‘अभी क्या मंदिर बनाने का समय है’ पूछने वाले तत्वज्ञानियों के नाम

हाँ, बिलकुल सही समय है। जिनकी धर्म में आस्था है, उनके हिसाब से शुभ कार्य का एक तय समय होता है, वो समय अभी है, इसलिए मंदिर बनेगा।
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जो बकचोन्हर लोग लिख रहे हैं कि ‘ये पैसा’... पहली बात ये जान लो कि सरकार ने बस ‘एक रूपया’ दिया है इसके लिए। बाकी का खर्च मंदिर ट्रस्ट दान आदि से जुटाएगी। और हाँ, कायदे से तो सरकार को पैसा देना ही चाहिए क्योंकि संस्कृति मंत्रालय का भी बजट में फंड होता है।
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दूसरी बात, एक भव्य मंदिर रात में विश्वकर्मा भगवान आ कर, बना कर, चेक ले कर भाग तो नहीं जाएँगे। उसमें श्रमिक, इंजीनियर लगेंगे, पत्थर-ईंट, सीमेंट-सरिया लगेगा, नक्काशी करने वाले कारीगर लगेंगे... कितना काम शुरु होगा और कितने घरों में पैसा पहुँचेगा ऐसे दौर में जब सब-कुछ बंद है।
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कुछ लोगों का पूरा जीवन मूर्खतापूर्ण कार्यों में बीत जाता है। उन्हें इससे मतलब नहीं है कि मंदिर और अस्पताल दोनों का अपना महत्व है। चूँकि तुम बकैत हो, तुम्हारी आस्था किसी चीज में नहीं है, तो तुम्हें यह अधिकार कोई नहीं देता कि तुम दूसरों की आस्था के विषय पर अपना ज्ञान थोप दो।
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मंदिर बनने का दिन पूछ रहे थे न? लो, बन रहा है। और मैं जानता हूँ कि जितने सरिये उधर लगेंगे, उतना तुम्हारे अंग में भी महसूस होगा... छेनियों की जितनी छिलन पत्थर पर मूर्तियों को तराशने में लगेंगे, उतनी तुम्हारे चमड़े पर महसूस होंगे... तुम जलो, तुम्हारा वही प्रारब्ध है।
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