प्रशांत किशोर यदि इस बार ट्रम्प को चुनाव जितवा देगा तो मान लेगें. जो लोग सोच रहे हैं कि बिहार में प्रशांत एक विकल्प है, उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि प्रशांत किशोर पिछले डेढ़ महीने से बिहार में नहीं हैं. लॉक डाउन से पहले तक बिहार में ही थे 1/न
पर बीच लॉक डाउन में नियम तोड़ कर पश्चिम बंगाल चले गये. इस मंझधार में बिहार छोड़ कर पश्चिम बंगाल जाना वो भी नियम तोड़ कर, चलो इसे माफ़ किया. लेकिन वहां जाकर किया क्या? 2/न
प्रशांत किशोर अभी बंगाल के आधे मुख्यमंत्री बने हुए हैं, कुछ वैसा ही जैसा राजद-जदयू गटबंधन के समय उनका रुतबा बिहार में था. इसलिए कोरोना से निपटने में उनका रिकोर्ड भी देखा ही जाना चाहिए.
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डेढ़ महीने पहले जब प्रशांत किशोर बंगाल गये थे, तब वहां कोरोना के 500 मामले भी नहीं आये थे, आज वहां 4000 मामले और 400 मौतें हो चुकी हैं. और ये तो बंगाल के अधिकारिक आकड़े हैं, असल में क्या हो रहा है किसे पता?
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ममता बनर्जी, ये सब बिना प्रशांत किशोर के राय के तो कर नहीं रही. फिर इतने संक्रमण क्यूं बढ़ रहे हैं बंगाल में? और फिर प्रशांत किशोर सही आकड़े क्यूं छुपा रहे?
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कुल मिला कर देखा जाय तो चुनाव जितवाने में भले ही प्रशांत किशोर कारगर हैं पर बात जब काम करने की आती है तो वो फिसड्डी हैं. ऐसे नेताओं को बिहार का नेतृत्व देना मतलब आसमान से गिरे खजूर पर अटके जैसा है. 6/न