कुछ भले लोग, कई मूर्खों को बता रहे हैं कि नेहरू कितने पढ़े-लिखे और कमाल के इंसान थे।
मैं कहता हूँ कि इन्हें इसी भ्रम में जीने दो कि नेहरू घटिया इंसान था। इन्हें बोस और भगत सिंह की किताबों में लिखी नेहरू की तारीफ़ों से दूर रखो। इन्हें इनके दो कौड़ी के नेताओं पर गर्व करने दो।
मैं कहता हूँ कि इन्हें इसी भ्रम में जीने दो कि नेहरू घटिया इंसान था। इन्हें बोस और भगत सिंह की किताबों में लिखी नेहरू की तारीफ़ों से दूर रखो। इन्हें इनके दो कौड़ी के नेताओं पर गर्व करने दो।
इस से ज़्यादा हास्यास्पद बात कुछ और नहीं हो सकती कि ये लोग नेहरू को मुसलमान साबित करते रहें। मैंने आज तक नेहरू को इनके सामने डिफ़ेंड नहीं किया। मुझे पता है नेहरू वो नाम है, जिसकी इज़्ज़त करने के लिए उसके नाम में ज़बरदस्ती "जी" नहीं घुसेड़ना पड़ता है।
मुझे तो इन लोगों पर हँसी आती है, जो दुनिया को दिखाने के लिए एक हिन्दू लीडर का चेहरा ढूँढ रहे हैं।
जबकि इनके पास एक प्रगतिशील और पढ़े-लिखे हिन्दू लीडर का चेहरा था, जो पहले से ही पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था। जिसका धर्म ज्ञान इनके छिछले लीडरों से कहीं ज़्यादा गहरा था।
जबकि इनके पास एक प्रगतिशील और पढ़े-लिखे हिन्दू लीडर का चेहरा था, जो पहले से ही पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था। जिसका धर्म ज्ञान इनके छिछले लीडरों से कहीं ज़्यादा गहरा था।
इन्हें समस्या इस बात से है कि उसने हिन्दू रहते हुए, केवल हिन्दुओं का भला क्यूँ नहीं किया। ये इस कारण ऐसा सोचते हैं क्यूँकि इनके नये लीडरों ने इन्हें छोटा बना दिया है कि ये कोई बड़ा सपना देख ही नहीं सकते। इन्हें इतनी तुच्छ समस्याओं में उलझा दिया है कि ये कुऍं के मेंढक रह जाएंगे।
एक बात मैं आपको बता देता हूँ कि कुऍं के मेंढक से बड़ा राष्ट्रवादी कोई नहीं हो सकता। कुऍं का मेंढक और उसकी सोच राष्ट्रवाद का सबसे उच्चतम उदाहरण है। जो कुऍं में रहकर, समुद्र के विचार पर हँसता है। नेहरू की समस्या ही ये रही कि वो इन्हें कुऍं से निकालना चाहा और ये लोग उस पर हँसते रहे।
इसलिए मैं कहता हूँ कि इन्हें नेहरू के बारे में मत बताइए। इन्हें इनके कुऍं में पड़े रहने दीजिए। आपको नेहरू के बारे में बात करनी है, तो उनसे कीजिए, जिन्होंने उसे पढ़ा है और जो आपस में, उसे "उस" कहने के डर के बग़ैर, उस के काम पर चर्चा और उसकी आलोचना भी कर सकते हैं।