नित्य प्रातःस्मरणीय श्री पूरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती जी महाराज का संबोधन एक सूत्र के रूप मे प्रस्तुत कर रहा हूं... इसमे राजनेताओं, सामाजिक नेताओं और वैज्ञानिकों कर लिए अमूल्य संदेश है जिसे अनुसरण करने पर देश एवं विश्वास का उत्कर्ष ही होगा
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@govardhanmath
अखिल गुरो भगवन्नमस्ते। शिवाय नमः। शिवालिंगाय नमः। 
शिवसंकल्पमस्तु। सर्वे भवन्तु सुखिनः। नारायण। 
हृदय से सब को अभयदान देकर ही सन्यास आश्रम में प्रवेश होता है इस दृष्टि से मैं सब के प्रति अपनत्व स्वाभाविक रूप से व्यक्त करता हूं
किसी का अस्तित्व और आदर्श....
.... पर आघात करना मेरा लक्ष्य बिल्कुल नहीं है
मेरे जीवन की गुरु ग्रंथ और गोविंद की कृपा से प्रत्येक गतिविधि सबके हित में ही प्रयुक्त और विनियुक्त भी है तथापि पद की दृष्टि से और स्वभाव के दृष्टि से कौलिक परंपरा से जो दायित्व प्राप्त है उसका निर्वाह करना ही उचित है
स्वतन्त्रता  के बाद भारत को प्राप्त हुई विभाजन के बाद स्वतंत्र भारत में सनातन शास्त्र सम्मत विधा से संविधान नहीं बनाया गया सनातन वैदिक आर्य हिंदू अपने अस्तित्व और आदर्श की रक्षा करते हुए अपने जीवन का उपयोग और विनियोग कर सकें ऐसी योग्यता उत्पन्न हो इसका बिल्कुल ध्यान नहीं रखा गया
धीरे-धीरे शासन तंत्र ने उन्माद का परिचय दिया किसी ने साधुओं का संगठन बनाकर एक राजनीतिक दल में धार्मिक आध्यात्मिक जगत का उपयोग और विनियोग करना उचित समझा किसी प्रधानमंत्री ने स्वार्थ की सिद्धि के लिए पद की लोलुपता के वशीभूत होकर अदूरदर्शिता का परिचय देकर स्वयं को आस्तिक और विद्वान+
के रूप में विख्यापित कर आतंकवादी अराजक तत्व को मेरे विरोध में शंकराचार्य बनाकर घुमाना प्रारंभ किया धीरे-धीरे सनातन आर्य हिंदुओं के जो धर्म और आध्यात्म के दृष्टि से केंद्र या दुर्ग थे उनको भी शासन तंत्र वाले निगल लिया और  उनको भी अपने हाथ में ले लिया
रेल आदि जितने प्रशस्त विभाग हैं केंद्रीय शासनतंत्र के अधीन यह तो विश्वस्तर पर विदित  तथ्य है कि शासन तंत्र उनको सम्भालने में समर्थ नहीं रहा है ना है लेकिन धार्मिक जगत में भी उन्माद फैलाने का और आध्यात्मिक जगत को अत्यंत दूषित वशीभूत करने का भरसक प्रयास किया जा रहा है
शासन तंत्र से पोषित किसी व्यक्ति ने मर्यादा का उल्लंघन कर के जगह-जगह पर कुम्भ मनाना प्रारंभ किया शासन तंत्र की ओर से अर्धकुंभ को पूर्ण कुंभ घोषित कर दिया गया एक उन्माद फैल गया है कि आध्यात्मिक धार्मिक दृष्टि से कोई जानकारी हो या ना हो लेकिन धार्मिक आध्यात्मिक नेतृत्व भी
राजनेता चाहे केंद्रीय स्तर पर हों या प्रांतीय स्तर पर उनकी मुट्ठी के बाहर ना हो 

ऐसी स्थिति मैं एक संकेत करता हूं इस देश पर छल बल डंके की चोट से क्रिश्चियन तंत्र ने भी शासन किया है, मुगल तंत्र ने भी शासन किया है हिंदुओं के प्रति उनकी प्रायः आस्था नहीं रही है 

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हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श को विकृत और विलुप्त करने के लिए ही उन्होंने अपनी मेधाशक्ति का उपयोग किया है लेकिन वे अराजक तत्वों को शंकराचार्य के रूप में स्थापित करने का साहस नहीं कर सके साथ ही साथ धार्मिक जगत को दूषित कर अपने मुट्ठी मे लेने का प्रयास उन्होंने प्रायः  नहीं किया
वो दूरदर्शी थे कि अगर हम अराजक तत्वों को शंकराचार्य जगद्गुरु के रूप में घुमाना प्रारंभ करेंगे तो हमारे पादरी, पीर, पैगंबर भी अराजक सिद्ध होंगे, नकली बनेंगे
ऐसी स्थिति में मैं एक संकेत करना चाहता हूं कि प्राप्त विभीषिका के माध्यम से क्या क्या संदेश  प्राप्त हो रहा है इस पर ध्यान केंद्रित करना माननीय प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों का, राष्ट्रपति महोदय और राज्यपाल महोदय आदि का दायित्व सिद्ध होता है
मैं जानता हूं कि प्रकृति जो बोलती है उसके वाणी को परख पाने के लिए बहुत सूक्ष्म दृष्टि चाहिए दूरदर्शिता चाहिए लेकिन जब नग्न भाषा मे प्रकृति बोलने लगती है तो सामान्य व्यक्ति भी,जनसामान्य भी उसको समझने का प्रयास करता है उसको भी समझ मे आने लगता है
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मैंने एक संकेत किया है पार्थिव दृष्टि से विचार कीजिए पूरे विश्व मे आर्थिक क्रांति  चल रही है ऐसा मानते हैं लेकिन अर्थ के तीन बटा चार का ज्ञान तो भौतिक वादियों को है ही नहीं  क्यों कि अधिदैव मे आस्था नहीं है यज्ञ इत्यादि की दार्शनिकता वैज्ञानिकता का बोध नहीं है
अर्थ का तीन बटा चार स्रोत तो भौतिक वादियों के  हाथ मे कभी रह ही नहीं सकता है एक बटा चार जो स्रोत था पृथ्वी, पानी, प्रकाश, पवन ऊर्जा के जो  स्रोत थे आकाश जो इन चारों स्रोतों के धारक के रूप मे थे छल बल ढंके के चोट से आधुनिक विधा से भौतिक विधा से
देहात्मभाव से भावित होकर विकास को  परिभाषित और क्रियान्वित करने के व्यामोह मे उनको भी इतना विकृत कर चुके हैं कि यह सब अर्थ के सारे स्रोत पर पानी फेर चुके हैं ऐसी स्थिति में बोधयन्तः परस्परम् भावयन्तः परस्परम् की दृष्टि से सद्भाव पूर्वक संवाद के माध्यम से यह विभीषिका द्रुत गति
से किस प्रकार दूर हो साथ ही साथ विभीषिका के दूर होने पर कम से कम भारत नेपाल भूटान उसमे भी भारत भावी प्रकल्प को किस रूप  मे निर्धारित करे और क्रियान्वित करे ताकि भारत अपनी अस्तित्व और आदर्श की रक्षा कर सके और पूरे विश्व के लिए वरदान स्वरुप सिद्ध हो सके
अंत मे मैने संकेत किया था कुछ दिन पहले प्रकृति तिथि को मानती है रविवार सोमवार आदि दिनों को मानती है चैत्र वैशाख इत्यादि महीनों को मानती है भूकंप की बात भी मैंने कही इसी प्रकार चंद्र ग्रहण सूर्य ग्रहण समुद्र मे ज्वार भाटा यह सब तिथि के अनुसार ही होते हैं
अंतरिक्ष यान भी तिथि के अनुसार ही सफल होता है साथ ही साथ विवाह यज्ञोपवीत आदि जितने संस्कार हैं वो तिथि के अनुसार अगर संपन्न हों तो हितप्रद होते हैं अन्यथा मारक सिद्ध होते हैं इसी प्रकार से कुटीर उद्योग लघु उद्योग के माध्यम से विकास को सह सकती है प्रकृति
और महा यंत्रों के माध्यम से विकास को प्रकृति नहीं सह सकती यह तो नग्न तथ्य अब सामने है 
तो ये जो महानुभाव हैं जो स्वयं को भाग्य विधाता मानते हैं कुछ ऐसे भी सामाजिक नेता हैं जो हिन्दुओं का ठेकेदार अपने आपको मानते हैं
जब कि उन्हें  एक भी धार्मिक ग्रंथ का ज्ञान नहीं है
उसमें कोई तथ्य नहीं है ऐसी स्थिति में कहना चाहता हूं कि आप प्रकृति को परखिए प्रकृति का अध्ययन के लिए प्रकृति किस प्रकार के विकास को सहती है और सृष्टि की संरचना के पीछे उत्पत्ति, स्थिति, संहार, अनुग्रह, निग्रह के पीछे कौन सा तत्व कौन सा दर्शन कौन सा सिद्धांत क्रियान्वित है
वैज्ञानिक जगत से भी मैं बहुत ही अपनत्व पूर्वक आस्था पूर्वक अनुरोध करना चाहता हूं कि आप विज्ञान की परिभाषा पहले उन्नत ढंग से उद्भासित कीजिए विज्ञान कहते किसे हैं  और उत्पत्ति स्थिति संवृत्ति निग्रह अनुग्रह ये जो पांच विज्ञान की धाराएं हो सकती हैं पांच विज्ञान के कृत्य हो सकते है
उनके स्वरुप का निर्धारण कीजिए और वैज्ञानिक सिद्धांत को प्राप्त करने के लिए जो स्रोत हैं पृथ्वी, पानी प्रकाश पवन आकाश दिक काल अव्यक्त और भगवत तत्व और परमात्म तत्व उनका भी ज्ञान प्राप्त कीजिए साथ ही साथ सर्वथा विपरीत जो ज्ञान विज्ञान तमोगुण की प्रगल्भता मे है
उससे  विज्ञान को और अपने आप को दूर करने का प्रयास कीजिए  यथावत जो ज्ञान विज्ञान है उससे दूर रहने का प्रयास कीजिए और दूध का दूध पानी का पानी विकास को विकास ह्रास को ह्रास के रूप  में उद्भासित करने की जो सनातन विधा है विज्ञान के नाम पर कोई बवाल उत्पन्न ना हो विस्फोट ना हो
इसलिए वैज्ञानिक जगत को भी संभाल कर कार्य करने की आवश्यकता है साथ ही साथ दिशा हीन शासन तंत्र विज्ञान और वैज्ञानिकों का प्रयोक्ता ना हो यह भी बहुत आवश्यक है 
मैं एक संकेत करना चाहता हूं न्यूटन आदि के समय भी कुछ समस्याएं थीं आज तो भयंकर समस्या है
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