अभी अभी पिंजरा तोड़ गिरोह व दिल्ली दंगो के आरोप में पुलिस द्वारा गिरफ्तार हुई उसकी दो एक्टिविस्ट पर @ajeetbharti का लिखा लेख पढ़ा। आमतौर पर सोशल मीडिया और न्यूज़ के माध्यम से जो कुछ भी मेनस्ट्रीम में होता है वह नज़रों में आ ही जाता है। पर
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इस गिरोह की खबर की खासियत यह थी कि इसे भी अंकित शर्मा की हत्या वाली खबर की तरह, नीचे के फुटनोट्स या ज़्यादा से ज़्यादा 3-4 मिनट वाली हैडलाइन में निपटा दिया गया था। तबरेज़ अंसारी जितना ध्यान और नफरत जो आकर्षित नहीं करती थी यह खबर। और तो और,
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स्कूलों से मुस्लिम बच्चों को हाफ डे में निकाल लिये जाने वाला सच तो सिवाय सुधीर चौधरी जी के किसी ने गौर फरमाना तक ज़रूरी नहीं समझा। पता नहीं कैसी प्रतिक्रिया दूँ, मन में बेहिसाब खौफ में है और दिमाग एक बेबसी की जंजीर में जकड़ा हुआ। यह क्या हो रहा है हमारे यूथ के साथ,
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किस दिशा में जा रहा है देश का भविष्य? क्रांति के नाम पर भोलेभाले बच्चों को ऐसे दलदल में झोंका जा रहा है जहां से वापस लौट पाना नामुमकिन है। किसे पता है, शायद यहां लव जिहाद, देह व्यापार व वेश्यावृत्ति के भी तार जुड़ते हों। क्योंकि अंत में हर विचारधारा को दरकिनार
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कर के हम सब हैं काफ़िर ही। @OpIndia_in से मैं न्यूज़ के लिए लगातार जुड़ी रहती हूँ। लेख मेरा कम ही पढ़ना हो पाता है पर चूंकि यह लेख खास DU से जुड़े छात्रों को ध्यान में रख कर लिखा गया था, मैंने इसे काफी तल्लीनता से पढ़ा। पिंजरा तोड़ की एक्टिविटीज़ को मैंने
अपनी आंखों से
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अपनी आंखों से
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काफी करीब से देखा है क्योंकि इन्होंने कई बार ग्राउंड लेवल सपोर्ट के लिए हमारे कॉलेज में नुक्कड़ नाटक किये हैं, जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय का आम कल्चर है। स्क्रिप्ट, शब्दावली, चेहरों के हाव भाव का जो मनोरम समागम बना कर यह क्रांति की चाशनी में डुबो कर वामपंथी एजेंडा
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यूथ के आगे परोसते हैं, शायद ही कोई बच पाए। खासकर यह उम्र जब विद्यार्थी स्कूल के गैर राजनीतिक माहौल से निकले कच्ची मिट्टी के घड़े होते हैं। बस, जकड़ने को तैयार रहते हैं यह लोग। क्योंकि उन्हें बरगलाना कितना आसान होता है यह मैंने खुद एक्सपीरिएंस किया है जब मुझ पर भी
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कोशिश हुई थी। गनीमत है, कि मुझे मेरे परिवार की की राष्ट्रवादी सोच और 2014 के भाजपा चुनावी कैंपेन के कारण, बिना उनके चंगुल में फंसे उनका मॉड्यूल समझ आता गया।
एक और गहरी बात जो पढ़ने में आई, कि जो विद्यार्थी इनका समर्थन नहीं करते उन्हें हीन महसूस करवाना इनका
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एक और गहरी बात जो पढ़ने में आई, कि जो विद्यार्थी इनका समर्थन नहीं करते उन्हें हीन महसूस करवाना इनका
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प्राइम टास्क होता है, शत प्रतिशत सही है। किंतु मैं खुद को गैर वामपंथी नहीं, परन्तु दक्षिणपंथी कहलवाना ज़्यादा पसन्द करती हूँ बिना किसी क्षमाशील रवैये के। मुझ पर कई बार मज़ाक का चोला ओढ़ कर कटाक्ष और उपहास होता है। तथ्य और तर्क न होंने पर तो कभी कभी इसलिए
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कि मैं हिंदी क्यों इस्तेमाल करती हूँ या इसको क्यों प्राथमिकता देती हूँ, अंग्रेज़ी के ऊपर।
एक वाकया याद आता है, हमारी एक प्रोफेसर जो 'The Hindu' के लिए रेगुलर लिखती हैं, व कट्टर वामपंथी हैं, उनका एक शिक्षिका के तौर पर मेरे साथ, एक विद्यार्थी के साथ कैसा रवैया है। वो मेरी
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एक वाकया याद आता है, हमारी एक प्रोफेसर जो 'The Hindu' के लिए रेगुलर लिखती हैं, व कट्टर वामपंथी हैं, उनका एक शिक्षिका के तौर पर मेरे साथ, एक विद्यार्थी के साथ कैसा रवैया है। वो मेरी
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विचाधारा से परिचित नहीं हैं, पर लेक्चर्स के दौरान चंद सवाल जो मैंने अपनी शिक्षिका से पूछे थे, द हिन्दू की कॉलमिस्ट से नहीं, उनसे चोटिल हो कर वो मुझे आजतक भी 5-6 मार्क्स में निपटा देती हैं जबकि जवाब साफ तौर पर एवरेज नहीं बल्कि 8-9 वाली टॉप कैटेगरी के होते हैं। खैर, सहिष्णुता
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अधिकारों, व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वामी कौम किस तरह अपने घर की रद्दी में बेच कर उससे लाल झंडा खरीद, लोकतंत्र बचाने निकलती है, हम सभी जानते हैं।
बीते दिनों, एक सेमिनार हुआ था कॉलेज में जिसमें दिल्ली की जनता का चुनाव को ले कर क्या मूड है इस पर चर्चा होनी थी।
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बीते दिनों, एक सेमिनार हुआ था कॉलेज में जिसमें दिल्ली की जनता का चुनाव को ले कर क्या मूड है इस पर चर्चा होनी थी।
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उसी में एक विद्यार्थी ने खड़े हो कर यह बोल दिया कि जो जिससे लेता है, वो उसी को लौटाता है। कांग्रेस ने देश से लिया, वो उसको लौटाएगी। और 2002 के खूनी दरिंदे ने अपने मोबाइल कम्पनी के दोस्त से लिया वो उसको लौटाएगा। आप यकीन करेंगे? पूरा हॉल, हँसी व ठहाकों से गूंज उठा,
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और वही शिक्षिका ने तालियां बजा कर उस छात्र का उत्साहवर्धन कर रही थी। किसी को, एक क्षण के लिए भी नहीं लगा कि अभी अभी वहां, माननीय न्यायालय द्वारा बेकसूर घोषित किये जाने के बावजूद एक व्यक्ति को खूनी की संज्ञा दी गयी। वो भी कौन, जो व्यक्ति एक संवैधानिक
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पद पर कार्यरत है व देश का प्रतिनिधित्व करता है। ज़रा भी इज़्ज़त नहीं? मान नहीं? सम्मान नहीं? अरे नरेंद्र मोदी नहीं तो अपने प्रधानमंत्री के लिए ही सही। दुखद यह है कि एक भी टीचर और आर्गेनाइजर ने आपत्ति नहीं की। उस क्षण से ज़्यादा लाचार मैंने खुद को अपने 20 सालों के जीवन में
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आजतक नहीं पाया था। क्योंकि बोलने की कोशिश पर मुझे शांतिपूर्वक तरीके से पीछे के दरवाजे से बाहर निकाल दिया गया था। और मेरे कंधों पर निकली थी अभी अभी शांतिपूर्ण तरीके से लिंच हुई मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
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यही शिक्षिका कॉलेज में 'Womens' development cell' के नाम से एक सोसाइटी चलातीं हैं जो नारीवाद के नाम पर बूंद बूंद विषैला कम्युनिज्म और एन्टी-स्टेट प्रोपगैंडा यूथ में भरने का काम कर रही है। इनकी अध्यक्ष हैं मेरी ही क्लास की एक कश्मीरी मुस्लिम लड़की जो चौड़ाई में
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प्रधानमंत्री और 100 करोड़ लोगों द्वारा पालन किये जाने वाले धर्म को गाली देना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती हैं किन्तु सिर से काला कपड़ा हटाने का अधिकार हरे कपड़े में काबा पर छोड़ आईं हैं शायद। इन्हीं लोगों ने कॉलेज में एन्टी CAA रैली प्लान की थी जिसे ABVP ने बड़े जतन
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से रुकवाया था। नतीजतन जिसके, इन्होंने ABVP से जुड़े एक प्रोफेसर को भी सेक्सशुअल मोलेस्टेशन में फसाना चाहा था पर पर्दाफाश हो गया।
देखा जाए तो हम अभी येलो अलर्ट पर चल रहे हैं, जो रेड में बदलेगा 2024 चुनाव के बाद। एक ऐसे भयानक तंत्र के जो खुद को दिन पर मजबूत कर रहा है
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देखा जाए तो हम अभी येलो अलर्ट पर चल रहे हैं, जो रेड में बदलेगा 2024 चुनाव के बाद। एक ऐसे भयानक तंत्र के जो खुद को दिन पर मजबूत कर रहा है
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देश में एक 'खूनी क्रांति' लाने कामना ले कर, जो शायद आगे जा कर शरजील इमाम जैसे लोगों के गज़वा-ए-हिन्द के सपने को भी साकार करने में मदद करे। यदि सरकार अभी भी नहीं जागी, और मासूम विद्यार्थी व छात्र राजनीति का चोला ओढ़ कर पनपते ज़हर को नहीं रोका गया, तो वो दिन दूर नहीं जब
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हमें जेएनयू का 'भारत के टुकड़े' करने का ख्याब, सच में तब्दील होता दिखे। साथ देने के लिए रविश कुमार, बरखा दत्त, राणा अय्यूब, व आरफा खानुम जैसे देशद्रोही अवसरवादी फ्रंट फुट पर हमेशा तैनात हैं ही, चीन और खाड़ी देशों से मिल रहे दाना पानी डकार लेने के बाद।
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