भी आपके अपने हैं, उन्हें प्यार करें, कोई भी बात हो तो दिल में ना रखें, ज़िंदगी का एक पल का भरोसा नहीं, की अगली बार का मौक़ा दे या ना दे 🙏

I wish I could spend more years with you Baba. Love you Baba ❤️

ॐ शान्ति 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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